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महाकुंभ में भूटान के राजा: हिंदू-बौद्ध एकता का संदेश : डॉ.विधुप्रकाश कायस्थ

डॉ. विधुप्रकाश कायस्थ, काठमांडू । भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक ने 4 फरवरी 2025 को प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में महाकुंभ मेले के दौरान पवित्र स्नान किया। यह ऐतिहासिक घटना हिंदू और बौद्ध धर्म के बीच गहरे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों को दर्शाती है। राजा का यह पवित्र स्नान भारत और भूटान के बीच के आध्यात्मिक रिश्तों को सम्मान देने के साथ-साथ एकता, आपसी सम्मान और धार्मिक सद्भाव का संदेश भी देता है।

महाकुंभ मेला: विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन

हर 12 साल में होने वाला कुंभ मेला श्रद्धा, आस्था और भक्ति का सबसे बड़ा संगम है। यह भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है। इनमें से प्रयागराज का कुंभ मेला विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम पर होता है।

2025 का महाकुंभ और भी खास है, क्योंकि इसमें 144 वर्षों में एक बार होने वाला दुर्लभ ग्रह संयोग बन रहा है, जो इसे आध्यात्मिक दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण बना देता है। इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु, साधु-संत और भक्तजन पवित्र स्नान कर अपने पापों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्त करने की आस्था रखते हैं।

भूटान और भारत: आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संबंध

बौद्ध धर्म प्रधान देश भूटान और हिंदू धर्म की जन्मभूमि भारत के बीच गहरा ऐतिहासिक संबंध है। दोनों देश न केवल राजनीतिक रूप से, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। बौद्ध धर्म की उत्पत्ति भारत में हुई थी और इसमें कई हिंदू दर्शन और नैतिक शिक्षाओं का समावेश है।

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भूटान ने सदियों से अपनी बौद्ध परंपराओं को सहेजते हुए भारत के साथ अपने आध्यात्मिक संबंधों को मजबूत बनाए रखा है। विशेष रूप से बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर जैसे पवित्र बौद्ध स्थल भारत में स्थित हैं, जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था। महाकुंभ मेले में भूटान के राजा की उपस्थिति इन दो प्राचीन धर्मों के बीच की सांस्कृतिक कड़ी को और मजबूत करती है और करुणा, अहिंसा और भक्ति के साझा मूल्यों को पुनः स्थापित करती है।

राजा जिग्मे खेसर की सहभागिता: एकता का प्रतीक

राजा जिग्मे खेसर का त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान करना धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक सद्भाव का एक महत्वपूर्ण संदेश है। यह हिंदू और बौद्ध धर्म की गहरी कड़ियों को दर्शाता है, जो सदियों से सहअस्तित्व और आपसी समृद्धि के साथ आगे बढ़े हैं।

पवित्र नदी में स्नान केवल हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है; बौद्ध धर्म में भी पानी को शुद्धि और जीवनचक्र का प्रतीक माना जाता है। बौद्ध परंपरा में जल आत्मशुद्धि, पुनर्जन्म और मोक्ष (निर्वाण) का प्रतीक है।

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महाकुंभ मेले में शामिल होकर, भूटान के राजा ने यह संदेश दिया है कि आध्यात्मिक परंपराएँ केवल सीमाओं और पहचान तक सीमित नहीं होनी चाहिए। बल्कि, उन्हें आपसी सम्मान और सहअस्तित्व के साथ एक-दूसरे को समृद्ध करना चाहिए और आध्यात्मिक यात्रा में आगे बढ़ना चाहिए।

हिंदू और बौद्ध धर्म की एकता

राजा जिग्मे खेसर की महाकुंभ मेले में उपस्थिति केवल एक सम्मानजनक भागीदारी नहीं है, बल्कि यह हिंदू और बौद्ध धर्म के ऐतिहासिक संबंधों की याद दिलाती है। सिद्धार्थ गौतम, जो बाद में बुद्ध बने, जन्म से एक हिंदू राजकुमार थे और उनका जन्म लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था। उनकी शिक्षाओं पर हिंदू धर्म के दर्शन का गहरा प्रभाव था।

धर्म, कर्म और मोक्ष—जो हिंदू धर्म की मूल अवधारणाएँ हैं—बौद्ध दर्शन में भी महत्वपूर्ण हैं। ऐतिहासिक रूप से, हिंदू और बौद्ध परंपराएँ एक-दूसरे को प्रभावित करती आई हैं।

कई हिंदू देवताओं, जैसे कि भगवान विष्णु, को बौद्ध परंपराओं में भी सम्मान दिया जाता है, और कई हिंदू मंदिरों में बौद्ध कला और मूर्तियाँ पाई जाती हैं। इन दोनों धर्मों का संबंध प्रतिस्पर्धा का नहीं, बल्कि सहअस्तित्व और आपसी समृद्धि का है।

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एक विभाजित विश्व में एकता का संदेश

आज के समय में, जब धार्मिक और सांस्कृतिक विभाजन दुनिया के लिए चुनौती बन रहे हैं, राजा जिग्मे खेसर की महाकुंभ मेले में उपस्थिति अंतरधार्मिक एकता और सहिष्णुता का एक शक्तिशाली संदेश है।

उनकी भागीदारी हमें याद दिलाती है कि आध्यात्मिकता किसी जाति, धर्म या राष्ट्र की सीमाओं में बंधी नहीं होती। शांति, करुणा और आत्म-अन्वेषण की साझा मान्यताएँ दुनिया के सभी लोगों को जोड़ती हैं।

निष्कर्ष: एकता और सद्भाव का संदेश

राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक का महाकुंभ मेले में पवित्र स्नान भूटान और भारत के साझा आध्यात्मिक इतिहास का एक अविस्मरणीय क्षण बनेगा।

यह घटना हिंदू और बौद्ध धर्म के अटूट संबंध को उजागर करते हुए आपसी सम्मान और समझ को और मजबूत करेगी।

जब लाखों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में आध्यात्मिक शुद्धि की खोज में आएंगे, तो भूटान के राजा की भागीदारी हमें याद दिलाएगी कि धार्मिक विविधता के भीतर एकता हमेशा संभव है।

महाकुंभ मेला, जो सभी धर्मों और परंपराओं को अपनाता है, फिर से यह साबित करता है कि आध्यात्मिकता को किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता—और न ही मानवता को।

डॉ. विधुप्रकाश कायस्थ
पत्रकार, लेखक और मीडिया शिक्षक हैं।

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