नेताजी ! ना पहाड का जवाई काम आया और ना ही मधेश का बेटा : सुरभि
सुरभि, बिराटनगर | “गइल भैंस पानी में” हाँ हजूर अभी तो यह जुमला सोशल मीडिया की जान बनी हुई है । वो तो अचानक प्रकृति ने आपका साथ दे दिया, बाढ़ के कहर ने उनका स्टेटस बदल दिया है वरना अभी तो ना जाने कितने जुमले आपके लिए आते । पर जो भी हो, मसीहा की मसीहागिरी तो दाँव पर लग ही गई ना ? पर चिन्ता की कोई बात नहीं, क्या हुआ जो हाथ खाली रह गए, झोली तो भर गई ना, आने वाली पीढ़ी तो ऐश करेगी ना । और वैसे भी मधेश की जनता का दिल बहुत बड़ा है । जरा सा मुस्कुरा दीजिए, गले से लगा लेंगे । पर आजकल जनाब दिख नहीं रहे, ना जाने किस सोच में कहाँ गुम हैं । इस हालात के नजर एक गाना है जो आज शिद्दत से याद आ रहा है—
“दिले बेताब को सीने से लगाना होगा,
आज परदा है तो कल सामने आना होगा,
आपको प्यार का दस्तूर निभाना होगा
दिल झुकाया है तो सर को भी झुकाना होगा ।”
दिल और सर अपनों के ही सामने झुकते हैं । मधेश का दिल बेताब है आपके दीदार के लिए यकीन मानिए वो आप ही के अपने हैं, किसी सीमा पार से आयातीत नहीं हैं और ना ही उनके पास कोई बुलेट है । दिल में जो भी है उसे गोली मारिए क्योंकि दिल का भरोसा नहीं आजकल कभी भी धोखा दे जाती है । एक ही क्षण में आँख बन्द डिब्बा गायब इसलिए एक बार सर ही झुका दीजिए सब कहा सुना माफ । वैसे उड़ती सी खबर तो आ रही है कि हुजूर के मिजाज फिर से ट्रैक पर आ रहे हैं पर जनाब आपने उन्हें तो मौका दे ही दिया जो मधेशी को आम और कीड़ मकोड़े से ज्यादा नहीं समझते हैं । टाइटेनिक वाली स्थिति मधेश की बना दी है आपलोगों ने । बहुत भरोसा था कि जहाज डूबने नहीं देंगे पर आपने तो मिसाल कायम कर दी हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे । ना आपके तारणहार काम आए और ना ही आप तारणहार बन सके । ना पहाड का जवाई काम आया और ना ही मधेश का बेटा । नेता जी एक प्रयोग आपने किया और दूसरा वैज्ञानिक साहब ने । उन्होंने मत का प्रतिशत बढा दिया और आपने अपनी ही नहीं मधेश की शाख गँवा दी । पर वो तो वैज्ञानिक हैं प्रयोग करना बनता है पर आप ? खैर, परदा जब गिरने के करीब आता है, तब कहीं जाकर कुछ खेल समझ में आता है यही राजनीति है । खेलते आप हैं जनाब मोहरे हम जैसी जनता बनती है । फिर भी आप के हम हों ना हों, आप तो हमारे ही हैं । (व्यंग्य )