बेटिया“ बोझ क्यों ?: खुशबु गुप्ता
माँ चाहिए…., बहन चाहिए…., पत्नी चाहिए…., फिर बेटी क्यों नही ?
बेटी है कुदरत का उपहार, मत करो इसका तिरस्कार । बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, एक आदर्श माँ–बाप कहलाओ । जीने का उसका भी उसका अधिकार, बस चाहिए आपका प्यार । आपकी लालसा है बेकार, बिन बेटी के न चले संसार । ऐसा कोई काम नहीं जो बेटियाँ न कर पाई हो । आप अवसर दें तो वो आसमान से तारे भी तोड़ लाएगी । दुल्हन ना हो तो दुल्हा कुँवारा रह जाय, तब क्या होगा इस संसार का, कौन चलाएगा आपका वंश ?
यह सवाल किसी एक बेटी का नहीं है । यह हर वह बेटी समाज से सवाल कर रही है जिसे जन्म लेने से पहले आप मार देते हैं । क्या कसूर होता है उसका ? इतना ही नहीं वो बेटी भी आप से सवाल कर रही है जिसे दुनिया में लाते तो हैं पर उसके साथ आपका व्यवहार विभेदपूर्ण होता है ।
आखिर बेटियाँ भी इन्सान है, उसे भी जीने का हक अधिकार दो । ना आधा ना कम उसे भी पुत्र के समान प्यार दो । हाथ में झाड़ू नहीं कलम दो, चूल्हे का धूआँ नहीं शिक्षा का प्रकाश दो । आज की बेटियाँ सीता नहीं है जिसे शक की वजह से राम ने त्यागा या जिसे अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए अग्निपरीक्षा देनी पड़ी । आज की बेटियाँ अबला नहीं है, सबला है, वो कल्पना चावला बनकर आसमान छू सकती है । बस उसे एक खुला आसमान दें, एक परवाज दें, फिर देखें उसकी ऊँची उड़ान को ।
कुछ दशक पहले की बात थी जब व्यापक भेदभाव था बेटे और बेटी में । वक्त बदला है पर उतना नहीं कि हम इस बदले हालात पर गर्व कर सकें । आज भी शिक्षा की रोशनी से बेटियाँ क्यों वंचित है ? बेटी को लक्ष्मी कहने वाली परम्परा में बेटियों को क्यों बेचा जा रहा है ? क्यों बहुएँ दहेज की बलिवेदी पर होमी जा रही हैं ? क्यों नररूपी हैवान अपनी हवस का शिकार बेटियों को बना रहा है ।
संचार माध्यम में हर रोज इन से जुड़ी घटनाएँ हमें डराती हैं । यह भी सच है कि ऐसी कई घटनाएँ संचार माध्यम तक पहुँच भी नहीं पाती होगी । कब यह समाज एक नई सोच के साथ आगे बढ़ेगा ? कब बेटियाँ सम्मान के साथ जी पाएँगी ? कब उन्हें उनके हिस्से का हक मिलेगा ? कब वह बिना डर के कहीं भी आ जा पाएँगी ? ये सारे सवाल हम बेटियों के हैं ।
यह तो स्थापित सत्य है कि नर और नारी दोनों का महत्व समान है । शिक्षा का कार्य व्यक्ति के विवेक को जगाकर उसे सही दिशा प्रदान करना है । प्रगति का माध्यम शिक्षा है । और इसी से बेटियों को वंचित किया जा रहा है । विश्व संघर्ष को जीतने के लिए चरित्र शस्त्र की आवश्यकता होती है । यदि नारी जाति अशिक्षित हो तो, वह अपने जीवन को विश्व की गति के अनुकूल बनाने में असमर्थ रही है । एक नारी अगर शिक्षित होती है तो वह एक परिवार, समाज, देश को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती है । वह कँधे से कँधा मिलाकर आगे बढ़ना जानती है ।
नेपाल की आधी आबादी नारियों की है और इस आधी आबादी का कुछ हिस्सा ही शिक्षित है बांकी अशिक्षा के अन्धकार में जीने को बाध्य है । बहुत आवश्यक है कि सरकार इस ओर अपेक्षित ध्यान दे । शिक्षा को सुलभ बनाए और सुदूर प्रांत में जो नारियाँ हैं उन तक शिक्षा की रोशनी पहुँचाए । ताकि यह देश, समाज शोषणरहित, हिंसारहित और सुन्दर समाज का निर्माण हो सके । रुढि़वादी परम्पराओं और कुरीतियों का अंत होना आवश्यक है । नारी पुरुषों से आगे नहीं बल्कि उसके कदम से कदम मिलाकर चलना चाहती है और इसके लिए उसे अवसर प्रदान करना ही होगा तभी एक सुन्दर और स्वस्थ समाज की स्थापना हो सकती है ।