मोर्चा के नेता संसद छोड़ें और अपनी मिटटी पर आएं : श्वेता दीप्ति
एक और जो राजनीति सामने आ रही है वो एमाले की है । कल तक जिस संशोधन विधयक को आत्मघाती, राष्ट्रघाती बताया जा रहा था फिलहाल उस पर विचार करने का मूड बना चुकी है वेसे ये भी भ्रम की खेती ही उपजा रहे हैं जो बहलावे से ज्यादा कुछ नहीं ।
श्वेता दीप्ति, विराटनगर ,२३फरवरी | फतवा जारी करने के अंदाज में नेता आंदोलन करने की घोषणा करते हैं ।आज मधेश बंद का एलान किया गया और कमोवेश इस एलान का असर भी दिखा । किंतु इस असर में मधेशी जनता के समर्थन से अधिक विवशता थी और नेताओं के प्रति रोष भी ।यह बस्तुगत स्थिति है । जनता समझ नहीं पा रही कि उन्हें ही हमेशा बलि का बकरा क्यों बनाया जाता है ?
नेता जनता के लिए है या अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए ? लड़ते वो मधेश के लिए हैं पर पहाड़ का मोह छूट नहीं रहा है । पिछले वर्ष के आंदोलन में भी जनता बार बार कहती रही कि मोर्चा के नेता संसद छोड़ें और अपनी मिटटी और अपनी जनता के बीच आएं । परंतु नेतागण का आश्वासन था कि हम संसद से अधिकार लेंगे । परंतु परिणाम शिफर आया जो सभी को पता था ।
वर्तमान सरकार को समर्थन किया गया, एमाले की सरकार को हटाया गया किंतु इन सबके बीच यह सभी को पता था कि मधेश को कुछ उपलब्धि मिलने वाली नहीं है । एमाले के समर्थन के बिना संशोधन संभव ही नही था । खैर चुनाव की घोषणा हो चुकी है और साथ ही आंदोलन की भी । चुनाव की बात तो समझ में आ रही है किंतु आंदोलन का आधार, उसकी रूपरेखा और उपलब्धि क्या होने वाली है ? क्या पुनः मधेशी जनता को मोर्चे पर खड़ा किया जायेगा या मोर्चे के नेता अपने आपको सही नीति के तहत प्रस्तुत करेंगे । आज भी वो संसद छोड़ने के मूड में नहीं हैं । बस पहाड़ की ठंडी हवा के बीच स्वयम यह कर मधेश की गर्मी में जनता को सुलगाना चाहते हैं । मैं मधेश में हूँ और यहाँ जो जनता का मूड दिख रहा है, उसमें दो खेमे साफ़ दिख रहे हैं । एक खेमा अपने नेता से नाराज है और उन्हें संसद से राजीनामा के साथ अपने समक्ष देखना चाह रही है , और दूसरा खेमा बंद के विरोध में है और मधेश नही बल्कि काठमांडु पर असर देखना चाहती है क्योंकि पिछले वर्ष के आर्थिक मार से वो अब तक उबर नही पाई है । उन्हें लगता है कि सरकार को काठमांडु में घेरा जाय । प्रदर्शन या अनशन या फिर बंद वहां हो । इन सब के बीच एक धार और है जो दबी जुबान से ही सही डॉ राउत के समर्थन में खड़ी है । खैर मोर्चा खुश है कि मधेश बंद सफल हुआ और ताबड़ तोड़ विज्ञप्ति भी जारी हो चुकी है साथ ही आंदोलन जारी है और रहेगी की भीष्म प्रतिज्ञा भी ।
संशोधन के बिना निर्वाचन की घोषणा प्रचंड की विवशता ही मानी जायेगी क्योंकि उनके सामने कोई और विकल्प नहीं रहा है । वो न तो अपने बूते संशोधन ही करवा सकते हैं और न ही निर्वाचन घोषणा के बाद भी अपनी सत्ता ही बचा सकते हैं । क्योंकि कांग्रेश की ओर से अगले प्रधानमन्त्री के नाम भी सामने आने लगे हैं । एक और जो राजनीति सामने आ रही है वो एमाले की है । कल तक जिस संशोधन विधयक को आत्मघाती, राष्ट्रघाती बताया जा रहा था फिलहाल उस पर विचार करने का मूड बना चुकी है वेसे ये भी भ्रम की खेती ही उपजा रहे हैं जो बहलावे से ज्यादा कुछ नहीं । मोर्चा भी एक अलग भ्रम में रह कर समर्थन वापस नही ले रही क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री के आश्वाशन या फिर सत्ता या भत्ता का मोह रोके हुये है । इसलिए वो न तो संसद छोड़ रहे हैं और न ही समर्थन वापस ले रहे हैं । हाँ आंदोलन की राह पर मधेश की जनता को जरूर देखना चाह रहे हैं । देखना ये है कि भ्रम का पर्दा कब हटने वाला है ।
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