भूमि आयोग बना कार्यकर्ता भर्ती केंद्र ? केबल 2 अरब का प्रशासनिक खर्च !
अजय अनुरागी, काठमांडू, 4 मार्च 2025 । नेपाल में भूमि समस्या समाधान आयोग एक ‘सेतो हात्ती’ (सफेद हाथी) बनता जा रहा है। यह आयोग, जो भूमिहीनों को जमीन देने के लिए बनाया गया था, अब अपने प्रशासनिक खर्चों के कारण चर्चा में है। आयोग के पदाधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन और सुविधाओं पर सालाना 55 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो रहे हैं, जबकि इसके परिणाम संतोषजनक नहीं दिख रहे।
आयोग के पदाधिकारियों की सुविधाएं
आयोग के अध्यक्ष हरिप्रसाद रिजाल को राज्यमंत्री के समान सुविधाएं मिल रही हैं। उन्हें मासिक 67,530 रुपये वेतन, एक हल्का वाहन (ड्राइवर सहित), 150 लीटर पेट्रोल मासिक और त्रैमासिक 6 लीटर मोबिल दिया जाता है। वहीं, उपाध्यक्ष सनतकुमार कार्की को每月 60,490 रुपये वेतन, एक चार पहिया वाहन (ड्राइवर सहित), 100 लीटर पेट्रोल मासिक और त्रैमासिक 6 लीटर मोबिल मिलता है।
आयोग के छह सदस्यों – जगत बस्नेत, टेकबहादुर शाह, गोवर्धन कोली, गुञ्जबहादुर खड्का, अनिलकृष्ण प्रसाईं और आरती भण्डारी – को सचिव स्तर की सुविधाएं दी जा रही हैं। प्रत्येक सदस्य को मासिक 56,787 रुपये वेतन और वाहन के लिए 25,000 रुपये अतिरिक्त नकद मिलता है, हालांकि उन्हें वाहन उपलब्ध नहीं कराया गया है। इसके अलावा, अध्यक्ष को प्रतिदिन 2,500 रुपये, उपाध्यक्ष को 2,000 रुपये और सदस्यों को 1,600 रुपये भ्रमण भत्ता भी मिलता है।
वेतन पर भारी खर्च
अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन पर वार्षिक 15.36 लाख रुपये और छह सदस्यों के वेतन पर 58.88 लाख रुपये खर्च होते हैं। कुल मिलाकर, केंद्रीय स्तर पर पदाधिकारियों के वेतन पर सालाना 74.24 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं।
77 जिलों में नियुक्त अध्यक्षों को सह-सचिव स्तर का मासिक 52,417 रुपये और तीन सदस्यों को उप-सचिव स्तर का 45,881 रुपये वेतन मिलता है। जिलों में अध्यक्षों और सदस्यों के वेतन पर सालाना 5.90 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। इस तरह, केंद्र और जिला स्तर के पदाधिकारियों के वेतन पर कुल 6.64 करोड़ रुपये सालाना खर्च हो रहा है।
कर्मचारियों पर 51 करोड़ का बोझ
आयोग में केंद्र से लेकर जिला स्तर तक 73 नियमित कर्मचारी और 1,128 संविदा कर्मचारी कार्यरत हैं। इनमें 400 सर्वेक्षक (नायब सुब्बा स्तर) और 600 अमीन (खरिदार स्तर) शामिल हैं। औसतन 37,743 रुपये मासिक वेतन के हिसाब से इन कर्मचारियों पर सालाना 51.08 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। इस तरह, पदाधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन पर कुल वार्षिक खर्च 55.34 करोड़ रुपये तक पहुंच रहा है।
1,359 लोगों को जमीन के लिए 2 अरब का खर्च
पिछले आयोग (केशव निरौला के नेतृत्व में) ने 32 महीनों में 1,359 लोगों को लालपुर्जा (जमीन का मालिकाना प्रमाणपत्र) वितरित किया था। इस दौरान पदाधिकारियों, कर्मचारियों और अन्य प्रशासनिक खर्चों पर लगभग 2 अरब रुपये खर्च हुए। आयोग ने 6,000 बीघा जमीन बांटी, लेकिन इसके मुकाबले खर्च असंगत रूप से अधिक रहा।
कार्यकर्ता भर्ती केंद्र बना आयोग?
भूमि व्यवस्था मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने लोकान्तर को बताया कि आयोग का काम मौजूदा मालपोत और नापी कार्यालयों के कर्मचारियों से भी कराया जा सकता था। नए निकाय की जरूरत नहीं थी। उनका कहना है कि अगर मौजूदा कर्मचारियों को इस्तेमाल किया जाता, तो प्रशासनिक खर्च 10% तक सीमित रहता। लेकिन आयोग को कार्यकर्ताओं के लिए भर्ती केंद्र बनाकर अरबों रुपये खर्च किए जा रहे हैं।
नया लक्ष्य और चुनौतियां
वर्तमान आयोग (हरिप्रसाद रिजाल के नेतृत्व में) का दावा है कि 2026 तक 50,000 से 1 लाख परिवारों को जमीन दी जाएगी। हालांकि, पिछले आयोग द्वारा बांटे गए कई लालपुर्जों में रजिस्ट्री (स्रेस्ता) नहीं बनी है, जिसके कारण लाभार्थी जमीन का उपयोग नहीं कर पा रहे। नए आयोग को यह काम पूरा करना है।
11 लाख से अधिक आवेदन
विघटित आयोग में 10.96 लाख लोगों ने जमीन के लिए आवेदन दिया था, जिसमें 86,983 भूमिहीन दलित, 1.65 लाख सुकुम्बासी और 8.45 लाख अव्यवस्थित बसोबासी शामिल हैं। इनकी जांच और प्रमाणीकरण के बाद ही जमीन वितरण होगा।
अंतमें…
भूमि आयोग का मकसद नेक हो सकता है, लेकिन इसके संचालन पर होने वाला भारी खर्च सवाल उठा रहा है। अगर यह राशि सीधे जमीन खरीदकर वितरण में लगाई जाती, तो शायद ज्यादा लोगों को फायदा मिलता। क्या यह आयोग वास्तव में भूमिहीनों के लिए काम कर रहा है या सिर्फ एक महंगा प्रशासनिक ढांचा बनकर रह गया है? यह सवाल अब जनता के बीच चर्चा का विषय बन चुका है।