मधेश को फूट पैदा करने में तीन पार्टियों की साजिश है : हरिनारायण प्रसाद रौनियार
हरिनारायण प्रसाद रौनियार, बीरगंज, २ जुलाई | नेपाल में संविधान जारी होने से पूर्व मधेश में पृथक ढंग से आंदोलन चल रहा था । बाद में संगठित रूप से आंदोलन करने की आवश्यकता महसूस हुई । फलस्वरूप इस आंदोलन में मधेश के सभी नेतागण और मधेश की जनता एकजुट होकर आगे बढे । आंदोलन के ही दौरान हमारी मांगों को दरकिनार कर संविधान जारी किया गया । इस संविधान के विरोध में मधेश के ५१ प्रतिशत लोग काला दिवस के रूप में मनाया । फिर भी शासकवर्ग रणनीतिक रूप से कुटिल रवैया अपनाते गये । आंदोलन भी जारी रहा । आंदोलन के दौरान बहुत सारे मधेशी सपूत शहादतें भी दीं । इसी बीच संविधान में संशोधन भी हुआ । तत्पश्चात् पुनः आंदोलन हुआ । हमारी मांगों को लेकर सरकार और मधेशी दलों के बीच सहमति हुई । पुनः सरकार बनी । मधेश के एक धड़ा सरकार में भी गया और अन्य मधेशवादी दल सरकार को समर्थन तो किये, लेकिन मत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए । उसी समय निकाय चुनाव को सम्पन्न करने के लिए सहमति हुई । जिसे हम सकारात्मक रूप में लेते हैं । सच में कहा जाय तो हमारी मांगें गांवपालिका व नगरपालिका से पूरी नहीं हो सकेगी । पार्लियामेन्ट से ही पूरी हो सकती है ।
प्रथम चरण के निकाय चुनावों की घोषणा हुई । उस समय भी हमारे अध्यक्ष उपेन्द्र यादव जी ने कहा कि जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जाती, तब तक हम चुनाव में शामिल नहीं होंगे । हमारी मांगों में से कुछ मांगें कैबिनेट से और कुछ मांगें पार्लियामेन्ट से पूरी सम्बोधन होने वाली हैं । कुछ मांगें पूरी हुई और कुछ मांगें प्रक्रिया में हैं । इसी दौरान मधेश के दलों के बीच द्वन्द्व करवाने के लिए एक बहुत बड़ा षड़यन्त्र हुआ । कथित तीनों बड़ी पार्टियां नेपाली कांग्रेस,एमाले और माओवादी मिल गयीं । तीनों दलों के बीच एक रणनीति बनी । इसी रणनीति के तहत एक दल ने कहा कि हम गाली देने जैसा करेंगे, दूसरे से कहा गया तुम पीटने जैसा करो और तीसरे से कहा गया तुम बचाने जैसा करो । इस प्रकार इन तीनों दलों की करतूत को देखने से साफ होता है कि मधेश को फूट पैदा करने में इन तीन पार्टियों की ही साजिश रही है ।
इसी दौरान हमारी पार्टी की बैठक हुई । बैठक में विमर्श हुआ कि निर्वाचन में शामिल होने के लिए हम सभी दलों के बीच सहमति हुई है । इसलिए हमे चुनाव में जाना चाहिए । यदि हम चुनाव में शामिल नहीं होते हैं, तो हम बिखर जाएंगे । इस सवाल को लेकर हमारी पार्टी चुनाव में शामिल हुई । इसी दौरान मधेश में दूसरी पार्टी का निर्माण हुआ । शायद उनलोगों की यही सोच रही होंगी कि हम पीछे पड़ जाएंगे और उपेन्द्र यादव आगे बढ़ जाएंगे । यही हम मधेशियों की एक संस्कृति रही है कि जो लोग आगे बढ़ता है, तो उसके पैर खींचो । यहीं से दरार पैदा हो गया ।
दूसरी तरफ हमारी पार्टी मधेश और संघीयता को लेकर आगे बढ़ी है । विधान में ही स्पष्ट शब्दों में लिखा गया है कि यह पार्टी संघीय राष्ट्र स्थापना की पार्टी है, जो मुस्लिम, थारु, जनजाति, दलित और मधेशी को प्रतिनिधित्व करेगी । मै पुनः संस्मरण कराना चाहुंगा कि आज छह प्रदेशों में चुनाव संपन्न हो गये । इस से साफ है कि वहां के लोग आर्थिक रूप से अवश्य समृद्ध हो जाएंगे । यर्हा तक कि स्थानीय लेवल के प्रशासन चलाने में भी सक्षम हो जाएंगे । अगर प्रदेश नं. दो में चुनाव हो भी गया तो यह प्रदेश छह महीने के लिए पीछे पड़ गया । क्योंकि इसकी गिनती वैशाख ३१ से ही होगी । इस प्रकार साफ है कि यह प्रदेश आर्थिक व सामाजिक दृष्टिकोण से भी छह महीनों के लिए पीछे पड़ गया । प्रदेश नं. २ में चुनाव होना चाहिए था, ऐसा मुझे लगता है ।
जहांतक संघीयता की बात है, तो मेरी धारणा है कि जब तक हमें पूर्ण संघीयता नहीं मिल जाती, तव तक हमें आंदोलन जारी रखना चाहिए । हमें तो पार्लियामेन्ट में लड़ना है, गांव में क्यों लड़ें ? हम अपने उद्योग बन्द करते हैं, अपने ही लोगों की रोजी–रोटी से बंचित करते हैं, गरीब को और गरीब बनाते हैं, ऐसा क्यो ? एक समय ऐसा था, हमे मधेशी शब्द से संबोधित किया जाता था । यही शब्द संबोधित करते–करते आज एक मधेश ‘जात’ का आविष्कार हो गया और आज यह शब्द अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गया है । मधेशी संस्कृति स्थापित हो चुकी है और हम मधेशी अपने आप को स्थापीत भी कर चुके हैं ।
(हरिनारायण प्रसाद रौनियार संघीय समजवादी फोरम नेपाल के केन्द्रीय सदस्य हैं)