बढते फासले
प्रो . नवीन मिश्रँ
प्रारम्भ मे माओवादी दल केदो शर्ष् नेता पुष्पकमल और बाबुराम भट्टर्राई एक दूसर के पूरक केरुप मे जहाँ कहीं भी नजरआतेथे, चाहेवह प्रधानमंत्री निवास बालुवाटार हो या भारत की राजधानी नई जिल्ली । लेकिन कुछ दिनो सेदोनों नेताओ के बीच जारी शीत युद्ध से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि दोनो नेताओ के बीच फासले बढते जारहे है । बहुत दिनों पहले की बात नहीं है सिर्फएक वर्षपर्व ही दोनो नेताओं ने चुनवाङ बैठक मे एक ही तरह केपरिवेश और पोशाक मेएकजुटता का परिचय दिया था, लेकिन आज इन दोनो नेताओ को एक साथ देखना दूभर हो गया है। दोनो नेताओ के बीच आई इस शिथिलता से पार्टर् प्रभावहीन नहीं रह पाई है । ऐसा नहीं है कि माओवादी पार्टर् नेतृत्व को लेकर संर्घष्ा पहली बार हुआ है । इससे पहले भी दो बार इस तरह का संकट देने मे आया है । पहली बार २०६५ मे भक्तपुर के खरिपाटी बैठक में तथा दूसरी बार इसी वर्षगोरखा के पालुङटार बैठक में । खरिपाटी के विवाद का अस् थायी हल ढूंढ निकला गया लेकिन पालुङटार विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है । यह विवाद इतना आगे बढÞ गया है कि अब दोनो नेता एक दूस पर पार्टर्ीीोडÞने का आरोप प्रत्यारोप लगा रहे है । अध्यक्ष दाहाल का कहना है कि भट्टर्राई पार्टर्ीीोडÞना चाहते हैं जबकि भट्टर्राई का कहना है कि दाहाल एकाधिपत्य स्थापित करना चाह रहेहै ।
माओवादी नेता ने त्रविक्रम चन्द जब चै त १२ गते विवादास् पद जनस् वयंसे वक ब्यूर ो के विषय मे ं जानकार ी दे ने नयाँ बाजार गए तो उनसे अध्यक्ष दाहाल ने पूछा कि क्या ब्ााबुर ाम भट्टरर् ाई पार्टर्ीीो डÞ र हे है ं । ने त्रविक्रम के साथ औ र भी कई ने ता को यह बात जल्द ही आग की तर ह पूर ी पार्टर्ीीे ं फै ल गई । विगत चै त्र १४ गते डा. भट्टरर् ाई सिंगापुर मे ं आयो जित अन्तर क्रिया कार्यक्रम से लौ टने के बाद अपने ऊपर लगाए जा र हे पार्टर्ीीवभाजन के आर ो प का जो र दार शब्दो ं मे ं खण्डन किया । उन्हो ंने किसी का भी नाम नहीं ले ते हुए सिर्फइतना कहा कि पार्टर्ीीर एकाधिपत्य स् थापित कर ने वालो ं के धार ा किया गया, यह दुष्प्रचार है । इस प्रकार पिछले कुछ दिनो ं मे ं अध्यक्ष दाहाल तथा उपाध्यक्ष भट्टरर् ाई बीच जार ी शीतयुद्ध ने संविध ान सभा के सबसे बडÞी पार्टर्ीीो विभा जन के कगार पर ला खडÞा किया है ।
पालुङटार मे ं दाहाल, भट्टरर् ाई तथा वै द्य के बीच जो विवाद हुए वह कार्यनीति, ने तृत्व तथा कार्यशै ली सम्बन्धित विषयो ं पर के न्द्रित थे । ले किन आज का दाहाल-भट्टरर् ाई विव ाद ने तृत्व को ले कर के न्द्रत है । दाहाल के द्वार ा पार्टर्ीीर्ंतर्गत विद्यमान अन्तर संर्घष्ा को नायक तथा खलनायक की लडर्Þाई की संज्ञा दी गई है । भट्टरर् ाई का नाम उन्हो ंने उल्ले खित नहीं किया है ले किन उनका स् पष्ट संके त उन्हीं के तर फ है । एक ओ र जहाँ दाहाल ने दावा किया है कि किसी भी हालत मे ं पार्टर्ीीो टूटने नहीं दे ंगे , वहीं दूसर ी ओ र भट्टरर् ाई का कहना है कि आन्तरि क जनवाद के ऊपर मंडर ाते खतर ा को दे खते हुए पार्टर्ीीवभाजन की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है । दो लखा के एक कार्यक्रम मे ं अप्रत्यक्ष रुप से उन्हो ंने यह बात कही है । वर्तमान समय मे ं माओ वा दी दल के भीतर आन्तरि क जनवाद अर्थात आन्तरि क प्रजातन्त्र की मांग बढÞ र ही है । दो दशको ं से पार्टर्ीीा ने तृत्व कर र हे दाहाल के ने तृत्व पर प्रश्न उठाते हुए आन्तरि क जनवाद का मामला सामने आया है । विश्ले षको ं का मा नना है कि भट्टरर् ाई पार्टर्ीीे ं अपने अलग अस् ितत्व औ र पहचान के लिए पार्टर्ीीे भीतर आन्तरि क जनवाद के पक्षधर है ं । यही कार ण है कि वे महाधिवे शन की मांग औ र तै यार ी को ध्यान मे ं र खते हुए जो र शो र से दे श के सभी भागो ं को दौ रा कर ने मे ं व्यस् त है ं । उन्हो ंने अपने वे बसाइट के पहले पन्ने पर लिखा है कि अन्याय तथा गलत कमोर् ं के आगे आत्मर्समर्पण कर ने से मर जाना मे र े लिए बे हतर है । चुनवाङ बै ठक मे ं लगा था कि दाहाल-भट्टरर् ाई विव ाद बुहत हद तक सुलझ गया है ले किन एक दो महीने के बाद ही ऐ सा लगा कि फिर इनकी दूर ी बढÞ गई है । पुस २०६६ मे ं प्रधानमंत्री बनने के प्रश्न पर दो नो ं के बीच का विवाद पर ाक ाष् ठा पर पहुँच गया । जब दाहाल ने भट्टरर् ाई पर भार तमुखी हो ने का आर ो प लगाते हुए उनकी आलो चना की तो परि णामस् वरुप दो नो ं ने ता ओ ं के बीच के संर्घष्ा औ र भी तीव्र हो गए । इसी पृष्ठभूमि मे ं कुछ लो ग यह मानते है ं कि दाहाल-भट्टरर् ाई विवाद व्यक्तित्व की लडर्Þाई है जबकि कुछ का यह मानना है कि इस विवाद का मुख्य कार ण पार्टर्ीीे कार्यदिशा के ने तृत्व को ले कर है । पो लिटब्यूर ो सदस् य र ाम कार्की जो भट्टरर् ाई के नजदीक माने जाते है ं, उनका मानना है कि दे श तथा कम्युनिष्ट आन्दो लन को किस प्रकार आगे ले जाया जाए, इसी बात पर मुख्य विवाद है । दाहाल पक्षधर ो ं ने अवसर वादी हो ने का भी आर ो प उन पर लगाया है । उनका मानना है कि जनव्रि्रो ह की कार्यदिशा को अवरुद्ध कर ने के लिए ही ऐ सा किया जा र हा है । उनका यह भी मान ना है कि अवसर वादी या तो पार्टर्ीीर अपना कब्जा जमाएंगे औ र अगर सफल नहीं हुए तो पार्टर्ीीो डÞ दे ंगे ।
दाहाल-भट्टरर् ाई द्वन्द्व का असर अब पार्टर्ीीक ही सीमित नहीं र ही । इसका दुष्प्रभाव अब पार्टर्ीीे वर्गीय संगठनो ं पर भी परि लक्षित हो ने लगा है । मजदूर संगठन पर विवाद के कुप्रभाव को दे खा गया । नयाँबाजार मे ं जिस समय भट्टरर् ाई औ र वै द्य एक ही टे बुल मे ं खाना खा र हे थे , उसी समय दो नो ं गुटो ं के कार्यकर्ता आपस मे ं भीडÞ गए । यूँ तो स् थायी समिति इन विवादो ं का समाधान कर ने मे ं जुटी है , ले किन इसकी संभावना बुहत क्षीण है । दाहाल पर्ूव अध्यक्ष शालिकार ाम जमकट्टे ल के ने तृत्व मे ं र ाष्ट्रीय सम्मे लन आयो जक समिति गठन कर ना चाहते है ं जो भट्टरर् ाई औ र वै द्य गुट के र्समर्थको ं को मंजूर नहीं है । इनका कहना है कि जमकट्टे ल मे ं हाकिमवादी प्रवृति है । अतः उन्हे ं स् वीकार नहीं किया जा सकता है । इस द्वन्द्व से प्रकाशन विभाग भी अछूता नहीं र हा है । पार्टर्ीीा मुखपत्र जनदिशा दै निक तथा जनादे श साप् ताहिक भी अलग-अलग गुटो ं से प्रभावित हो ने लगा है । जनदिशा वै द्य के पक्ष मे ं तथा जनादे श भट्टरर् ाई के पक्ष मे ं माना जा र हा है । विवाद का ही परि णाम था कि १२ दिनो ं तक जनदिशा का प्रकाशन बंद र हा तथा जनादे श का आकार भी सिमट गया है ।
पालुङटार बै ठक के पश्चात माओ वा दी लडÞाकु भी तीन हिस् सो ं मे ं विभक्त नजर आए । दाहाल, वै द्य तथा भट्टरर् ाई के पक्ष मे ं लडÞाकुओ ं के कमाण्डर खुल कर सामने आए । भट्टरर् ाई ने अपने नो ट आँफ डिसे न्ट मे ं लडाकु संगठन अर्ंतर्गत दो लाईन संर्घष्ा की मांग की है । लडÞाकु अर्ंतर्गत चे न आँफ कमाण्ड के नाम मे ं पार्टर्ीीीतर चल र हे दो लाइन संर्घष्ा को सहज तथा स् वभाविक रुप मे ं स् वीकार कर ना अनिवार्य है , ऐ सा उनका मा नना है । यह भी अनुमान लग ाया जा र हा है कि अगर यह विवाद बढÞता गया औ र भट्टरर् ाई अपनी जिद पर अडÞे र हे तो उनके ऊपर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है । इसके लिए दाहाल पक्ष अनुशासन विभाग को सक्रिय कर ने मे ं लगा हुआ है । भट्टरर् ाई के ऊपर यह पहली कार्यवाही नहीं हो गी । इससे पहले भी उन पर दो बार कार्यवाही हो चुकी है । र्सवप्रथम के न्द्रीय कार्यालय मे ं सन् २०६१ मे ं अध्यक्ष दाहाल से चार बिन्दुओ ं पर मतभे द हो ने पर तथा दूसर ा इसके एक महीना पश्चात के न्द्रीय समिति मे ं असहमति हो ने पर उस समय सजा के रुप मे ं जनसे ना के बीच बै ठना उनके लिए गौ र व की बात थी । उस समय भी दाहाल ने उन पर साम्राज्यवादी, विस् तार वादी तथा शाही सै निको ं का पक्षधर बताते हुए उनकी आलो चना की थी । माओ वादी दल के अर्ंतर्गत चले आ र हे मतभे द को दे खते हुए युवा ने तृत्व ने अपने शर्ीष्ा ने ताओ ं को चे तावनी दी है कि वह पार्टर्ीीो विभाजन की तर फ उन्मुख न कर े ं । उन्हो ंने किसी गुट के बै ठक मे ं अपनी सहभागिता नहीं जाने की बात भी कही है । उनका कहना है कि पालुङटार बै ठक मे ं पारि त कार्यदिशा को कार्यान्वित किया जाना चाहिए । उनका मानना है कि सिद्धान्त औ र कार्यदिशा के कार्यान्वयन से ही पार्टर्ीीे ं एकजुटता आएगी । वै चारि क मतभे द को व्यवस् िथत कर ना अनिवार्य है ।
दाहाल-भट्टरर् ाई वाकयुद्ध मे ं वै द्य अभी मूक दर्शक बने हुए है ं । ले किन उन्हो ंने दो मूही र णनीति अपनाई है , पहला भट्टरर् ाई को कमजो र बनाने की तथा दूसर े दाहाल-भट्टरर् ाई विवाद से लाभ उठाने की । स्पष्ट हो कि दाहाल-भट्टर्राई जब एक साथ थे तो उनकी स्थिति कमजोर थी, लेकिन अभी वह सबल है । वैद्य को पाकर दाहाल भी अपने आप कोमजबूत समझते होंगे । लेकिन वैद्य कितनी इमान्दारी से उनके साथ हैं, यह कहना मुश्किल है । मजदूर संगठन में व्याप्त विवाद तथा दाहाल की कार्यशैली से वह भी असंतुष्ट है । इस प्रकार माओवादी दल अभी न सिर्फदाहाल-भट्टर्राई सेपरशान है बल्कि त्रिपक्षीय अन्तरसंर्घष्ा से ग्रसित है । पार्टर्ीीेभीतर विवाद जितना भी तीव्र हो, माना जा रहा है कि जेठ १४ गते तक पार्टर्ीीूटनेकी संभावना नहीं है । अनुमान है कि जेठ १४ गते के बाद पार्टर्ीीें या तो महान् एकता होगी या महान् फूट । जेठ १४ गते पश्चात अनेक संभावनाएँ देखी जा सकती है । दाहाल तथा भट्टर्राई पक्ष दोनोही यह देखना चाह रहे हैं कि जेठ १४ गते तक शान्ति तथा संविधान निर्माण प्रक्रिया निर्ण्ाायक मोडÞ तक पहुँचती है कि नहीं और तब इसी अनुरुप वह अपनी-अपनी रणनीति तय करगे। इस समय तक पार्टर्ीीे अगर वै द्य की स्थिति सबल हर्ुइ तो जनव्रि्रोह की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है , जिससे भट्टरर् ाई को विमती है । अगर दाहाल-वै द्य के समीकर ण मे ं भट्टरर् ाई शामिल हो ते है ं तो पार्टर्ीीहीं टूटे गी ले किन भट्टरर् ाई ने व्रि्रो ह का र ास् ता अपनाया तो पार्टर्ीीूटने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है ।
र् वर्तमान समय के ने पाली र ाजनीति मे ं कम्यूनिष्ट प्रभाव को नकार ा नहीं जा सकता है । संविधान सभा मे ं इनकी उपस् िथति ६२ प्रतिशत है , ले किन इस कार ण यह प्रभावशाली नहीं है ं क्यो ंकि यह खुद आन्तरि क कलह से ग्रसित है ं । यह आन्तरि क कलह मात्र माओ वा दी या एमाले जै सी बडÞी पार्टियो ं मे ं नहीं बल्कि छो टे -छो टे सम्यवादी दलो ं मे ं भी परि लक्षित हो ते है ं । डा. बाबुर ाम भट्टरर् ाई इस अन्तर कलह औ र व्रि्रो ह का मूल कार ण पार्टर्ीीर्ंतर्गत वै चारि क स् वतंन्त्रता का अभाव मानते है ं । उन्हो ंने इस सर्ंदर्भ मे ं प्रे सर कुकर का उदाहर ण दे ते हुए बत ाया है कि अगर आप खाना बनाते समय प्रे सर कुकर से हवा बाहर जाने दे ते है तो आप का खाना भी तै यार हो गा तथा हवा भी बाहर निकलता र हे गा, ले किन अगर आप हवा को प्रे सर कुकर से बाहर नि कलने नहीं दे ते है ं तो ऐ सी स् िथति मे ं तो विस् फो ट ही हो गा । अगर पार्टर्ीीे अन्दर स् वस् थ प्रतिस् पर्धा हो तो यह पार्टर्ीीौ र दे श दो नो ं ही के लिए लाभद ायक है ले किन अगर इसी मतभे द को सै द्धान्तिक या वै चारि क जामा पहना दिया जाए तो यह पार्टर्ीीे ताओ ं के बीच अन्तर कलह का कार ण बन जाता है । माओ वादी दल मे ं दाहाल-भट्टरर् ाई-वै द्य विव ाद या फिर एमाले मे ं खनाल-ओ ली-ने पाल विव ाद मूल रुप मे ं व्यक्तित्व संर्घष्ा का परि चायक है । वास् तव मे ं २०४६ के बाद अन्य प्रजातान्त्रिक दलो ं की तर ह कम्युनिष्ट दलो ं मे ं भी सत्ता लो लुपता बढÞी है औ र इसके लिए कोर् इ भी शर्ीष्ा ने तृत्व पार्टर्ीीवभाजन तक से भी पर हे ज नहीं कर ता । पजे र ो संस् कृति अतर्ंगत प्रजातांत्रिक दलो ं का प्रजातांत्रिक समाजवाद तथा साम्यवादी दलो ं का नयाँ जनवाद दफन हो चुका है । पता नहीं ने पाल के र ाजने ता औ र र ाजनीतिक दल कब इससे उबर े ंगे ।