क्यों कम नहीं हो रही महिला हिंसा ?: विभा दास
विश्व की अधिकांश महिलाएँ शताब्दियों से असमानता और विभेद के दायरे में जीने के लिए विवश हैं । नेपाल की कुल जनसंख्या की आधी आबादी महिलाओं की है फिर भी सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, राजनीतिक, प्रशासनिक सभी क्षेत्रों में महिलाओं की पहुँच और उपस्थिति बिल्कुल कम है । महिलाएँ राज्य के हर पक्ष से पीडि़त हैं खास कर के मधेश की महिलाओं की सहभागिता तो ना के बराबर है । महिलाएँ आज भी दूसरे दर्जे के रूप में ही जी रही है ।
समाज वर्षों से पितृसत्तात्मक संरचना के साथ ही चलता रहा है और सदियों से इस समाज में महिला शोषण, दमन, यातना तथा हिंसा को सहती और भोगती आ रही हैं । इसी समाज में जीना और दमनजन्य पीड़ा को सहना उनकी बाध्यता हो गई है । आज भी देश में लैंगिक विभेदता के कारण असमानता, साधन और स्रोत में उनकी पहुँच और प्रयोग के अवसर में कमी, आर्थिक परनिर्भरता, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की कमी सबसे महिला वर्ग जूझ रही है ।
क्या सच में महिला पुरुष से कमजोर है ? जो स्त्री स्वयं सृष्टि है जिसमें प्रजनन की क्षमता है, जो समाज की संरचना में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है वह कमजोर कैसे है ? प्रसव पीड़ा सिर्फ महिला सह सकती है और यही कारण है कि उसमें धैर्य और सहनशीलता पुरुषों की अपेक्षा कहीं अधिक है । जाहिर सी बात है कि सृष्टि की संरचना में जितनी आवश्यकता पुरुष की है उतनी ही नारी की, फिर नर से नारी अलग कैसे हुई और उसके प्रति समाज का नजरिया इतना विभेदपूर्ण क्यों है ? क्यों बेटी के नाम पर समाज डरता है ? क्यों बेटियाँ पैदा होने से पहले मार दी जाती हैं ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो हर बेटी इस समाज से पूछती रही है पर इसका जवाब नहीं मिलता ।
विश्व में महिला अधिकार और मुक्ति के लिए समय समय पर जो संघर्ष हुए उस पर अगर दृष्टि डाली जाय तो कई बातें स्पष्ट होती हैं । फ्रान्स की राज्यक्रान्ति के दौरान हुए युद्ध की समाप्ति के लिए ग्रीस की महिला लाईसिसट्र ने महिला हड़ताल शुरु किया । महिला आन्दोलन एक आधुनिक अभियान था जो सन् १९१० मार्च ८ में प्रारम्भ हुआ । इसी दिन चीन, ब्राजील, डोमिनिटिक गणतन्त्र संयुक्त राज्य अमेरिका की कुछ महिलाओं ने मिल कर आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक असमानता हटाने के लिए और महिला अधिकार कायम करने के लिए आवाज उठाई । इसी दिन को स्मरण करते हुए हर वर्ष ८ मार्च को अन्तरर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है । पर एक जो सवाल हमेशा मन को झकभोरता है कि क्या मात्र एक दिन को मना लेने से महिलाओं की स्थिति सुधर जाएगी ? रोज महिलाएँ हिंसा का शिकार हो रही हैं । अपने पराए के हाथों बलात्कृत हो रही हैं । कभी दहेज के नाम पर, कभी कुरीतियों के नाम पर वो मारी जा रही हैं । आखिर यह कब दूर होगा ?
नेपाल के अन्तरिम संविधान २०६३ के भाग ३ धारा २० में महिला का मौलिक अधिकार सुनिश्चित है । घरेलु हिंसा(कसूर और सजा) ऐन २०६६ और घरेलु हिंसा नियमावली २०६७ बनाई गई है । पर यह सिर्फ कानून की किताब तक ही सीमित है ऐसा लगता है । क्योंकि महिला हिंसा में कोई कमी दिखाई नहीं दे रही है । जबतक समाज के निर्धारित पक्षों में सुधार नहीं होगा, पितृसत्तात्मक समाज का अन्त नहीं होगा और राजनैतिक सहभागिता उन्हें नहीं मिलेगी तब तक स्थिति में सुधार होने की कोई सम्भावना दूर–दूर तक दिखाई नहीं देती है ।