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राजनीति में महिला नेतृत्व की चुनौतियाँ

पवन जयसवाल, नेपालगंज । नेपाल में राजनीति में महिलाओं की सहभागिता बढ़ाने के लिए संवैधानिक व्यवस्थाएँ तो की गई हैं, लेकिन इनके व्यावहारिक कार्यान्वयन में अब भी जटिलताएँ बनी हुई हैं। संविधान सभा की पूर्व उप-सभामुख पूर्णाकुमारी सुवेदी ने नेपालगंज में आयोजित संडे क्लब कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि महिलाओं को अधिकार तो दिए गए हैं, लेकिन वे अब भी प्रभावी नेतृत्वकारी भूमिकाओं तक नहीं पहुँच पा रही हैं।

संघर्षमयी राजनीतिक यात्रा

विक्रम संवत २०१५ में जन्मीं पूर्णाकुमारी सुवेदी २०३४ साल से राजनीति में सक्रिय हैं। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में लंबे समय तक सक्रिय रहते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। जनयुद्ध के दौरान उनके संघर्षों की कहानी प्रेरणादायक रही है। उन्होंने बताया कि युद्ध के दौरान जब गोलियाँ उनके कान के पास से गुजरती थीं, तब भी उन्होंने मोर्चा संभाला और अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटीं। उन्होंने पारिवारिक और सामाजिक उलझनों की परवाह किए बिना पार्टी में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों को सँभालते हुए निरंतर आगे बढ़ने का सफर तय किया।

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महिला नेतृत्व और समाज में उनकी भूमिका

कार्यक्रम के दौरान उन्होंने महिला पत्रकारों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के साथ अपने संघर्ष की कहानियाँ साझा कीं और प्रतिभागियों के सवालों के जवाब भी दिए। पूर्णाकुमारी सुवेदी ने वेलायत (ब्रिटेन), वियतनाम, जर्मनी, थाईलैंड, चीन, स्पेन, फ्रांस और भारत सहित कई देशों का भ्रमण किया है। उन्होंने कहा कि राजनीति ही नहीं, बल्कि सभी क्षेत्रों में महिलाओं की निर्णायक भूमिका होनी चाहिए।

कार्यक्रम का उद्देश्य और प्रतिक्रिया

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इस कार्यक्रम का उद्देश्य समाज में प्रेरणादायक व्यक्तित्वों की कहानियों को उजागर करना, नेतृत्व विकास को प्रोत्साहित करना और समसामयिक समस्याओं पर चर्चा करना था। क्रियाशील पत्रकार महिला बाँके की अध्यक्ष सावित्री गिरी ने कहा कि ऐसी चर्चाओं से महिलाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी। नेपाल पत्रकार महासंघ बाँके के अध्यक्ष नवीन गिरी ने भी अपनी विचार साझा करते हुए कहा कि संघर्ष की कहानियाँ समाज को प्रेरित करती हैं और व्यावहारिक जीवन में सफलता दिलाने में सहायक होती हैं।

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संस्था की संस्थापक अध्यक्ष अक्षरी पोखरेल ने इस तरह के कार्यक्रमों को निरंतर जारी रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। महिलाओं के नेतृत्व को बढ़ावा देने और उनके अधिकारों को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए ऐसे संवाद महत्वपूर्ण हैं।

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