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एमाओवादी सभासद् यादव ने मधेश अलग करने की दी चेतावनी, कहा अधिकार बिहीन संविधान नहीं चहिये

उमेस यादव
उमेस यादव

कुमार अमरेन्द्र



सप्तरी, २३ जुलाई |  संविधान–मसौदा ऊपर किया गया सुझाव संकलन में मधेशी जनता ने चेतावनी दिया है कि स्वतन्त्र मधेश प्रदेश सहित का संविधान नहीं आया तो यह स्वीकार्य नहीं होगा । उनका कहना है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो मधेशी जनता मधेश को ‘अलग ही देश’ बनाने के लिए क्रियाशील हो जाएंगे । एकीकृत माओवादी के सभासद तथा पार्टी केन्द्रीय सदस्य उमेशकुमार यादव को भी जनता ने यही चेतावनी दी है । सप्तरी क्षेत्र नम्बर ३ से प्रत्यक्ष निर्वाचित सभासद् यादव का भी मानना है– अगर नाम और सीमा बिहीन संविधान घोषणा किया गया तो मधेशी जनता उसको स्वीकार नहीं करेगी ।
संविधान के पहला मसौदा लेकर अपने निर्वाचन क्षेत्र पहुँचे यादव को वहाँ की जनता ने सुझाव दिया है कि संविधान लाना है तो नामांकन और सीमांकान सहित के विभेद रहित संविधान लाना होगा । मतदाता की राय-सुझाव के लिए यादव श्रावण ४ और ५ गते सप्तरी जिला पहुँचे थे । सभासद यादव दावा करते है– राज्य से असन्तुष्ट मधेशी जनता और मधेशी मोर्चा के कार्यकर्ताओं के अवरोध के बावजुद भी जनमत संकलन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ है । लेकिन, सुझाव संकलनस्थल सप्तरी सदरमुकाम राजविराज के जिविस हल में देखने से प्रश्न उठता है कि यह दावा कितना सच है ? जहाँ सशस्त्र पुलिस के घेराबन्दी में सुझाव संकलन हो रहा था और वहाँ जनता से ज्यादा सरकारी कर्मचारी थे ।
सभासद यादव कहते है, ‘संघीयता और अधिकार बिहीन संविधान निर्माण के प्रति मधेशी जनता अत्यन्त असन्तुष्ट और आक्रोशित हैं । सुझाव देनेवालों में से अधिकांश जनता ने कहा है कि पहचान और स्वायत्तता सहित की संघीयता होना चाहिए ।’ उन्होंने आगे कहा– ‘मधेशी जनता ने हमें चेतावनी दी है कि उनके अनुसार संघीय राज्य निर्माण नहीं किया गया तो अलग ‘मधेश राष्ट्र’ निर्माण के लिए जनता अग्रसर हो जाएंगे ।’
प्रत्यक्ष निर्वाचित सभासद् यादव के नेतृत्व में किया गया उक्त सुझाव संकलन कार्यक्रम में कांग्रेस से मनोनित सभासद् सकलदेव सुतिहार, समानुपातिक सभासद् रन्जु ठाकुर (एमाले) और मिथिला चौधरी (नेकपा संयुक्त) भी सहभागी थे ।
एमाओवादी सभासद् यादव के अनुसार मधेशी जनता ने मसौदा के प्रस्तावना को भी अस्वीकार किया है । यादव कहते है, ‘जहाँ जनयुद्ध, जनआन्दोलन शब्द लिखा गया है, लेकिन संघीयता के जननी ‘मधेश आन्दोलन’ नहीं लिखा गया है । इसके साथ–साथ राज्य सम्बन्धी परिभाषा भी स्पष्ट नहीं है । मधेशी जनता चाहती है कि परिभाषा में ‘राज्य संघीय होते है’ किया जाए ।’
जनकथन को उद्धृत करते हुए सभासद यादव कहते है कि अन्तरिम संविधान के प्रावधान और पहली संविधानसभा में किया गया सहमति विपरीत मस्यौदा में समानुपातिक और समावेशी प्रावधान को हटा दिया गया है । उनका मानना है कि इससे केन्द्रीय विधायिका और प्रान्तीय संसद में मधेश का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा । मतदाता की कथन को उद्धृत करते हुए यादव आगे कहते है, ‘नागरिकता सम्बन्धी व्यवस्था भी २०१९ साल के पञ्चायती व्यवस्था से भी पीछे जा चुका है, जो लाखों मधेशी को नागरिकता बिहीन बना देगा ।’ उनका मानना है कि अगर मधेशी पुरुष भारतीय महिला से विवाह करते हैं तो उनकी सन्तान कभी भी वंशज की नागरिक नहीं हो पाएंगे । भाषा अधिकार के सन्दर्भ में भी यह मस्यौदा मधेश के प्रतिकुल है ।
भाषा के ही कारण पाकिस्तान से बंगलादेश अलग होने का उदाहरण देते हुए जनता ने सभासद यादव को चेतावनी दी है कि अगर नेपाल में भी ऐसा हुआ तो वही इतिहास यहाँ भी दुहरा जाएगा । मधेशी जनता ने सुझाव दिया है कि बहुभाषिक नीति के अनुरुप शासन–प्रशासन में भाषा का प्रयोग होना चाहिए ।

हिन्दी अनुवाद http://esamata.com/np/2015/मधेश-प्रदेश-नभए-अलग्गिने/



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