प्रचण्ड का मधेस भ्रमण पर मधेसी नेताओं की तीखी प्रतिक्रिया

अटकल:
प्रचण्ड का मधेस भ्रमण और मधेसी नेताओं की टिप्पणी
प्रचण्ड के नेतृत्व में माओवादी केन्द्र का ‘जनतासँग माओवादी: तराई-मधेस जागरण अभियान’ मधेस की राजनीति में एक नया मोड़ लाने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है। इस अभियान के तहत प्रचण्ड और माओवादी के शीर्ष नेता मधेस के गांव-गांव में जा रहे हैं, कार्यकर्ताओं के घरों में ठहर रहे हैं और जनता से सीधा संवाद कर रहे हैं। प्रचण्ड का दावा कि “मधेस की मुक्ति का जिम्मा माओवादी ही लेगा” और “मधेसी जनता के साथ माओवादी का गहरा रिश्ता है,” मधेस केंद्रित दलों के लिए एक चुनौती बन गया है। इस अभियान को मधेसी नेताओं ने संदेह और आलोचना की नजर से देखा है, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि माओवादी मधेस में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की कोशिश कर रहा है, और इससे मधेसवादी दलों में बेचैनी बढ़ रही है।
मधेसवादी नेताओं की टिप्पणियों से यह साफ है कि वे प्रचण्ड के इस कदम को अपनी राजनीतिक जमीन पर अतिक्रमण के रूप में देखते हैं। जनता समाजवादी पार्टी (जसपा) नेपाल के महासचिव रामकुमार शर्मा ने माओवादी नेता मातृका यादव पर कटाक्ष करते हुए कहा कि “मधेस की जमीन पर मधेस से नाममात्र के नेता को पीछे रखकर मधेस मुक्ति की बात करना माओवादी को शोभा नहीं देता।” इसी तरह, लोकतान्त्रिक समाजवादी पार्टी (लोसपा) नेपाल के महासचिव डॉ. सुरेंद्रकुमार झा ने प्रचण्ड को “परजीवी” कहकर तंज कसा और दावा किया कि “पहचानवादी मुद्दों को छोड़कर मधेस में मुक्ति की बात करना प्रचण्ड के लिए अनुचित है।” जनमत पार्टी के उपाध्यक्ष दीपक साह ने भी प्रचण्ड को “शिकारी” करार देते हुए चेतावनी दी कि माओवादी मधेस में जनता को भ्रमित करने की कोशिश कर रहा है।
इन टिप्पणियों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मधेसवादी दल माओवादी के इस अभियान को अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता के लिए खतरे के रूप में देख रहे हैं। कई नेताओं ने आरोप लगाया है कि प्रचण्ड सत्ता से बाहर होने के बाद ही मधेस की याद करते हैं, और यह अभियान उनकी सत्ता में वापसी की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। जेपी गुप्ता जैसे स्वतंत्र मधेसी नेता भी इस बहस में शामिल हुए और प्रचण्ड के “मधेस से प्रेम” के दावे को “हनी ट्रैप” (मधुर जाल) करार दिया, जिससे लगता है कि मधेस में प्रचण्ड की मंशा पर गहरा अविश्वास है।
दूसरी ओर, माओवादी नेताओं का तर्क है कि मधेसवादी दलों ने पिछले 10-12 सालों में मधेस की जनता को सिर्फ भ्रम में रखा और अपने निजी हित साधे। मधेसी राष्ट्रिय मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष जगत यादव ने कहा कि मधेसवादी नेताओं की टिप्पणियाँ “हार की मानसिकता” को दर्शाती हैं और माओवादी का अभियान मधेस की असली मुक्ति के लिए है। उनका यह भी दावा है कि मधेसवादी दलों ने सत्ता और कमीशन के खेल में मधेस को लूटा, जिसे अब माओवादी खत्म करना चाहता है।
निष्कर्ष: इस अटकल से यह संभावना उभरती है कि प्रचण्ड का मधेस भ्रमण और जागरण अभियान माओवादी के लिए मधेस में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की रणनीति हो सकता है, लेकिन मधेसवादी नेताओं की तीखी प्रतिक्रियाएँ इस बात का संकेत हैं कि यह अभियान मधेस की राजनीति में एक बड़े टकराव को जन्म दे सकता है। मधेसवादी दल इसे अपनी साख पर हमला मान रहे हैं, जबकि माओवादी इसे मधेस के इतिहास में अपनी भूमिका को फिर से स्थापित करने का मौका देख रहा है। आने वाले दिनों में यह अभियान मधेस की राजनीति को किस दिशा में ले जाता है, यह देखना दिलचस्प होगा।
यह अटकल मधेसी नेताओं की टिप्पणियों और उपलब्ध जानकारी पर आधारित है, जो वर्तमान संदर्भ में एक संभावित परिदृश्य प्रस्तुत करती है।