EXCLUSIVE: इन 8 कारणों से है रक्षा खरीद में भ्रष्टाचार
सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह ने उन्हें रिश्वत की पेशकश किए जाने का जो दावा किया है, वह सैन्य सौदों में भ्रष्टाचार की पोल खोलता है। रक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा रास्ता खरीदी प्रक्रिया के जरिए ही खुलता है। सरकार कहती है कि सौदे में दलालों को शामिल नहीं किया जाएगा, दलाली नहीं दी जाएगी। फिर भी बिना कमीशन के कोई सौदा तय नहीं होता। दलाली नहीं देने के लिए सख्त मानदंड तय किए जाने के बावजूद यह स्थिति है। इसके कई कारण हैं।
कोई भी सौदा तय होने में होने वाली देरी से भी भ्रष्टाचार बढ़ता है। देरी की एक वजह अफसरों की जिम्मेदारी से बचने की प्रवृत्ति है। अफसर यह सोच कर फूंक-फूंक कर कदम रखते हैं कि जांच होने पर उनकी गर्दन न फंसे। क्योंकि सौदेबाजी से गलत कमाई नेता करते हैं, लेकिन जांच होने पर गाज अफसरों पर ही गिरती है।
खरीद की प्रक्रिया को नेता गलत ढंग से प्रभावित करते हैं। खरीद के लिए सेना अपनी जरूरत तय करके प्रस्ताव देती है। इसके बाद टेंडर निकाला जाता है। टेंडर में भाग लेने वाली कंपनियों में से सही पात्र को चुना जाता है। फिर उनकी ओर से आपूर्ति की जाने वाले हथियार आदि का परीक्षण होता है। इस परीक्षण के दौरान ही अवैध सौदेबाजी होती है। अक्सर नेताओं की ओर से अफसरों पर दबाव देकर मानदंडों से समझौता कराया जाता है। सेना प्रमुख ने जो दावा किया है, इस मामले में कोई राजनीतिक दखलअंदाजी थी या नहीं, यह जांच का विषय है।
कई बार आपात जरूरत के नाम पर भी भ्रष्टाचार होता है। निर्णय लेने में देरी या और वजहों से पहले से खरीद नहीं की जाती है, लेकिन तत्काल जरूरत पड़ने पर कई गुना ज्यादा दाम में खरीदारी होती है।
खरीद प्रक्रिया में स्वतंत्र एजेंसी की निगरानी का अभाव है। सीएजी कुछ हद तक इस पर नजर रखती है, लेकिन वह सौदा होने के बाद पड़ताल करता है। प्रक्रिया के दौरान अगर कोई गड़बड़ी हो रही है तो उसे पकड़ने और रोकने का ठोस तंत्र नहीं है।
खरीद में देरी और भ्रष्टाचार की एक वजह यह भी है कि आज लॉबीज बन गई हैं। कुछ समय पहले तक हम 80 से 85 फीसदी खरीदारी रूस से करते थे। लेकिन अब कई देशों की कंपनियां दौड़ में हैं। सबने अपने एजेंट फैला रखे हैं और उनके बीच ‘कॉरपोरेट वॉर’ चलता रहता है। एक एजेंट दूसरी कंपनी की डील में अड़ंगा डालने के लिए तमाम हथकंडे अपनाते हैं। नतीजा होता है खरीद प्रक्रिया पूरी होने में देरी। ऐसे में चुनौती यह भी है कि वह अपनी जरूरतों के मुताबिक निष्पक्ष निर्णय जल्दी लेने और उस पर अडिग रहने का तंत्र विकसित हो।
जिम्मेदारी तय करने की प्रक्रिया का घोर अभाव है। कुछ समय पहले एक अहम रक्षा सौदे से जुड़ी फाइल सड़क किनारे पड़ी मिली। इसके लिए किसी की जिम्मेदारी तय नहीं हुई। उल्टे, सरकार ने दलील दी कि इससे सूचना लीक नहीं हुई।
हमारी व्यवस्था में दोषियों को सजा देने का कोई सख्त उदाहरण नहीं है। चीन में भ्रष्टाचारियों को सीधे फांसी पर लटकाया जाता है। यह अलग बात है कि इससे भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो गया, लेकिन भ्रष्टाचारियों में खौफ तो बना ही है। मौजूदा सेना प्रमुख ने भ्रष्टाचार को नहीं बर्दाश्त करने की नीति पर अमल किया है। इससे एक उम्मीद जगी है। उनके आरोपों पर रक्षा मंत्रालय ने सीबीआई जांच का ऐलान किया है, लेकिन बोफोर्स दलाली का उदाहरण हमारे सामने है।
सेना के लिए सामान खरीदने में होने वाली चोरी रोकनी है तो शुरुआत ऊपर से करनी होगी। लेकिन मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व का हाल यह है कि सरकार घोटाले करती भी है और बेबाकी से उसे सही भी ठहराती है।