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संचार क्षेत्र की विभेद नीति

 २०६८ साल कार्त्तिक १५ गते तदनुसार अक्टुबर २ तारिक २०११ महात्म्ा गांधी की १४१वीं जन्म तिथि के अवसर पर राष्ट्रपति भवन में सम्माननीय राष्ट्रपति डा. रामवरण यादव ने महाकवि लक्ष्मी प्रसाद देवकोटा द्वारा लिखी गई अंग्रेजी कविता -सोनेट) ‘बापू’ का नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ और त्यागी नेता श्री रामहरि जोशी द्वारा हिन्दी भाषा में अनुदित ‘बापू’ किताब का विमोचन कार्य किया। यह पहला अवसर था, जब महात्मा गाँन्धी पर किसी नेपाली भाषी द्वारा हिन्दी में लिखी गई पुस्तक का राष्ट्रपति जी ने विमोचन किया। पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के सिलसिले में अपने छोटे से वक्तव्य में अनुवादक रामहरि जोशी ने कहा महाकवि लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा द्वारा बापू पर लिखे गये अंग्रेजी सोनेट का हिन्दी में रुपान्तरण करने के मेरे दो मुख्य उद्देश्य थे। एक हिन्दी के पाठक, खासकर भारतीय पाठक तक गांधी जी के प्रति महाकवि देवकोटा के उद्गार को पहुँचाना, दूसरा नेपाल-भात मैत्री सम्बन्ध को मजबूत करना। परन्तु यह देखकर सब को अत्यन्त आर्श्चर्य हुआ कि गांधी जी की पुण्य जन्मजयन्ती के अवसर पर रखे गए उस पुस्तक विमोचन समारोह में न तो भारतीय दूतावास के ही कोई प्रतिनिधि आए, न नेपाल के कोई नेपाली मिडिया के ही विद्युतीय संचार माध्यम के एक दो प्रतिनिधि को छोडÞकर कोई आए। कारण जो भी रहा हो, इससे देश के भीतर और बाहर कोई अच्छा संदेश नहीं जाता है। इस घटना से नेपाल में व्याप्त हिन्दी विरोध स्पष्ट हो जाता है तो नेपाल के संचार क्षेत्र में हिन्दी के प्रति व्याप्त संकर्ीण्ाता भी उद्घाटित होती है।

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रामहरि जोशी से रमेश झा की अन्तर्रवाता
 भूतपर्व प्रतिभा सम्पन्न लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा ने महाकाव्य, काव्य, निबन्ध, नाटक तथा अनुवाद जैसी विभिन्न विधाओं में मौलिक रचना देकर नेपाली वाङ्मय को समृद्ध करने के साथ-साथ गरिमा प्रदान किया है। देवकोटा इस युग के सवर्धक प्रसिद्ध कवि थे। उन को अनेक भाषाओं का ज्ञान था। उनका नेपाली और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। ये आशुकवि के रुप में जाने जाते हैं।
इनकी रचनाएँ गहरी मानवीय अन्तर्वेदनाओं तथा नवोत्थान की उदात्त भावनाओं से परिपर्ूण्ा है। कवि सम्राट माने जाने वाले इस महान कवि का जीवन संर्घष्ा और आर्थिक विपन्नता में ही बीता और उनकी जीवनलीला कैंसर जैसी भयावह रोग से खत्म हर्ुइ। अपने प्रगतिशील संवेदनाओं के कारण कवि सम्राट तानाशाह और निरंकुश राणा सरकार के कोपभाजन बने, जिसके कारण उन्हें भारत में तीन वर्षतक निवर्ाीसत जीवन बिताना पडÞा।
१९४र्८र् इ. के जनवरी ३० तारिख को महात्मा गाँधी की हत्या कर दी थी। उन दिनों देवकोटा निवर्ाीसत हो वाराणसी में ही रहा करते थे। बापू गांधी की त्रासदीपर्ूण्ा हत्या से कवि का कोमल हृदय व्यथित हो उठा और उनके अर्न्तर्मन की पीडÞा चतर्ुदर्शीय पद -सोनेट) के रुप में गाँधी के प्रति श्रद्धाञ्जली के रुप में ‘बापू’ रचना अंग्रेजी भाषा में प्रकट हर्ुइ।
देवकोटा द्वारा अंग्रेजी भाषा में रचित ‘बापू’ चतर्ुदर्शी पद का रुपान्तरण हिन्दी भाषा में वरिष्ठ कांग्रेसी त्यागी एवं वयोवृद्ध नेता रामहरि जोशी ने किया है। जोशी जी ‘बापू’ -खोनेट) का हिन्दी में रुपान्तरण करके हिन्दी की वैश्विक विशिष्टता को उजागर किया है। साथ ही नेपाल-भारत मैत्री सम्बन्ध को प्रगाढÞतर बनादिया है। इसी सर्न्दर्भ में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता, राजनीतिक विचारक एवं त्यागी समाजसुधारक रामहरि जोशी जी से रमेश झा द्वारा ली गई संक्षिप्त अन्तरवार्ता –
“बापू” हिन्दी रुपान्तरण करने का क्या उद्देश्य था –
–    बापू का हिन्दी में रुपान्तरण करने का मेरा मुख्य उद्देश्य है कि नेपाल के महाकवि देवकोटा की अन्तर्वेदना गांधी की हत्या के कारण किस प्रकार व्यक्त हर्ुइ है, इस को उजागर करना और दूसरा नेपाल-भारत मैत्री सम्बन्ध जो प्राचीनकाल से चला आ रहा है । उनके प्रागढÞतर बनाना तथा नेपाली भाषी के द्वारा अनुदित ‘बापू’ हिन्दी रुपान्तरण के माध्यम से नेपाल-भारत के पाठक गण राष्ट्रपिता बापू को जाने और उनको याद करें।
“बापू” हिन्दी रुपान्तरण के द्वारा महाकवि देवकोटा की कवित्व शक्ति के बारे में पाठक वर्ग में किस प्रकार की भावना उध्यासित होगी –
–    देवकोटा की नैर्सर्गिक प्रतिभा और कवित्व शक्ति तो बेजोडÞ थी । इसके बारे में नेपाली-अंग्रेजी भाषा-भाषी तो जानते ही हैं, उनकी बहुआयामिक प्रतिभा को हिन्दी रुपान्तरण ‘बापू’ के माध्यम से हिन्दी भाषा-भाषी और हिन्दी पाठक गण भी जाने, यह मेरा उद्देश्य था।
राष्ट्रपति द्वारा विमोचित “बापू” पुस्तक विमोचन कार्यक्रम को संचार माध्यम में जगह न दिय जाने के कारण आप को कैसा लगा – या आपको क्या ठेस पहु“ची –
–    इस कार्यक्रम को संचार माध्यम में स्थान न दिए जाने से मेरे मन में मिश्रति भावनाएँ उपजी। खुशी की बात यह थी कि नेपाल के सम्मानीय राष्ट्रपति के द्वारा ‘बापू’ पुस्तक विमोचित हुआ, जो किसी भी कवि-लेखक के लिए सौभाग्य की बात हर्ुइ। पर दुःख की बात यह हर्ुइ या आर्श्चर्य की बात यह लगी कि उस समारोह में किसी भी विद्युतीय संचार माध्यम के प्रतिनिधि लोग नहीं आये, जबकी सबको निमन्त्रित किया गया था। ऐसा क्यों हुआ – कहीं ऐसा तो नहीं है कि नेपाल के सभी विद्युतीय संचार माध्यम ‘बापू’ पुस्तक हिन्दी में होने के कारण इसका बहिष्कार किया – इसका बहिष्कार करने का एक ही अर्थ है कि नेपाल में साम्राज्यवाद की बूआ रही है। इसी लिए ‘बापू’ हिन्दी कार्यक्रम में संचार माध्यम सहभागी नहीं हुआ और अपने-अपने संचार माध्यम से समाचार प्रेषित करने का विचार भी नहीं किया। यदि ऐसा है तो इससे उनका हिन्दी भाषा के प्रति संचार माध्यमों की भाषिक संकर्ीण्ाता ही उजागर होती है, जो अत्यन्त दर्ुभाग्यपर्ूण्ा बात है। इससे लगता है कि नेपाल में अभी भी भाषिक साम्राज्यवाद स्थापित ही है। नेपाली भाषियों की संकर्ीण्ा सोच और व्यवहार के कारण ०६३-६४ वि.सं. में तर्राई में प्रतिक्रिया स्वरुप तर्राई आन्दोलन के रुप में ज्वालामुखी की तरह एकाएक भडक उठा।
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– नेपाल में आज की वर्तमान राजनीति बहुत ही जटिल है और राजनीतिक जटिलता और भी घनीभूत होती जा रही है। कहना मुमकिन है कि देश में व्याप्त विषम परिस्थिति देश को कहाँ ले जाएगी,कहना कठिन है। व्याप्त जटिलता के सरल करने का उत्तरदायित्व हमारे राष्ट्र के राजनीतिज्ञों, राजनेताओं और नीति निर्माताओं का है। लेकिन कोशों दूर तक दिखाई नहीं पडÞता है कि वर्तमान जटिलता के प्रति राजनीतिज्ञ लोग गंभीर नहीं है। बल्कि पार्टर्ीी हित या व्यक्तिगत स्वार्थ को ही पूरा करने में लगे हैं। जबकि ०६१-६२ का राष्ट्रव्यापी आन्दोलन के द्वारा जनता ने मुख्य दो मैण्डेड दिए थे। प्रथम शान्ति स्थापना, द्वितीय संविधान बनाना। जो कि ऐसा नहीं हो रहा है। जब तक नेता गण अपने-अपने पार्टर्ीी हित और व्यक्तिनिष्ठ स्वार्थ से ऊपर उठकर नहीं सोचेंगे, तब तक देश में व्याप्त जटिलता का हल नहीं निकल सकता है। यदि ऐसी ही स्थिति बनी रही तो यहाँ जनव्रि्रोह, अराजकता और विदेशी व्यक्तियों का हस्तक्षेप और बढÞता ही जाएगा।
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