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अटकलों का बाजार गर्म है-श्वेता दीप्ति

वर्ष-१९,अंक-१,मेई २०१६ (सम्पादकीय)
वक्त की धार और मार दोनों ही बहुत तेज होती है । धार, जो बहा ले जाती है अपने साथ अमूल्य क्षणों को और मार, जो दे जाती है ना भूलने वाले गम को । व्यक्ति और विज्ञान दोनों विवश होते हैं सृष्टि के समक्ष । फिर भी इससे सीख नहीं लेते । सृष्टि के साथ खिलवाड़ ही हमें असहनीय पीड़ा देती है, किन्तु हम प्रकृति के साथ खेलना नहीं छोड़ते । देखते–ही–देखते प्रकृति के प्रकोप को एक वर्ष गुजर गए । पर, आशियाने आज भी उजड़े हुए हैं, आँखें आज भी मदद का इंतजार कर रहीं हैं । सत्ता असक्षम साबित हुई इस परिस्थितियों से निबटने में । मदद के हाथ पीछे हटने लगे हैं, किन्तु ना तो योजना है और ना ही नीति, जिसके तहत सहायता का सही उपयोग किया जा सके ।
छः महीने पुरानी सरकार आज भी कुर्सी बचाने की नीति–निर्धारण में परेशान है । उनकी जद्दोजहद कुर्सी और सत्ता के लिए है । जनता की चाह और आह दोनों से ही बेपरवाह सरकार अपनी ही परेशानियों से परेशान है । सत्ता परिवत्र्तन की अटकलों का बाजार गर्म है । फिलहाल सत्ता के दो मोहरे प्रचण्ड और देउवा अपने–अपने पाशे फेकने के लिए सही वक्त के इंतजार में हैं । इस पाशे और वक्त के बीच ओली सरकार की डगमगाती हुई नैया है और तलाश उस माँझी की है जो नैया को किनारे तक ले जा सके । प्रधानमंत्री अब तक हवाई किले बनाने में ही मशरूफ हैं । भारत और चीन की यात्रा सफल होने के दावे किए गए किन्तु परिणाम शिफर है । मौसम का मिजाज बता रहा है कि इस वर्ष खाद्यान्न संकट की पूरी सम्भावना है, किन्तु सत्ता की ओर से इससे निबटने के लिए कोई योजना सामने नहीं आ रही । दिन प्रतिदिन जलते हुए जंगल, जलती हुई बस्तियाँ, बेबस निगाहें, भूखी अतड़ियाँ और खामोश सत्ता, यही है नेपाल की नियति —
वक्त अब भी है
चाहो तो मुट्ठी में कैद कर लो
और रचो एक नया और समृद्ध संसार ।
वरना, वक्त की धार बहा ले जाएगी
अस्तित्वविहीन रेत की तरह ।

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