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संसद विघटन और पूर्ण समानुपातिक निर्वाचन/प्रतिनिधित्व प्रणाली ही अब अन्तिम विकल्प : कैलाश महतो 

कैलाश महतो, नवलपरासी । सरकार द्वारा हतोत्साहित चोर गली से लाये गये इन अध्यादेशों

1. सुशासन प्रवर्धन तथा सार्वजनिक सेवा प्रवाह अध्यादेश 

2. आर्थिक कार्यविधि तथा वित्तीय उत्तरदायित्व अध्यादेश 

3. निजीकरण अध्यादेश। 

4. आर्थिक तथा व्यावसायिक सुधार व लगानी अभिवृद्धि संशोधन अध्यादेश 

5. भूमि सम्बन्धी नेपाल ऐन संशोधन अध्यादेश,और 

6. सहकारी सम्बन्धी नेपाल ऐन संशोधन अध्यादेश 

को लाये जाने के तुरन्त बाद ही हमने अपने पूर्व नेता उपेन्द्र यादव जी से फोन संवाद की थी। हमने उन्हें सरकारी चतुराई को जवाब देने के लिए आग्रह किया था। उनके अनुसार मेरे फोन से पहले ही वे और उनकी पार्टी उन अध्यादेशों पर सतर्क होने की बात कही। तद-उपरान्त ही उन्होंने ६ अध्यादेशों में से ५वें नम्बर के *”भूमि सम्बन्धी नेपाल ऐन संशोधन अध्यादेश”* पर आपत्ति जताते हुए सरकारी अध्यादेशों के विरुद्ध अपने पार्टी से वैधानिक निर्णय ही किया ।

बाँकी नेपाली पार्टियों का मौनता भले ही रहा, मगर ज स पा का वह विरोध निर्णय मधेश के लिए एक बेहतरीन अड़ान हो गया। हर जगह उपेन्द्र जी का तारीफ होना स्वाभाविक है। ज.स.पा और उपेन्द्र यादव जी के निर्णायिक प्रतिक्रिया आने के बाद शान्त बैठे सन्त नेता और उनके लो स पा पार्टी का भी आधिकारिक विरोध विज्ञप्ति आ गया। उसके बाद कल्ह प्रधानमन्त्री के साथ हुए सत्ता गठबन्धन बैठक में जनमत पार्टी के प्रतिनिधि नेता ने भी जसपा और लोसपा के बहती गंगा में देह भिगोने का समय पा लिया।

आश्चर्य होगा – कल्ह के सत्ता साझेदारों के बैठक पश्चात् जो फोटो सेशन हुआ, उसमें कुछ नेता के पी जी के इर्दगिर्द इस कदर खड़े हुए, मानो वे यह दिखा रहे हों कि कल्ह गली गली में भात खाने के दाँव में रहने बाले आज प्रधानमन्त्री के साथ खड़े हैं। उनका हैसियत अब उनके समकक्षी रहे अन्य रोड पर छूटे/छोड़े गये लोगों से ताकतवर हो गया है। जबकि यह शर्म की बात होनी चाहिए कि उसका वह समाज आज कल्ह से और ज्यादा गर्त में फंस चुका है, जहाँ से वे छल और धोखे से पहुँचा है। वहाँ भी उसे भिखारी, पतलचट्टा, कायर, ढोंगी, लालची, लोलुप्त और भ्रष्ट ही माना जाता है।

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मधेशी दल समूहों ने भले ही *”भूमि सम्बन्धी नेपाल ऐन संशोधन विधेयक”* पर अडंगा लगाये हों जो मधेश के लिए प्राण वायु है, मगर एक बात यह समझ से काफी दूर है कि अध्यादेशों के लिस्ट नम्बर २ के *”आर्थिक कार्यविधि तथा वित्तीय उत्तरदायित्व अध्यादेश”* पर कोई दल या नेता क्यों कुछ नहीं बोलते ?

अध्यादेशों के लिस्ट में ५वें स्थान पर रहे *”आर्थिक तथा व्यावसायिक सुधार व लगानी अभिवृद्धि संशोधन अध्यादेश”* तो स्पष्ट करता है कि देश तथा जन विकाश के लिए आर्थिक तथा व्यावसायिक सुधार और लगानी अभिवृद्धि जरूरी है। मगर लिस्ट के दो नम्बर बाले अध्यादेश *”आर्थिक कार्यविधि तथा वित्तीय उत्तरदायित्व अध्यादेश”* लाने की जरूरत क्या है ! इसके औचित्य पर सवाल आजतक भी राजनीति के लाल बूझकड महापंडित नेता, उसके पार्टियाँ और सांसद लोग क्यों कुछ बोल नहीं रहे हैं ? दो दो आर्थिक अध्यादेश लाने की  आन्तरिक गुत्थी क्या हो सकता है ? इससे जनता को लाभ होने हैं या किसी चोर गली बालों को ?

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अभी हाल फिलहालल ही पाल्पा के पदम प्रसाद पाण्डेय जी को सरकार के सिफारिश में राष्ट्रपति महोदय ने देश के एक उच्च स्थान पर आसन ग्रहण करवाने का खेल हुआ है। उस पाण्डेय जी के पास तीन तीन नागरिकता, दो दो पासपोर्ट और फरक फरक जन्म मितियाँ हैं। और ठीक तभी ही सरकार सुशासन प्रवर्धन तथा सार्वजनिक सेवा प्रवाह अध्यादेश लिस्ट नम्बर १ में ही लाता है।

यह तो *”अन्धे के देश में कान्हाँ राजा”* बाला कहावत फिट हो रहा है।

जिस देश का न कोई पार्टी शुद्ध है, ना कोई नेता – न कोई संस्था नियमीत है, ना कोई अधिकारी – फिर उस देश के सरकार जनमुखी विकाश के लिए आपातकालीन अध्यादेश और विधेयक जब लाता है तो आश्चर्यपूर्ण प्रश्न उबजता है।

“आर्थिक कार्यविधि तथा वित्तीय उत्तरदायित्व अध्यादेश”* विधेयक लाने का उद्देश्य कहीं विगत के तकरीबन सवा तीन दशकों के अवधियों में नीचे बाले आर्थिक भ्रष्टाचारें, घोटालें और अनियमितताऍं हुईं हैं, कहीं उनको सुलझाने का कसरत स्वरूप का अध्यादेश तो नहीं है, जिसपर एक भी नया और पुराना कोई न तो पार्टी, न कोई नेता बोल रहा है ?

भ्रष्टाचारों का कुछ याद आए काण्ड :

1. उद्योग बेच भ्रटाचार, 

2. सूडान काण्ड, 

3. ओमनी काण्ड, 

4. कंबोडिया काण्ड, 

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5. एनसेल काण्ड, 

6. स्विस बैंक लगायत विभिन्न विदेशी बैंक तथा व्यापार में प्रयुक्त रकम काण्ड, 

7. टेलीकम काण्ड, 

8. भी ओ आई पी काण्ड, 

9. वाइड तथा न्यारो बडी प्लेन खरीद घोटाला काण्ड, 

10. प्रदेश बजेट अनियमितता काण्ड, 

11. सोना तस्करी काण्ड,

12. मल खाद खरीद बिक्री घोटाला काण्ड,

13. नदी नाला बेच विखन घोटाला काण्ड,

14. कोरोना काण्ड, 

15. बाढ़, पहिरो तथा भूकम्प राहत भ्रष्टाचार,

16. सीमा घोटाला व तस्करी,

17. नक्कली भूटानी शरणार्थी बेच विखन काण्ड,

18. पासपोर्ट बेच विखन घोटाला,

19. युवा तस्करी तथा बेच विखन,

20. बालु गिट्टी ओसार प्रसार तथा अनियमिता,

21. अनियंत्रित वन जंगल फडानी तथा अव्यवस्थित बसोबास काण्ड,  आदि।

देश को बचाने और जनमुखी सरकार बनाने हेतु कुछ नेताओं, अधिकारियों, जजों, पदाधिकारियों, कर्मचारियों, दलालों, तस्करों, उद्योगियों, व्यापारियों और उनके परिवारों तथा उनके चमचों को पालने बाला मिश्रित निर्वाचन प्रणालीयुक्त निर्वाचन प्रणाली समाप्त कर पूर्ण समानुपातिक निर्वाचन प्रणाली लागू करने हेतु भ्रष्ट, अत्ति महँगे और जन हैसियत के पहुँच से दूर  के निर्वाचित संसद को भंग कर पूर्ण समानुपातिक निर्वाचन/प्रतिनिधित्व के लिए नया निर्वाचन की सामूहिक माँग होनी चाहिए। देश को हरेक सरकार के आपातकालीन अध्यादेशों या विधेयकों से नहीं, देश के संविधान और मूल कानूनों से चलने चाहिए।

साथ ही अब मधेश को ग्रेटर मधेश समेत के लिए सशक्त होकर शांतिपूर्ण जन-विद्रोह करने की भी आवश्यकता है।

कैलाश महतो, नवलपरासी |

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