दो वर्ष गुजर गए पर त्रासदी की यादें आज भी धुँधली नहीं हुई हैं : श्वेता दीप्ति
विश्व के सभी देशों ने आपदा के उस क्षण मे दिलो जान से मदद की थी । नेपाल की ही आँखे नम नहीं थीं । यहाँ का दर्द सबने महसूस किया था । परन्तु अफसोस अगर किसी बात का है तो वह यह कि अपनो ने ही इस दर्द को महसूस नहीं किया ।
भूकम्प पश्चात सत्तासीन नेता ने फास्ट ट्रैक के नाम पर जो किया उसका भुगतान जनता आज तक कर रही है । आँसू पोछने की जगह सत्ता ने राहत की राशि देखी तथा अपनी नीति का निर्माण किया । लाशों के ढेर एकबार फिर लगे, मसौदा तैयार किया गया, संविधान बना और आज तक इन सबके बीच यहाँ की जनता एक निष्कर्ष हीन राजनीतिक भूकम्प के पराकम्पन को झेल रही है ।
श्वेता दीप्ति, काठमांडू , १२ बैसाख | बैसाख १२ गते २०७२ शनिवार १२ : १५ का दिन नेपाल के इतिहास में एक विनाशकारी दिन के रूप में दर्ज हो चुका है । एक ऐसा दिन जिसने क्षण भर में तबाही का वो मंजर दिखा दिया जिसकी छवि आज तक धुँधली नहीं हुई । दर्द, दहशत, चीखें, कोलाहल और स्तब्ध वीरान आँखें यही नजारा था । जो पास थे उन्हें समेटने का प्रयास और जो दूर थे उनकी सलामती की दुआ मन में थी । तीन दिनों तक अँधकार में डूबा काठमान्डू और मातम का पसरा हुआ सन्नाटा । दो वर्ष गुजर गए । दर्द अपनी जगह कायम है, दिलों के सन्नाटे आज भी वैसे ही हैं । पर बेबसी में ही सही वक्त ने जीना भी सीखा ही दिया है । पर त्रासदी की यादें आज भी धुँधली नहीं हुई हैं ।
जख्म जो अब भी हरे हैं । मौत के उस मंजर को एक बार पीछे मुड कर देखें और यह सोचें कि आज तक हमने उस कहर से क्या सीखा और सरकार ने क्या किया ?
२०१५ नेपाल भूकम्प क्षणिक परिमाण परिमाप पर ७ः८ या ८ः१ तीव्रता का भूकम्प था जो २४ अप्रैल २०१५ सुबह ११ः५६ स्थानीय समय में घटित हुआ। भूकम्प का अधिकेन्द्र लामजुंग, नेपाल से ३८ कि॰मी॰ दूर था। भूकम्प के अधिकेन्द्र की गहराई लगभग १५ कि॰मी॰ नीचे थी। इस भूकंप में कई महत्वपूर्ण प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर व अन्य इमारतें भी नष्ट हो गए जो आज भी अपने उद्धार के इंतजार में है। १९३४ के बाद पहली बार नेपाल में इतना प्रचंड तीव्रता वाला भूकम्प आया था जिससे ८००० से अधिक मौते हुई और २००० से अधिक घायल हुए थे । यह अधिकारिक जानकारी है जबकि संख्या इससे भी अधिक थी । भूकंप के झटके चीन, भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी महसूस किये गये थे। नेपाल के साथ साथ चीन, भारत और बांग्लादेश में भी लगभग २५०लोगों की मौतें हुर्इ थी । इस भूकम्प की वजह से एवरेस्ट पर्वत पर हिमस्खलन आ गया था जिससे १७ पर्वतारोहियों ने भी अपनी जान गँवाई थी । काठमांडू घाटी में यूनेस्को विश्व धरोहर समेत कई प्राचीन एतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुँचा। १८वीं सदी में निर्मित धरहरा मीनार पूरी तरह से नष्ट हो गया अकेले इस मीनार के मलबे से २० से ज्यादा शव निकाले गए ।
भूगर्भशास्त्रियों के अनुसार इस भूकम्प का कारण नेपाल के भूभाग धरती के अंदर हिन्द ऑस्ट्रेलियाई प्लेट के यूरेशियाई प्लेट से टकराने की वजह से हुआ था । जिससे हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ था यह दक्षिणी सीमा पर स्थित है यहाँ धरती के अंदर टेक्टोनिक प्लेटों के विस्थापन की गति लगभग १।८ इंच प्रति वर्ष है। भूकंप के परिमाप, स्थिति और परिस्थितियों से पता चला कि भूकंप का कारण मुख्य प्लेट के खिसकना था । काठमान्डू में भूकंप की तीव्रता इसलिये भी ज्यादा थी क्यूंकि इसका उद्गम काठमांडू के पास था जो कि काठमांडू बेसिन में है जहाँ भारी मात्रा में अवसादी शैल स्थित है ।
इस भूकम्प का उद्गम स्थल लामजुंग नेपाल से लगभग ३४ कि॰मी॰ दक्षिण पूर्व में धरती के अंदर लगभग ९ कि॰मी॰ की गहराई में था। चीनी भूकम्प नेटवर्क केंद्र द्वारा इसकी शुरुवाती तीव्रता ८.१ तक मापी गयी। संयुक्त राज्य भूगर्भ सर्वेक्षण द्वारा इसकी तीव्रता ७.५ फिर ७.९ तक मापी गयी। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार नेपाल के काठमांडू से ८० कि॰मी॰ दूर दो प्रचंड तीव्रता वाले भूकम्प के झटके महसूस किये गये, पहला ७।९एमध और दूसरा ६.६एमध के परिमाप का था। भूकम्प के अधिकेंद्र से सबसे नज़दीकी शहर ३५ किलोमीटर दूर भरतपुर, था। २ तीव्र झटकों के बाद लगभग ३५ से ज्यादा कम तीव्रता वाले झटके (आफ्टर शॉक) आते रहे थे। जब भूकम्प आया तब एवरेस्ट पर्वत पर सैकणों पर्वतारोही चढाई कर रहे थे। भूकम्प के तीव्र कम्पन की वजह से बर्फ की विशाल परतें खिसकने लगी और भूसख्लन शुरू हो गया जिसमें १७ से ज्यादा पर्वतारोहियों के मारे गए थे। ८ मई २०१५ तक के आँकडों के अनुसार नेपाल में ८ हज़ार से ज्यादा लोग मारे गये और दोगुने से ज्यादा घायल हुए ।
भूकंप से एवरेस्ट पर्वत पर हिमस्खलन शुरू हो गया था, बर्फ की विशाल चट्टानों के तेजी से गिरने की वजह से एवरेस्ट आधार शिविर पर कम से कम १७ लोगों की मौत हो गयी थी । जहाँ से भारतीय सेना की एक पर्वतारोही टुकडी ने पर्वत के आधार शिविर से १८ शव निकाले थे । गूगल कंपनी के अभियंता डान फ्रेडिनबर्ग जो कि ३ अन्य सहकर्मियों के साथ एवरेस्ट पर चढाई कर रहे थे वे भी मृतकों में शामिल थे ।
१२ मई २०१५ को दिन में १२ बजकर ३९ मिनट पर एक बार फिर ७.४ के परिमाण का भूकम्प आया।१ बजकर ९ मिनट पर भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए। इसके बाद दोपहर १ बजकर ४४मिनट पर फिर भूकंप का झटका आया। इसकी तीव्रता ४.४ थी। अफरातफरी के उस माहोल में तत्काल राहतकार्य शुरु हुए
नेपाली सेना के लगभग ९०५ जवानों को राहत व बचाव कार्य में तुरंत लगा दिया गया था साथ ही देश के अन्य भागों से स्वयँसेवकों ने भी राहत व बचाव कार्य की कमान संभाल ली। बारिश और खराब मौसम की वजह से बचाव कार्य प्रभावित हो रहा था। इमारतों के गिरने, भूस्खलन और संचार सुविधाओं के चरमराने की वजह से राहत व बचाव कार्यों में बाधा आती रही थी। तत्काल ही विभिन्न देशों ने राहत की घोषणा की जिसमें भारत वह पहला देश था जे सबसे पहले यहाँ पहुँचा । भारत ने राहत व बचाव अभियान कार्यक्रम जिसका कूट नाम ऑपरेशन मैत्री के तहत तुरन्त राहत कार्य शुरु कया था । सिर्फ पंद्रह मिनट के अंदर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक शीर्ष अधिकारियो व मंत्रियों की एक बैठक बुलाई और राहत व बचाव कार्यों को शुरू करने व राष्ट्रीय बचाव दल की टुकडियों को नेपाल भेजने के निर्देश दिया था। दोपहर तक भारत के राष्ट्रीय आपदा मोचन बल और नागरिक सुरक्षा की १० टुकडियाँ जिसमे ४५० अधिकारी व तमाम खोज़ी कुत्तों के साथ नेपाल पहुंच गये थे। दस अन्य भारतीय वायुसेना के विमान राहत व बचाव कार्य के लिये काठमांडू पहुंच गये। भूकम्प के तुरंत बाद सहायता भेजते हुए भारत ने ४३ टन राहत सामग्री, टेंट, खाद्द पदार्थ नेपाल भेजे । भारतीय थल सेना ने एक मेजर जनरल को राहत व बचाव कार्यों की समीक्षा व संचालन के लिये नेपाल भेजा था । भारतीय वायुसेना ने अपने इल्यूशिन आइएल ७६ विमान, सी १३० हर्क्युलीज़ विमान, बोईंग सी १७ ग्लोबमास्टर यातायात वायुयान एम आई १७ हेलिकॉप्टरों को ऑपरेशन मैत्री के तहत नेपाल के लिये रवाना किया था। लगभग आठ एमाई १७ हेलिकॉप्टरों को प्रभावित क्षेत्रों में राहत सामग्री गिराने के काम में लगाया गया। देर शनिवार रात से लेकर रविवार की सुबह तक भारतीय वायु सेना ने ६०० से ज्यादा भारतीय नागरिकों को नेपाल से सुरक्षित निकाला । दस उडानें जो रविवार के लिये तैयार थीं सेना के चिकित्सकों, चलायमान अस्पतालों, नर्सों, दवाइयों, अभियाँत्रिकी दलों, पानी, खाद्द पदार्थ, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल और नागरिक सुरक्षा की टुकडियों, कम्बल, टेंट व अन्य जरूरी सामान लेकर नेपाल पहुंचें।
भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में हर नेपाली के आँसू पोंछने की बात कही। भारतीय सेना के एक पर्वतारोही दल ने एवरेस्ट के आधार शिविर से १९ पर्वतारोहियों के शवों को बरामद किया और ६१ फंसे हुए पर्वतारोहियों को बाहर निकाला। भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर एवरेस्ट पर्वत पर बचाव अभियान के लिये २६ अप्रैल की सुबह पहुंच गये थे। भारतीय विदेश सचिव एस जयशंकर ने ६ और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दलों को अगले ४८ घंटों मे नेपाल भेजने की घोषणा की। उन्होने यह भी कहा कि जो वायुयान नेपाल भेजे जा रहे हैं वो सिर्फ भारतीय ही नहिं बल्की विदेशी नागरिकों को भी निकालने में लगाये जायेंगे। रविवार की शाम तक भारत ५० टन पानी, २२ टन खाद्द सामग्री और २ टन दवाइयाँ काठमांडू भेजीं। लगभग १००० और एनडीआरएफ़ के जवानों को बचाव अभियान में लगा चुका था । सडक मार्ग से भारी संख्या में भारतीय व विदेशी नागरिकों का नेपाल से निकलना जारी था। सोनौली और रक्सौल के रास्ते फंसे हुए भारतीयों व विदेशियों को निकालने के लिये सरकार ने ३५ बसों को भारत नेपाल सीमा पर लगाया। भारत ने फंसे हुए विदेशियों को सद्भाव वीज़ा जारी करना शुरू कर दिया था और उन्हे वापस लाने के लिये सडक मार्ग से कई सारी बसें और एम्बुलेंस भेजना शुरू कर दिया था। भारतीय रेलवे ने राहत अभियान के तहत १ लाख पानी की बोतलें भारतीय वायुसेना की मदद से नेपाल भेजीं। रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने बाद में ट्वीट करते हुए लिखा था की रोज़ाना १ लाख पानी की बोतलें नेपाल भेजने के उपाय किये जा रहे हैं। एयर इंडिया ने नेपाल को उडान भरने वाली अपनी सभी उडानों के टिकट किराये में भारी घटोत्तरी कर दी। एयर इंडिया ने घोषणा करते हुए कहा कि वह अपनी सभी उडानों में यथासंभव राहत सामग्री भी ले जायेगी । सोमवार सुबह तक भारतीय वायुसेना ने १२ विमानों की मदद से २००० भारतीय नागरिकों को नेपाल से बाहर निकाल लिया था । भारतीय थल की १८ टुकडियाँ राहत व बचाव कार्य के लिये नेपाल पहुंच चुकी थी। थल सेना ने १० अभियाँत्रिकी टुकडियों को सडक मार्ग को साफ करने, पुनर्निमाण करने के लिये भेजा था । विश्व के सभी देशों ने आपदा के उस क्षण मे दिलो जान से मदद की थी । नेपाल की ही आँखे नम नहीं थीं । यहाँ का दर्द सबने महसूस किया था । परन्तु अफसोस अगर किसी बात का है तो वह यह कि अपनो ने ही इस दर्द को महसूस नहीं किया । भूकम्प पश्चात सत्तासीन नेता ने फास्ट ट्रैक के नाम पर जो किया उसका भुगतान जनता आज तक कर रही है । आँसू पोछने की जगह सत्ता ने राहत की राशि देखी तथा अपनी नीति का निर्माण किया । लाशों के ढेर एकबार फिर लगे, मसौदा तैयार किया गया, संविधान बना और आज तक इन सबके बीच यहाँ की जनता एक निष्कर्ष हीन राजनीतिक भूकम्प के पराकम्पन को झेल रही है ।