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ramesh jhaवि. स. २०७२ शनिवार १२ गते के ११ः५४ वजे आये महाभूकम्प से नेपाल की धरती थर्रा उठी ओर चारो ओर चीत्कार होने लगी । पुराने घर ताश के पत्ते की तरह भड़भड़ा कर गिरने लगे, घरों के गिरने से वातावरण धूलधूसरित हो गया । लोगों को लगने लगा कि अब क्या होगा ? क्योंकि आधे घंटे तक आये महाभूकम्प से धरती दोलायमान होती रही । लोगों की चीत्कार, चिल्लाहट भागदौड़ से लगने लगा था कि संहार के देवता श्मशानवासी शिव के त्रिनेत्र की ज्वाला से सबकुछ भस्मीभूत हो जाएगा । १२ गते शनिवार की महाभूकम्प से लोगों को एहसास हो गया कि – कोई ऐसी अदृश्य शक्ति होती है जो एक क्षण में कुछ भी कर सकती है–‘क्षणादूध्र्वं न जानामि विधाता किं करिष्यति’ अर्थात् विधाता एक क्षण में क्या कर देगा कोई नहीं जानता । यही अक्ल्पनीय घटना अदृश्य शक्ति द्वारा शनिवार ११ः५४ घटायी गई ।  जिससे विनाश का ताण्डव चारो ओर मच गया । महाभूकम्पीय प्रहार से प्रताडि़त जनता अनेक समस्याओं से जूझने को बाध्य है । कहीं अपने परिजनों से बिछोड़ से, तो कहीं वासस्थान के अभाव से तो कहीं भोजन–पानी के अभाव से तो कहीं अव्यवस्थित रूप में मल–मूत्र त्याग से होनेवाले महामारी से जनता दिन रात जूझ रही है । उक्त सभी विषम अवस्थाओं से जूझते हुए लोगाें की दयनीय स्थिति को संचार माध्यमों मे देखा–पढ़ा तो मानवीय संवेदना जवाब देने लगी । किन्तु यह समय रोने, चिल्लाने, शोकाकुल होने के बजाय धैर्य धारण करने का है । शोक को शक्ति में बदलने का है । हरेक सक्षम व्यक्ति को अपने अपने स्तर से विशेष प्रभावित व्यक्ति या क्षेत्र को राहत प्रदान करने का समय है । डरकर, त्रसित होकर सरकार को गाली देकर नहीं अपने अपने स्तर से यथाशक्ति मानवीय सहयोग देकर दैवीय आपदा से लोगों को उबारने का वक्त है ।
इस दैवीय विपदा के कारण मरने वालों के प्रति भावपूर्ण श्रद्धाञ्जली, संकट में पड़े लोगाें का दुःखदर्द यथाशीघ्र दूर हो भगवान से ऐसी प्रार्थना करते हुए हरेक दैवीय विपत्ति के बाद आनेवाले विषम अवस्था के दुष्प्रभाव से बचने के लिए अपनाये जानेवाले सावधानियों के बारे में जानकारी करना कर्तव्य समझकर हिमालिनी के माध्यम से जन समक्ष सम्प्रेषण करने की कोशिश कर रहा हूं ।
यह प्राकृतिक नियम है कि जव कभी कोई विनाशकारी विपति आई है तो इसके कुछ दिन बाद सामान्य से समान्य सावधानी न अपनाने से अनेक प्रकार के महामारी फैलने के अनेक उदाहरण हमारे सामने मौजूद है । अभी ही काठमान्डू के ललितपुर में ही महाभूकम्प के बाद पीने योग्य पानी तथा जनसमूह के आसपास फैली गन्दगी की सरसफाई के प्रति ध्यान न देने से कुछ स्थानों में हैजा जैसे रोग की समस्या लोगों मे घर करने लगी । इस समय सम्भावित महामारी की उपेक्षा की गई अथवा सावधानी नहीं वरती गई तथा पुनस्र्थापना नहीं की गई तो दूसरी महामारी फैलने की समस्या उपस्थित हो सकती है । अतः भूकम्प से प्रभावित लोग विभिन्न खुले मैदान में आकाश के नीचे रहने को बाध्य है । ऐसे स्थानो ंमे सरसफाई की समुचित व्यवस्था होना जरूरी है । साथ ही महाभूकम्प हुए ११ दिन हो गया पर उद्धार कार्य, पुनस्र्थापना कार्य प्रभावकारी रूप में नहीं हो पा रहा है और न ही खण्डहर बने घरों के नीचे दबे शवों तथा चौपायों को निकालने का काम पूर्णरूप से हो पाया है । जिससे महामारी फैलने के डर से आम जनता त्रस्त है । इस समय, समय रहते सावधानियां न बरती जाय तो संक्रामक रोगाणुओं की वृद्धि होगी जो रोग फैलने के मुख्य कारण होते है । जीवाणु, किटाणु तथा विषाणु यही रोग फैलाने में मुख्य कारण होते हैं । इनकी उत्पति विशेष कर मलमूत्र, कफ, खकार, सड़ीगली वस्तुओं के अव्यवस्थित रूप से होती है । ऐसे प्राकृतिक विपत्ति के समय सावधानियों को न अपनाये जाने से स्वाभाविक अवस्था के प्रतिकूल जीवाणुयुक्त गन्दगी विशेष कर फैल जाती है । समुचित भोजन पानी नहीं मिलता है, दवाओं का अभाव तथा अस्पताल एवं चिकित्सक लोग विपत्ति प्रभावित लोगोंं के उपचार एवं व्यवस्थापन करने में ही मुख्यतः केन्द्रित रहते हैं । तसर्थ सामान्य रूप में संक्रमित हो रहे रोगियों के प्रति अस्पताल और चिकित्सक गण अपेक्षित समय नहीं दे पाते । ऐसी अवस्था में प्रभावित क्षेत्रों में हैजा, जॉन्डिस, टाईफाईड आदि जैसे रोगो से संक्रमित हो एक दूसरी महाविपत्ति की आशंका लोगों के मन मे घर करने लगी है । जो स्वभाविक है । इतिहास साक्षी है कि विनाशकारी भूकम्प, बाढ़, सुनामी आने के बाद सावधानी न अपनाने पर महामारी आती ही है । हाइटी सन् २०१० में महाभूकम्प के बाद आई दूसरी महाविपत्ति हैजा से हजारों लोग मरें जो साबित करती है कि ऐसी स्थिति में सावधानी बरतनी जरुरी है । ऐसे समय में लोगों को चाहिये कि आतंकित होने के बजाय छोटी छोटी सावधानियों को अपनाकर सम्भावित महामारी से बचा जाय । सर्वप्रथम महामारी से बचने के लिए विशेष प्रभावित क्षेत्रों में खण्डहर बनें घरों के नीचे दबे लाशों, पालतू मवेशियाें, पंक्षियों को यथाशीघ्र उद्धारकर्मियों द्वारा निकालकर उचित व्यवस्थापन करने की जरुरत है । इस कार्य को करने के लिए युद्धस्तर पर सरकार, सामाजिक संघ–संस्थाओं तथा व्यक्तियों के बीच समन्वय कर विशेष तत्परता अपनाने की आवश्यकता है । महामारी फैलने के डर से ही काठमाडू उपत्यका से आठ लाख से अधिक लोगों का बहिर्गमन हो चुका है । यह  तथ्यांक संञ्चार माध्यमों का है । ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अधिक मानवीय क्षति के साथ–साथ गाय, भैंस, बकरी, भेंड़ आदि मवेशी घरों के नीचे दबे पड़े हंै जो सड़ने लगे हैं । वहां उचित व्यवस्थापन में ढिलाई के कारण महामारी की आशंका बढ़ गई है । अतः उद्धारकार्य में संलग्न सरकारी–गैरसरकारी अन्तर्राष्ट्रीय उद्धारकर्मियों को विशेष प्रभावित ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान इस समस्या की ओर अविलम्व ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक है ।
विपत्ति के समय रोग नियन्त्रण विधि की बड़ी ही भूमिका होती है । तसर्थ इस दुःखद स्थिति में हरेक व्यक्ति को स्वयं सावधानी अपनाने की उतनी ही जरुरत है । छोटी–छोटी सावधानी अपनाने से सम्भावित संक्रामक महामारियों से अपने आप को बचा सकते हंै । अतः सर्वसाधारण लोग यथाशक्य पानी उबालकर पीएं, पानी उबालने की स्थिति ना हो तो पानी में क्लोरिन की गोली अथवा पीयूष मिलाकर पानी प्रयोग करें । फलफूल तरकारी आदि साफ पानी से धोकर प्रयोग करें । बासी खाद्यवस्तु न खाएं । भोजन से पूर्व साबुन, डिटोल से अच्छी तरह हाथ धोकर भोजन करें । अस्थायी बसोबास के पास अस्थायी शौचालय की व्यवस्था कर उस का प्रयोग करें । शौचादि करने के बाद अवश्य डिटोल साबुन से हाथ धोना ना भूलें । बच्चाें को साफ सुथरे जगह पर खेलने दें और समय–समय पर साबुन पानी से हाथ धुलवाएं । हो सके तो खाना खाते समय प्लास्टिक चम्मच प्रयोग करें । संक्रामक ग्रस्त व्यक्ति से दूरी बनायें रखें । इस समय मछली और मांस खाने से परहेज करें । लोगों के बीच रहते समय मास्क प्रयोग करें । स्थायी शिविर में बसोबास करते समय कोई अस्वस्थ हो जाय तो उसे तत्काल स्वास्थ्य चौकी में भर्ती कराएं । स्थायी शिविर में रहते समय लोगों को स्वास्थ्य चौकी या स्वास्थ्यकर्मी का मोबाईल नम्बर अवश्य रखें ताकि जरुरत पड़ने पर उन लोगाें से शीघ्र सम्पर्क कर सकें । ऐसी कुछ सावधानियां अपनाकर महामारी से हम बच सकते हैं ।
ऐसी दुःखद घड़ी में मात्र सरकारी निकायों पर दोषारोपण करने के बजाय स्वास्थ्य सुरक्षाप्रति सर्वसाधारण नागरिकों को स्वयं ध्यान देना चाहिये और सरकार को भी चाहिये कि देश के विभिन्न स्थानों में विगत में आए महामारी वाले घटनाओं से अनुभव बटोरकर महामारी को रोकने के लिए अपने सभी स्वास्थ्य से सम्बन्धित निकायों जैसे स्वास्थ्य अनुसन्धान परिषद, जनस्वास्थ्य प्रयोगशाला इपिडिमियोलोजी महाशाखा तथा अस्पतालों के बीच समन्वय बनाकर सक्रियता साथ तत्काल कार्यान्वयन करने की योजना बनाएं । किसी भी महाबिपत्ति के समय स्वास्थ्य की  उपेक्षा होती है तो इससे सर्वसाधारण जनता महाबिपत्ति का शिकार होने के साथ –साथ देश भी संकट में फंस जाता है । तसर्थ ऐसे समय में सरकार एवं नागरिकों की ओर से संवेदनशीलता, उदारता, सक्रियता एवम् स्पष्ट दायित्वबोध दिखाने की जरूरत होती है ।
यहां मै सरकार से यह भी अनुरोध करना चाहता हूँ कि समय के साथ अकल्पनीय पीड़ा कम होती जा रही है पर विशेष प्रभावित लोगों को अपेक्षित सहयोग राशि यथाशीघ्र मिले जिससे भावी जीवन सुखमय बनें । और सहयोग राशि देने में किसी भी तरह से भ्रष्टाचार ना हो इसके लिए स्वयं प्रधानमन्त्री को निगरानी रखनी चाहिये । क्योंकि विश्वभर से दातृदेशों का योगदान प्रशंसनीय रहा है इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिये । निराश्रित व्यक्तियों को यथाशीघ्र आश्रय मिले यही सभी का कर्तव्य होनो चाहिये ।
उपनिषद् का यह वचन ध्यान देने योग्य है– सह नौ भुनक्तु, सह नौ अवतु, सहवीर्यं करवा वहै । तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषा वहै ।।





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