अपने ही अधिकार से वंचित क्यों ?: कृष्णा झा
नारी शब्द के साथ जो छवि उभरती है वो होती है एक नाजुक और कोमल व्यक्तित्व जिसका सर्वगुण सम्पन्न होना भी आवश्यक है । आज की नारी बहुत आगे बढ़ गई हैं, इसमें कोई शक नहीं है किन्तु, अनुपातिक दृष्टि से देखा जाय तो वो आज भी अपने आप से ही अपरिचित है । उन्हें स्वयं नहीं पता कि समाज, देश और देश की राजनीति में उन्हें क्या अधिकार प्राप्त हैं और उनका उपयोग वो कैसे कर सकती हैं ।
जनसंख्या की दृष्टिकोण से आधी आबादी महिलाओं की है । इसलिए यह तो मानी हुई बात है कि बिना उसके विकास के देश या समाज का विकास सम्भव नहीं है । देश के प्रधानमंत्री सुशील कोईराला जी ने भी महिला दिवस के अवसर पर यह बात मानी कि देश का विकास नारी के विकास के बिना असम्भव है । नेतागण भाषण देते हैं । महिलाओं को सम्मान मिलना चाहिए, महिला के विरुद्ध हो रही हिंसा की घटनाओं को रोकना चाहिए । महिला सशक्तिकरण के लिए एकता की आवश्यकता है ये सभी बातें नेताओं के भाषण में शामिल होती हैं । कुछ कानून भी बने हैं पर यह उपयोग में नहीं आते हैं ।
नेपाल के संविधान निर्माण का कार्य निर्णायक मोड़ पर है । सभी अपने–अपने अधिकारों के लिए पहल कर रहे हैं । किन्तु महिलाओं के विषय पर सोचने की फुरसत किसी को नहीं है । न तो महिला नेताओं को इस विषय में पहल करना है और न ही पुरुष नेताओं को ।
आज भी महिलाएँ घर की चारदीवारी में कैद है । उसे अभी भी इंसान कम माँ, बेटी, बहन, पत्नी के ही रूप में पहचाना जा रहा है । आखिर उसे उसकी पूरी पहचान कब मिलेगी ? नए संविधान में महिलाओं के लिए क्या निर्धारित किए जा रहे हैं इस पर सभी को विचार करने की आवश्यकता है । संविधान में यह व्यवस्था होनी चाहिए कि महिला और पुरुष में कोई भेदभाव ना हो । नागरिकता की व्यवस्था समान हो । पुरुष विदेशी महिला से शादी करती है तो उसे सहज ही नागरिकता मिल जाती है और अगर कोई लड़की विदेशी पुरुष से शादी करती है तो उसके पति को नागरिकता नहीं मिलती । ऐसे कानून में संशोधन की आवश्यकता है । संविधान में लैंगिक समानता पर बल देने की आवश्यकता है । अभी आवश्यकता है कि हर बात पर ध्यान देना चाहिए कि कहीं कोई पक्ष छूट ना जाय और महिला किसी अधिकार से वंचित ना रह जाए । संविधान द्वारा दिए गए ३३ प्रतिशत के अधिकार का नेता उपयोग नहीं कर पाए और यह घट कर २८ प्रतिशत हो गया है । आज भी महिलाओं के लिए सशक्त आवाज उठाने के लिए नेतृत्व की कमी है । पार्टीगत सोच भी अगर देखा जाय तो वहाँ भी महिलाएँ पीछे ही है । महिला नेताओं में इच्छाशक्ति की कमी है और यही कारण है कि ना तो वो पुरजोर आवाज उठा रही हैं और ना ही उनकी आवाज कोई सुन रहा है । संविधान निर्माण में भी महिला नेताओं की कोई भूमिका नहीं है ।
अगर सरकारी निकाय की भी बात करें तो वहाँ भी महिलाओं की संख्या नगण्य ही है तो समानता की बात तो कहीं दिखती ही नहीं है । कानूनन महिलाओं को जो भी अधिकार प्राप्त है महिला स्वयं उससे अन्जान हैं । इसके लिए संचार माध्यम के द्वारा सचेतना कार्यक्रम लाना चाहिए, पत्रकारिता के द्वारा भी महिलाओं की समस्याओं को उठाना चाहिए ।
ऐसा नहीं है कि महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन नहीं हुआ है पर जिस अनुपात में होना चाहिए वह नहीं हुआ है । समाज के दृष्टिकोण में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है । आज भी महिलाएँ पिछड़ी हुई हैं और इसके पीछे अशिक्षा, परम्परा, रुढि़गत सोच ही कारण बने हुए हैं । नेपाल की अधिकांश महिलाओं का जीवन दुखदायी है । आज भी वो बलात्कार और अत्याचार का शिकार हो रही है । इसके भी पीछे कहीं ना कहीं पुरुषों मे शिक्षा की कमी नजर आती है । इसकी वजह से उनकी सोच में परिवर्तन नहीं हो रहा है । आज भी महिलाओं के लिए वो नकारात्मक सोच ही अपनाए हुए है ।
समाज परिवर्तन राजनीतिक परिवर्तन के द्वारा ही सम्भव है । परम्परागत सोच और कुरीतियों को कम करने के लिए शिक्षा का प्रचार और प्रसार आवश्यक है । महिलाओं के प्रति विभेद, शोषण और दमन की सोच जब तक नहीं बदलेगी तब तक समाज और देश में महिलाओं की स्थिति नहीं सुधरेगी । इसके लिए सरकारी तंत्र और खुद महिलाओं को जगने की आवश्यकता है ।