Thu. Mar 28th, 2024
himalini-sahitya

बेशर्म नेता ही राजदूत के पद को बिक्री करके लाजदूत बना देते है : बिम्मी शर्मा

amb-car
बिम्मी शर्मा, वीरगंज, १ मार्च | (व्यंग्य )
दुसरे देशों में राजदूत विदेश मंत्रालय के उच्च पदास्थ कर्मचारी होते हैं । पर हमारा देश तो दुसरों से निराला है, इसी लिए यहां पर राजदूत पद भी विभिन्न दल के नेता अपने पार्टी कार्यालय से मोल–तोल करके खरिद–फरोख्त करते हैं । जब भी कोई नेपाल से राजदूत बन कर बाहर जाता है, वह लज्जा का वस्त यहीं त्याग कर विदेश में लाजदूत बन जाता है । लाजदूत बन कर वह देश कि ईज्जत को निलाम कर के फिर वापस आ जाता है ।
यहां सबको पद, पावर और प्रतिष्ठा चाहिए, चाहे वह जैसे भी मिले । इसीलिए उधोगी, व्यापारी और मैनपावर व्यवसायी भी लाजदूत पद पाने के लिए सरकार और राजनीतिक दलों को ललचाते हैं । और कोई भी राजनीतिक दल या नेता पैसा से ही लालच में आते हैं और लाजदूत के पद को करोडों रुपए में बिक्री करने में देरी नहीं करते । उनका बस चले तो देश ही बेच दे तो राजदूत का पद कौन सी बड़ी बात है । नेता का खोल ओढ़े यह है ही घाघ व्यापारी ।
बेशर्म नेता ही राजदूत के पद को बिक्री करके ईस को लाजदूत बना देते है । जो १२ महिने विदेश में रहते है, विदेशों में देश से कामदार भेजने का काम करते हैं उन्हे ही चाहिए यह लाजदूत का पद । क्योंकि उन्हे ही यहां भी और वहां भी लूटना है । ज्यादा परिश्रम और कम दाम में निकृष्ट काम करने के लिए पहले तो यहां से सिधे–साधे बेरोजगार नागरिकों को बरगला कर विदेश मेंं रोजगारी के लिए भेजते हैं । और ईसके बाद जब खूब माल कमा लेते हैं, तब पावर पाने के लिए यिनका मन ललचाने लगते हैं । और ईसके लिए लाजदूत पद से बेहत्तर कौन सा पद होगा ?
न शिक्षा की कोई डिग्री है, न विवेक और ईमान ही बचा है । ईसी लिए हर सरकारी पद को पैसे के दम पर खरिदने के लिए दौड पड्ते हैं और राजदूत जैसे गरिमामय पद को लाजदूत जैसा अशोभनीय पद में परिवर्तन कर देते हैं । इन्हे तो कुछ नहीं होता पर यिन की हरकतों से देश के नागरिकों का शीर शर्मिंदगी से झूक जाता है । लाज की पोटली तो ईनके पास पैदाईशी ही नहीं है ईसी लिए तो लाजदूत बनने से ईन्हे कोई परहेज नहीं । ईन्हे परहेज है तो बस ईमान, जमान और सच्चाई से ।
अपने देश की सभ्यता और संस्कृति को अन्य देशों मे फैलाने के लिए राजदूत सेतु का काम करते हैं पर हमारे देश के राजदूत अपने ही देश का सदभाव को सेतु तोड़ने में कोई शर्म नहीं करते । यिन को लगता है कि जितना यह गलत काम करेगें, उतना ही सरकार कि नजरों में जाबांज कहलाएगें । इसीलिए यह ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ते जिससे वह खराबी और बर्बादी में नबंर वान हो । यह सगरमाथा के शिखर में बैठे गौतम बुद्ध के ईस देश को उस शीखर से गिरा कर देश का अधोपतन कर रहे हैं ।
कड़ी मेहनत कर के विदेश मंत्रालय की परीक्षा में उतीर्ण होते है । उसके वाद पदोन्नति हो कर उच्च पद में पहुंचते है, जिसके बाद वह सरकारी अधिकारी किसी अन्य देश में राजदूत बन कर देश की गरीमा बढ़ाता है । पर हमारे यहां तो उल्टा चलन है । नेपाल में तो किसी सरकारी अधिकारी को राजदूत में नियुक्त करने के बजाय उच्च पद से रिडायर्ड अधिकारी को उससे निचले पद में राजदूत नियुक्त कर के भेजा जाता है । मंत्री, गवर्नर, प्रधानन्यायाधीश, मूख्य सचिव, राष्ट्रिय योजना आयोग के उपाध्यक्ष जिसका पद और प्रतिष्ठा राजदूत के पद से बड़ा है, उनको लाजदूत बना कर भेजा जाता है ।
इतना ही नहीं बडे व्यापारी और उद्योगपति भी अपने प्रभाव से लाजदूत का पद बडे मजे से हतिया लेते हैं । सरकार है ही लाचार और अभाव ग्रस्त इसीलिए जल्दि ही ईन तथाकथित बडे लागों के प्रभाव और बहकाव में आ जाती है । जब यह तथाकथित धनी और बडे लोग नोटों की गड्डी से भरे बिफ्रकेश से सरकार का मूहं ढ़क देती है । बेचारी सरकार नोट से पेट भरने के बाद जोड़ से डकार भी नहीं ले पाती है की कहीं जनता जनार्दन सुन ना लें और यिन कि खटिया खडी न कर दें ।
देश की सभ्यता और संस्कृति किस चिडीया का नाम है न सरकार को पता है न ईन व्यापारियों को । ईन्हे तो बस पैसा बनाना है । एनी हाऊ पैसा कमाऊवाला फंडा ईन के जीवन जिने का सूत्र है । चाहे वह पैसा किसीका गला दबा कर मिले या किसी को बेच कर । बस पैसा आना चाहिए और अपना आलिशान घर और चमचमाती कार होनी चाहिए । ईसी लिए तो सरकार ने ईन व्यापारियों को सिर्फ राजदूत का पद ही बिक्री नहीं किया है । सरकार ने तो देश की सभ्यता और संस्कृति को भी बेच कर ईन्हे लाजदूत बना कर खूद को नगां कर दिया है । ईस सरकारी हमाम में सभी नगें है ।
हमाम में बैठे लोगों को तनिक भी लज्जा नहीं होती । बस दूर खिड्की से जो ईन्हे झांक रहे हैं उन्हे ही ईन की कारस्तानियों को देख कर शर्म आती है इसीलिए खिड़की बंद कर देते हैं । लाज से तो लगता है, इस देश का दूर–दूर तक कोई रिश्ता नहीं है । इसीलिए तो जो चिज या नियम, कानून अन्य देशों में गलत है, वह यहां सही होता या सही माना जाता है । क्योंकि न आंख में लाज का पर्दा है न खिड़की में । ईनके पास जमिन तो बहुत है, पर जमिर कंही बहुत निचे दफन हो चूकी है ।
यिनके पास मकान और दूकान बहुत है पर वह कान नहीं जिस से यह सच्चाई सुन सके । यिनके पास आंख है पर वह भी सच्चाई को देख कर भी अनदेखा कर देती है । यिन के पास कार है पर वह बेकार है क्योंकि वह यिनके जमिर मर चुके बेदम शरीर को ढोने वाला शववाहन जैसा ही है । यिनके पास तन ढ़कने के लिए बहुत से वस्त्र हैं पर लाज ढकने का न कोई वस्त्र है न, विवेक को जगाने का कोई मंत्र । बश यह देश के जिश्म में एक कोढ कि तरह है जिसे ढका नहीं जा सकता और जिसको जितना खुजाओ उतना ही बढ़ता है । यह देश के नेता और भाग्यविधाता हैं, ईसी लिए तो राजदूत के जगह पर लाजदूत को नियुक्त कर खुद को दुनिया के सामने सर्वागं कर रहे हैं ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: