ये कैसे कामरेड
कमल कोइराला
पश्चिम बंगाल के कम्यूनिष्ट मुख्यमंत्री आज भी दो ही कमरे के फ्लै ट में र हते हैं । वह पिछले ११ वषोर् से लगातार सर कार प्रमुख हैं । अने क व्यक्तियों ने उनसे किसी सुविधा जनक निवास में चले जाने का आग्रह किया ले किन वह नहीं माने । यह कहने पर कि ‘आपकी सुर क्षा का सवाल’ है , उनका जबाव हुआ कर ता है , ‘मुझे कोर् इ खतरा नहीं है ।’ पहले की ही तर ह वह अपना सारा वे तन पार्टर्ीीो भे ज दिया कर ते हैं ओ र पहले से ले ते आ र हे एक पार्टर्ीीहो लटाइमर कार्यकर्ता का पारि श्रमिक पाया कर ते हैं । नई दिल्ली से प्रकाशित घो र कम्युनिष्ट विर ो धी हिन्दी दै निक पंजाब के सरी बुद्धदे व के सादे जीवन की प्रशंसा किया कर ता है । उक्त दै निक लि खता है , ‘के र ला के मुख्यमंत्री अच्युतानन्द की हालत भी वै सी है । पिछले ३५ वषों से बंगाल की मार्क्सवादी सर कार चुनावो ं मे ं जनता का वो ट हासिलकर जीतते आ र ही है । लगतार २३ वषोर् तक ज्यो ति बसु को ने तृत्व कर ने के बाद, बुद्धदे व को मुख्यमंत्री बने १२ वर्षहो चुके है ं । पश्चिम बंगाल की सर कार भी अन्य प्रान्तो ं की कम्युनिष्ट सर कार की तर ह कोर् इ अलग से प्रगति नहीं कर सकी है । ले किन, उसने भ्रष्टाचार किया, यह भी चर्चा नहीं है । को लकाता मे ं अखबार औ र पत्रकार ो ं की भर मार है । ले किन, इतना हो ते हुए भी हो र हे प्रान्तीय विधान सभा के चुनाव मे ं मार्क्सवादी पार्टर्ीीे ३५ वषोर् के बाद, सर कार से हट जाने का दावा, ममता बनर्जी औ र अन्य विर ो धी पार्टियां कर र ही है ं । वहाँ पुर ानी पार्टर्ीीांग्रे स पार्टर्ीी४९ सीटो ं वाली विधान सभा सदन मे ं के वल ६५ सीटों पर चुनाव लडÞने जा र ही है तथा अन्य २२६ सीटे ं ममता बनर्जी के त्रिणमूल कांग्रे स के लिए छो डÞ दिया है । सो शलिस् ट यूनिटी से न्टर को २ सीट तथा र ाष्ट्रवादी कांग्रे स को एक सीट तो है , परि णाम ऐ सा नहीं हो गा, यह कहना कठिन है । फिर भी मार्क्सवादी ने ता प्रकाश कर ांत औ र मुख्यमंत्री बुद्धदे व कह र हे है ं कि जीत तो उनकी ही हो गी ।
भार त मे ं के न्द्र सर कार को लगातार ३० वषोर् तक एक ही पार्टर्ीीांग्रे स ने चल ाया । सन् १९४७ से १९७७ तक जवाहर लाल ने हरु, लालबहादुर शास् त्री औ र इंदिर ा गांधी प्रधानमंत्री र ही । सन् १९७७ से १९८० तक के दो तीन वर्षअस् िथर सर कार ो ं के दौ र ान मो र ार जी दे र्साई, चौ धर ी चर ण सिंह तथा चन्द्रशे खर आदि प्रधानमंत्री बने ले किन १९८० मे ं इंदिर ा गांधी फिर प्रधानमंत्री बन गई । उनके मार े जाने के बाद उनका बे टा र ाजीव गांधी के लगातार ९ वषोर् ं १९८९ तक प्रधानमंत्री र हने के दौ र ान कांग्रे स की ही सर कार कायम र ही । बो फोर् स तो प खर ीद काण्ड मे ं भार ी भ्रष्टाचार हो ने के बाद कांग्रे स फूटी । विश्वनाथ प्रताप सिंह कुछ समय के लिए प्रधानमंत्री बने । फिर इन्द्रकुमार गुजर ाल प्रधानमंत्री हुए । ले किन, १९९१ मे ं र ाजीव की हत्या हो जाने के बाद कांग्रे स पार्टर्ीीुनः जीती औ र प्रधानमंत्री के रुप मे ं नर सिंह र ाव लम्बी अवधि तक शासन चलाए । उसके बाद भार तीय जनता पार्टर्ीीार ा के न्द्रीय चुनाव मे ं कांग्रे स को विस् थापित कर ने के बाद अटल बिहार ी वाजपे यी भी काफी लम्बे समय तक प्रधानमंत्री र हे । अभी सात वर्षहो चुके है ं मनमो हन सिंह प्रधानमन्त्री है ं ।
पिछले ६४ वषोर् ं की अवधि मे ं भार त लगातार प्रगति कर ता जा र हा है जबकि पडÞो स मे ं र हने वाले ने पाल अवनति के गड्ढे मे ं गिर ता चला जा र हा है । वै से भार त के कुछ प्रान्तो ं मे ं वो ट-बे चने वाले आयार ाम-गयार ाम की र ाजनीति नहीं हर्ुइ, ऐ सा भी नहीं है । भार तीय पिछले ६३ वषोर् मे ं के वल दो बार , नर सिंह र ाव औ र इस मनमो हन सिंह के कार्यकाल मे ं अविश्वास का प्रस् ताव लाए जाने का इतिहास है ।
ने पाल मे ं १९५० मे ं प्रजातन्त्र आने के बाद पहली ही सर कार , के वल ९ महीने टिक पाई थी । उसके बाद गठित दूसर ी सर कार भी ९ महीने टिक सकी जबकि कुँवर इन्द्रजीत सिंह -के .आई. सिंह) की सर कार तो के वल चार महीने ही चली। ०१५ साल मे ं - १९५९) दो -तिहाई बहुमत पाई जननिर्वाचित पहली सर कार भी १८ महीने से आगे नहीं जा सकी । ०४८ साल मे ं पाँच वर्षके लिए एक तर फा बहुमत पाई हर्ुइ ने पाली कांग्रे स पार्टर्ीीछत्तीस’ औ र ‘बहत्तर ’ गुट मे ं विभाजित हो कर फूट गई । ०५१ साल के मध्यावधि निर्वाचन मे ं ने कपा एमाले सबसे बडÞी पार्टर्ीीे रुप मे ं संसद मे ं आई ले किन, वह भी नौ महीने मे ं ही गई ।
र ाजनीतिक अस् िथर ता दे श की आर्थिक दर्ुदशा को पालता है । उतना ही नहीं, ने पाल जै से अस् िथर ता के दे श की दर्ुदशा नहीं, चर म भ्रष्टाचार औ र दण्डविहीन अर ाजकता भी साथ ही साथ पालता है । बुद्धदे व भट्टाचार्य औ र अच्युतानन्द आदर्शवादी कम्यूनिष्ट है ं जबकि सिंगापुर के क्वान यू खांटी पूँजीवाद ने ता है ं । यह भी भ्रष्ट एशिया उपमहाद्वीप का ही एक दे श है । ले किन इस दे श का नाम मै ं अने क वषोर् ं से पढÞता आ र हा हूँ । विश्व का सबसे अधिक स् वच्छ सर कार ी कार ो बार वाले दस शर्ीष्ा दे शो ं मे ं इसका नाम स् के न्डिने वियन-यूर ो पियन दे शो ं के साथ आता है । ली क्वान यू लगातार ३१ वषोर् ं तक प्रधानमंत्री बने र हे । उन्हो ंने अपनी बे टी को अपने पुर ाने घर मे ं ही र खा । प्रधानमंत्री निवास मे ं नहीं र खा । प्रधानमंत्री निवास मे ं विदे शी र ाष्ट्रो ं के बडÞे -बडÞे लो ग आया कर ते है ं । चाय लन्च औ र डीनर दे ते र हना पडÞता है । बे यर ा, कूक, गाडी, नौ कर के साथ ही गार्ड भी हुआ कर ते है ं । यही सो चकर कि इन सबसे सन्तान की आदते ं खर ाब हो ती है । सिंगापुर मे ं पिछले ५० वषोर् ं मे ं कुल मि लाकर के वल तीन ही प्रधानमंत्री बने - ३१ वषर्ीय क्वान के बाद १४ वषोर् ं तक लगातार गो ह चे क तो ंग । सन् २००४ के बाद ली क्वान यू के बे टे ली सिएन लुंग प्रधानमंत्री है ं । एशिया मे ं सबसे अधिक स् वच्छ शासन वाले स् थान के रुप मे ं ९९ वषोर् ं के ब्रिटिश शासन का लीज समाप्त हो ने के बाद दे ंग श्याओ ं पिंग के एक दे श- दो व्यवस् था के अर्न्तर्गत पूँजीवादी अर्थतंत्र औ र स् वतंत्रता कायम र हने वाले दे श मे ं हांगकांग का नाम आता है । ले किन, वह कोर् इ ली क्वान यू जै से र ाजने ता के कार ण नहीं । वहाँ के कर्मचार ीतंत्र के कार ण है । भ्रष्टाचार विर ो धी ब्रिटिश पर म्पर ा यहाँ के कर्मचारि यो ं का व्यक्तिगत जीवन पद्धति है । एक ही मिट्टी एक ही जाति के साथ चिपका हुआ साम्य वादी चीन, रि श्वतखो र ी आर्थिक भ्रष्टाचार के आधार पर हर वर्षकुछ व्यक्तियो ं को गो लियो ं से उडÞा दिया कर ता है । फिर भी, भार त से कम चाहे क्यो ं न हो , कर प्शन पर से प्शन इंडे क्स प्रकाशन दे खने से वहाँ अभी भी भ्रष्टाचार है ।
छो टे से हांगकांग का चीफ एक्जिक्यूटिव, अमे रि का के र ाष्ट्रपति औ र ब्रिटे न के प्रधानमंत्री से अधिक वे तन पाते है ं । हांगकांग के चीफ प्रतिवर्ष८ लाख डाँलर पाते है ं जबकि अमे रि का के र ाष्ट्रपति उसका आधा अर्थात् ४ लाख डाँलर औ र ब्रिटे न के प्रधानमंत्री २ लाख ६२ हजार डाँलर पाते है ं । कुल मि लाकर २ सौ ६८ वर्गमील क्षे त्रफल औ र ४७ लाख जनसंख्या वाले सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सिएन लुंग हांगकांग के चीफ से भी एक मिलियन अधिक अर्थात् १० लाख अमे रि की डालर पाते है ं । सिंगापुर का औ सतन प्रति व्यक्ति जीडीपी पर -कै पिटा ५१ हजार ५०० अमे रि की डाँलर है , जो अमे रि का के ४६ हजार ९ सौ -२००९) से अधिक ऊपर है । इसी सिंगापुर के मले शिया का हिस् सा र हते वक्त ने पाली लो ग ब्रिटिश गोर् खा मे ं भर्ती हो कर लडÞने के लिए वहाँ पहुँचे थे । ३१ मार्च २०११ को प्रकाशित रि पब्लिका के अनुसार वहाँ की आय ५६२ डाँलर है । फिर अमे रि कन एलमै ंक -२०१०) मे ं पर कै पिटा जीडपी ११ सौ डाँलर अमे रि की डाँलर है । मै ं अर्थशास् त्र मे ं कमजो र हूँ, इस पर कै पिटा जीडीपी औ र पर कै पिटा इनकम मे ं उलझन मे ं पडÞ जाता हूँ । ले किन, ११ सौ ही क्यो ं न सही कहाँ ५१ हजार ५०० औ र कहाँ १ हजार १ सौ । औ र फिर दो नो ं ही एशिया के ही दे श है ं ।
चीन मे ं १९४९ से आज तक एक ही पार्टर्ीीा शासन है । शुरु शुरु मे ं गलत सै द्धान्तिक मान्यता औ र गलत आर्थिक सो च के कार ण माओ के कार्यकाल मे ं ‘महान् आर्थिक छलांग’, गाँव का सामूहिक र सोर् इघर , कम्यून सिस् टम, कम्यून के खे त, महान र्सवहार ा सांस् कृतिक क्रान्ति औ र बजार अर्थतंत्र विर ो धी जडÞसूत्रता ने अने क प्रकार की हानि औ र बर्बादी किया । ले किन, दे ंग के ने तृत्व मे ं आने के बाद चीन ने बाजार अर्थतंत्र अपनाया औ र विदे शी पँूजीपतियो ं के पूँजी के आगमन का स् वागत कर ने की नीति अपनाई । चीन आज विश्व मे ं अमे रि का के बाद सबसे बडÞा धनी दे श बन गया ।
चीन मे ं आज शासन की स् िथर ता की स् िथति औ र सुनिश्चितता को दे खे ं । हुँ जिन ताओ १४ मार्च २००३ से र ाष्ट्रपति औ र १६ मार्च २००३ से बने जिया बाओ प्रधानमंत्री है ं, आगामी दस वषोर् ं के लिए । पश्चिमी पत्रिकाओ ं के पढÞने से झी जिन पिंग र ाष्ट्रपति बने ंगे , ऐ सा मुझे निश् िचत लगता है । औ र , २०१२ मे ं प्रधानमंत्री कौ न हो ंगे – शायद ली कसियांग बने ंगे । ले किन, हमार े ने पाल मे ं तो कल क्या हो गा, यही नहीं, आज शाम को क्या हो गा, इस क्षणिक चिन्तन तक नहीं है । चीन मे ं एक व्यक्ति मै ं दस वषोर् ं तक र ाष्ट्रपति बना र हूंगा औ र मै ं दस वषोर् ं तक प्रधानमंत्री र हूँगा, इस निश् िचतता के साथ सवोर् च्च पद ग्रहण कर ते है ं । चीन मे ं भी भार ी प्रगति है औ र भार त मे ं भी काफी बडÞा आर्थिक विकास है । सिंगापुर की तो बात नहीं कर े ं, आखिर कितनी अधिक समृद्धि है । इन सभी दे शो ं की र ाजनीतिक व्यवस् था अलग अलग प्रकार की है । धार्मिक सांस् कृतिक वातावर ण भी भिन्न प्रकार का है । क्या भार त का पूँजीवाद औ र चीन के साम्यवाद मे ं कोर् इ भी बात साझी है – ले किन, हाँ एक बात मै ं जरुर दे खता हूँ कि शासन की स् िथर ता औ र कर्मचार ी तंत्र का स् थायित्व प्रमुख बात है । किसी समय बंगाली लो ग बिहार ी औ र उत्तर प्रदे श के लो गो ं को बिहार ी बुद्धू कहा कर ते थे । उन्हीं बिहारि यो ं ने नीतिश कुमार को चुनकर दिखा दिया कि ‘अब बिहार ी बुद्धू नहीं है ।’ हमलो ग जो कहा कर ते थे बिहार ी शै ली का चुनाव, अब उन लो गो ं ने वही शै ली हम ने पालियो ं को उपहार के रुप मे ं प्रदान कर दिया है । अब बिहार मे ं बिहार ी शै ली का चुनाव नहीं है , के वल ने पाल मे ं ही है ।
किसी सयम यहा कहा जाता था कि ‘जब तक समो से मे ं आलू तब तक बिहार मे ं लालू’ । ले किन अब लालू की जगह नीतिश आ गया है । जातिवाद की झूठी भावना फै लाकर बुद्धू जनता को बे वकूफ बनाकर हमे शा ही र ाजनीति नहीं चलती र ह सकती । बूद्धू भी सचे त हो ने पर बुद्धू नहीं बना र हे गा, सच्ची बात कर र हा है कि बे वकूफ बनाने की को शिश कर र हा है , समझने लगता है । सुनता हूँ, अब बिहार ी का प्रगति का नीतिश कुमार र फ्तर ११ प्रतिशत है । इन सभी को दे खने से मुझे लगता है कि शिक्षा औ र स् थायित्व सबसे पहली आवश्यकता है । किसी समय ने पाल की प्रति व्यक्ति आय जब ८८ हजार डाँलर था, दक्षिण को रि या की मात्र ६७ डाँलर थी औ र ने पाल से भी दरि द्र हालत थी । ले किन आज २७ हजार ६०० डाँलर पहुँच चुका है । हमलो गो ं के साथ ही प्रजातंत्र आया हुआ चीन औ र भार त कहाँ पहुँच गया – कहाँ पहुँचा बिहार – ने पाल कहाँ है – आखिर क्यो ं है – क्या यह खो जने का समय नहीं आया है –
-लेखक एमाले के नेता हैं)