तराई-मधेश ने रक्षाबंधन मनाने सरकारी की ‘उर्दी’ को नकार दिया है : कुमार
बीरगंज| आज नेपाल में नागपंचमी के साथ-साथ ‘जनैपूर्णिमा’ और रक्षाबंधन मनाने की ‘उर्दी’ जारी कर दी गई है और इसके अनुरूप कुछ लोग इसे मना भी रहे हैं । लेकिन रक्षाबंधन को लेकर विवाद अधिक गहराया है । तराई-मधेश ने एक तरह से इसे नकार दिया है । न तो मिठाइयों और फलों की दुकान में भिड़ है और न ही शहर के फ़ुटपाथ पर रंग-बिरंगी राखियों की दुकानें ही हैं । न कहीं राखी के गीत सुने जा रहे हैं और ण ही लोगों में किसी प्कार की चहल-पहल देखी जा रही है । ज्ञातव्य है कि नेपाल में नागपंचमी के साथ-साथ ‘जनैपूर्णिमा और रक्षा बंधन शुक्रवार (13 गते,श्रावण/ 28 जून) को मनाने का एलान हो चुका है और सरकारी स्तर पर भी इसी दिन अवकाश आदि की घोषणा की गई है और एक तरह से भ्रम की सृजना की गई है । परंपरागत रूप में हम श्रावण पूर्णिमा के दिन यह त्योहार मनाते आ रहे हैं और यह तिथि इस त्योहार के लिए रूढ हो गई है । दूसरा मत परंपरागत रूप में ही श्रावण 23 गते/ 7 जुलाई को यह त्योहार मना रहा है । वैसे यह त्योहार मनाने, न मनाने या कभी भी मना लेने से कोई पहाड़ नहीं टूटने वाला । लेकिन ऐसी उलट-पुलट से परंपराएँ टूटती हैं और विश्वास खंडित होता है । वैसे तो हमारी यह विशेषता बनती जा रही है कि पाँच तथाकथित विद्वान बैठकर व्याकरण, वर्त्तनी और ध्वनिविज्ञान का नियम बदल देते हैं, पाँच महानेता बैठकर संविधान बना देते हैं और अब पाँच ज्योतिषी मिलकर त्योहारों को मनाने की तिथि भी बदल देते हैं । सच यह है कि यहाँ के कुख ज्योतिषी भी नागपंचमी के दिन रक्षाबंधन मनाने के तर्क को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया है और परंपरागत रूप में श्रावण पूर्णिमा को ही मनाने की वकालत की है । लेकिन नयापन और पृथकता का भूत हमारी बौद्धिकता पर इस तरह सवार है कि हम सत्य को न तो देख और समझ नहीं पा रहे हैं ।लेकिन यह जो नयी प्रवृत्ति हावी हुई है उससे तो लगता है कि शायद अब वह दिन दूर नहीं जब दुर्गापूजा और होली-दिवाली मनाने के लिए भी सुविधानुसार तिथियाँ बनाई जाए और हमें उसका पालन करने के लिए हमें विवश किया जाए ! जो भी हो लेकिन इससे तो यही लगता है कि बौद्धिक रूप से हम इतने ऊँचे उठ चुके हैं जहाँ से अजीबोगरीब की सीमा प्रारंभ होती है जिसे सामान्य लोग पागलपन भी कहते हैं । परंपरा, व्रत, त्योहार की तिथि या स्वरूप खंडित करते हुए इस क्षेत्र के हमारे महानायकों को इतनी समझ तो होनी ही चाहिए कि यह वेटिकन सीटी की तरह छोटा देश नहीं जहाँ पोप के रूप में धर्म का शासन चलता हो । यहाँ बहुसंख्यक हिंदू समुदाय के लोग रहते हैं जो सनातन धर्म को मानते हैं और इनकी परंपराएँ और विस्तार सिर्फ़ नेपाल में नहीं है । इसलिए धार्मिक दृष्टिकोण में भी संतुलन की आवश्यकता है ।
रक्षाबन्धन की तिथि तथ्यहीन : आचार्य पण्डित सन्तोष कुमार
देश के विभिन्न इलाकों में आज रक्षाबन्धन मनाया जा रहा है. वहीं मिथिलाञ्चल में श्रावण २३ को यह पर्व मनाया जाएगा .
सनातन काल से श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षाबन्धन मनाने की परम्परा रही है लेकिन पंचांग निर्णायक समिति काठमाण्डू ने इस वर्ष नागपंचमी के दिन अर्थात आज यह पर्व मनाने की घोषणा की है .जबकि काशी विश्वविद्यालय ,दरभंगा विश्वविद्यालय ,कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा जारी किया गया पंचांगों में श्रावण पूर्णिमा [श्रावण २३ गते ]को उल्लेख किया गया है .
आचार्य पण्डित सन्तोष कुमार ने पंचांग निर्णायक समिति काठमाण्डू द्वारा घोषित तिथि में कोई सत्यता न होने का दावा किया है.उन्होंने कहा कि पंचांग निर्णायक समिति काठमाण्डू ने मनमौजी ढंग से तिथि की घोषणा की है . उन्होंने श्रावण २३ गते सोमवार को रक्षाबन्धन मनाने के लिए मिथिलावासियों से आग्रह किया है .