सत्ता के खेल में फंसा संविधान
लीलानाथ गौतम
संविधान निर्माण के मुख्य मुद्दे को एकओर हटाकर अचानक सरकार परिवर्तन के मुद्दे को आगे बढाते हुए राजनीतिक दलों ने अन्ततः नयी सरकार का निर्माण किया है। आगामी जेठ १४ गते के अन्दर संविधान जारी करने के लिए राष्ट्रिय सहमति की सरकार होनी चाहिए, इस में जोडÞ देडनेवाले राजनीतिक दल नयी सरकार का निर्माण करने में सफल तो हुए हैं, परन्तु संविधान जारी कर सकेंगे या नहीं यह प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है। इतना होते हुए भी राजनीतिक दलों की सक्रियता को देखते हुए लगता है कि इस समय संविधानसभा नया संविधानको जन्म देने की प्रसवबेदना में छटपटा रही है। हम लोग सहमति के नजदीक हैं, दलों का ऐसा कहना है, फिर भी राज्यपर्ुनर्संरचना सम्बन्धी विषय को लेकर उन के अन्दर विबाद कायम ही है। इसी विषय को लेकर विभिन्न समूह देशव्यापी रुप में आन्दोलरत हैं। ऐसी स्थिति में नये संविधान का जन्म इतना सहज नहीं लगता। कुछ शर्ीष्ा नेतागण बन्द कमरे के अन्दर सहमति के नाम में ‘अप्रेशन’ करके नये संविधान को जन्म देते हैं तो वह नवजात संविधान अस्वस्थ भी हो सकता है। अर्थात् जनता की भावना को समेटने में संविधान अर्समर्थ भी हो सकता है। इसलिए आगामी संविधान सिर्फकागजका पुलिन्दा होकर न रह जाय, यह सवाल ज्वलन्त रुप में विद्यमान है।
खैर, संविधानसभा निर्वाचनपश्चात् पाँच वर्षों से राजनीतिक दल सहमतीय सरकार के लिए नारा बुलंद करते आ रहे थे, जिस में अभी कुछ सफलता मिली है। उसी तरह संविधान निर्माण के लिए बाधक कहा जानेवाला माओवादी सेना समायोजन का विषय इस समय दरकिनार कर दिया गया है। इन दोनों घटनाओं से कुछदेर मुँह मोडÞ लेने पर अब संविधान निर्माण का पथ प्रशस्त दिखता है। इतना ही नहीं खासकर दो फरक राजनीतिक दर्शन रखनेवाले एकीकृत नेकपा माओवादी और नेपाली कांग्रेस भी भावी संविधान कैसा हो, इस विषय में लगभग सहमति के नजदीक पहुँच चुके हैं। कम्युनिष्ट दर्शन में आधारित जनवादी संविधान की वकालत करनेवाली एमाओवादी और पुराने संसदीय प्रणाली में आधारित प्रजातान्त्रिक संविधान की वकालत करनेवाली नेपाली कांग्रेस के बीच भावी संविधान कैसा होना चाहिए, इस विषय में सहमत होना भी संविधान निर्माण के लिए एक मजबूत आधारशिला है, ऐसा माना जा सकता है। राजनीतिक दर्शन के आधार पर दो विपरीत ध्रुव में रहे दो दलों के बीच सहमति होना ही नेपाली राजनीति में एक नयाँ मोडÞ है, जिससे शान्ति प्रक्रिया और संविधान निर्माण के लिए बडÞी उपलब्धि मानी जाएगी। इसी के परिणाम स्वरुप संविधानसभा निर्वाचन के बाद पहली बार दो दल एक ही सरकार में सम्मिलित हुए हैं। इतना होने पर अब किसी को शंका नहीं है कि भावी संविधान प्रजातान्त्रिक सिद्धान्त को आत्मसात् करके ही आगे बढÞ पाएगा लेकिन राज्यपर्ुनर्संरचना और शासकीय स्वरुप के विषय को लेकर राजनीतिक दलों के बीच अभी भी मतान्तर कायम है। जिससे संविधान निर्माण कार्य में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
दूसरी ओर राज्यपर्ुनर्संरचना के विषय को लेकर अभी देशव्यापी रुप में आन्दोलन जारी है। विभिन्न समूह में विभाजित लोग सडÞक में उतर कर नारोबाजी कर रहे है। उनकी माँगों को सुनने पर लगता है, भावी संविधान का कहीं गर्भपतन हीं न हो जाए। पश्चिमी नेपाल में ‘अखण्ड सुदूरपश्चिम होना चाहिए’ इस माग के साथ एक समूह आन्दोलन में उतरा है। वहीं थरुहट प्रदेश की माँग करते हुए थारु समुदाय भी आन्दोलन में सक्रिय है। उसी तरह ‘तर्राई एक प्रदेश होना चाहिए’ मधेशी मोर्चा की यह माँग भी यथावत् है। सैद्धान्तिक रुप में एकआपस में विरोधी रहे इसी तरह के बहुसंख्यक समूह देशव्यापी रुप में सक्रिय हैं और जाति तथा भाषा के आधार पर अपना-अपना अलग राज्य मागते हुए आन्दोलनरत हैं। कहीं मिथिला प्रदेश, कहीं लिम्बुवान तो कही खुम्बुवान और इधर आकर भोजपुरा प्रदेश आदि माँगे राजनीतिक वृत्त में जोरों पर सुनाइ दे रही है। ‘अपने को अन्य जाति की सूची में रख दिया गया’ कहते हुए अपनी पहचान बनाने के लिए भावी संविधान में सुनिश्चितता की माँग करते हुए बडÞी संख्या में ब्राहृमण-क्षत्रीय समुदाय भी अभी सडÞक में उतर आया है। उसी तरह जातीय आधार में राज्य पर्ुनर्संरचना करना देश के हित में नहीं होगा, ऐसा कहते हुए कुछ दल आन्दोलन में सक्रिय हैं।
राज्य की माँग करते हुए सडÞक में उतरनेवाले ऐसे बहुत समूह है, उन सबों की माँग को सम्बोधित कर पाना राज्य के लिए अभी सम्भव नहीं दिखता। इसका सिधा असर संविधान निर्माण प्रक्रिया पर पडÞेगा, यह निश्चित है। इसका सामना करना वर्तमान सरकार के लिए सबसे बडÞी चुनौति साबित होगी। लेकिन सडÞक में उतरे हुए सभी समुदाय को सन्तुष्ट बनाकर संविधान निर्माण करने से भी ज्यादा दलों के बीच आपसी सहमति के आधार पर संविधान निर्माण करने की तैयारी में सब लगे हुए हैं। इससे भी भावी संविधान के कार्यान्वयन पक्ष को शंकास्पद बताया जा रहा है। खास कर तीन प्रमुख दल और मधेशी मोर्चा के शर्ीष्ा नेता लोग बन्द कोठरी में बैठकर संविधान बनाएँगें तो वह संविधान जनभावनाअनुकूल नहीं हो सकेगा कहते हुए खुद सत्तासाझेदार दल के कार्यकर्ता लोग भी विरोध कर रहे है।
उसी तरह संविधान जारी करने के सवाल में एक महत्त्वपर्ूण्ा पक्ष अनिणिर्त रुप में छोडÞ दिया गया है। वह है, संविधानसभा द्वारा संविधान के मसौदे को जनता में लेजाकर विचार-विमर्श करने के बाद ही अन्तिम रुप देना। अन्तरिम संविधान में ही की गई इस प्रक्रिया को राजननीतिक दलों के कारण अब कार्यान्वयन करना असम्भव दिखता है। इस तरह अपने ऊपर शासन करनेवाला सर्वोच्च विधान, जिसे राजनीतिक भाषा में ‘संविधान’ कहते हैं, वह कैसा बना है, यह जानने से पहले ही राजनीतिक दलों की हठधर्मिता से जारी संविधान को दूसरे रोज ही सडÞक में र्सार्वजनिक रुप से जलाने का काम नहीं होगा, यह नहीं कहा जा सकता। सरकार निर्माण का काम पूरा होने के बाद संविधान निर्माण के लिए जुटे हुए राजनीतिक दलों के बीच इन विषयों को कैसे सम्बोधित किया जाए, यह अभी स्पष्ट नहीं है। उसकी तैयारी बहुत जरुरी है। विवादित ऐसे विषयों को सम्बोधित न करते हुए बनाया गया संविधान जनता को सन्तुष्ट नहीं कर पाएगा। जो हो, दलों के बीच विकसित राजनीतिक सम्बन्ध और सहमति में यदि कोई नाटकीय परिवर्तन नहीं आता तो आगामी जेठ १४ गते तक संविधान जारी हो जाएगा, सामान्यतया ऐसा विश्वास किया जा सकता है। इसके लिए दलों को सक्रियता और संयमता धारण करना ही होगा।
सहमतीय सरकार की रामकहानी
संविधान निर्माण के लिए विवादित विषयों में छलफल के लिए जुटे दलों की बैठक में अचनाक राष्ट्रिय सहमति की सरकार बननी चाहिए, इस मुद्दे का प्रवेश हुआ। विशेषकर नेपाली कांग्रेस और नेकपा एमाले बिना सरकार परिवर्तन के संविधान बन नहीं सकता इस अडÞान पर कायम थे। सरकार परिवर्तन के विपक्ष में रहे एकीकृत नेकपा माओवादी और मधेशी मोर्चा अन्तिम समय में आकर इस विषय में सहमत हुए हैं। सरकार परिवर्तन के लिए ही दलों ने मध्यरात तक विचार विमर्श करके पाँचसूत्रीय सहमति की। उसी के अनुसार ही वर्तमान सरकार का गठन हुआ है।
गत कार्तिक १५ गते हर्ुइ सात सूत्रीय सहमति के अनुसार राष्ट्रिय सहमति की नई सरकार बननी चाहिए, कांग्रेस और एमाले इस बात पर अडेÞ हुए थे। उसी तरह एमाओवादी के अन्दर उपाध्यक्ष मोहन वैद्य पक्ष ने भी सरकार परिवर्तन के मुद्दे को आगे बढÞाया था। फिर भी इसे मर्ूत्त रुप नहीं मिला था। ऐसी अवस्था में पिछली बार नेकपा एमाले के नेता केपी शर्मा ओली की सक्रियता के कारण ही वर्तमान सरकार में परिवर्तन हुआ है। संविधान के विवादित विषय में छलफल के लिए संविधानसभा भवन में कांग्रेस पदाधिकारियों की बैठक में अचानक प्रवेश करते हुए एमाले नेता ओली ने सरकार परिवर्तन के बिना किसी हालत में संविधान निर्माण कार्य आगे नहीं बढाना चाहिए, ऐसा प्रस्ताव रखा। ओली के उक्त प्रस्ताव को नेपाली कांग्रेस के नेता रामचन्द्र पौडेल ने अपनी तरफ से प्रमुख तीन दल और मधेशी मोर्चा की बैठक में रखा। लेकिन माओवादी और मधेशी मोर्चा ने वर्तमान अवस्था में किसी भी हालत में सरकार परिवर्तन नहीं किया जा सकता, ऐसा बताया था। उसके बाद सरकार के विरुद्ध में अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए नेपाली कांग्रेस की तरफ से हस्ताक्षर अभियान भी शुरु हुआ। जिसके कारण उक्त विषय में विचार-विमर्श करके पाँचसूत्रीय सहमति के लिए एमाओवादी और मधेशी मोर्चा बाध्य हुए। सहमति के साथ ही प्रधानमन्त्री के अलावा सभी मन्त्रियों ने सामूहिक त्यागपत्र दिया।
क्या है पा“चसूत्रीय सहमति में –
इस सहमति का पहला बुँदा वर्तमान मन्त्रिपरिषद के सभी सदस्यों द्वारा त्यागपत्र देने के बाद वर्तमान अवस्था में दो दिनों के अन्दर विगत में सम्पन्न सात सूत्रीय सहमति बमोजिम प्रधानमन्त्री डा. बाबुराम भट्टर्राई के नेतृत्व में सहमतीय नई सरकार बनेगी, ऐसा उल्लेखित है। पहले बुँदे के अुनसार अभी नई सरकार बनी है। उसी तरह सहमति के दूसरे बुँदे में संविधान निर्माण क्रम में दिखाइ दिए राज्य पर्ुनर्संरचना, शासकीय स्वरुप इत्यादि के सभी विषयों को सहमति में पहुँचाकर सहमति न होनेवाले विषयों को प्रक्रिया के माध्यम से निर्ण्र्ाामें ले जाया जाएगा, ऐसा उल्लेख है। बुँदा तीन में आगामी जेठ १४ गते के पहले ही नयाँ संविधान घोषणा करना, घोषणा करने से पहले वर्तमान प्रधानमन्त्री के द्वारा राजीनामा देकर कांग्रेस के नेतृत्व में राष्ट्रिय सहमति की सरकार गठन करना और इसी सरकार के द्वारा एक वर्षके अन्दर राष्ट्रिय आमनिर्वाचन सम्पन्न कराना उल्लेखित है। बुँदा चार में शान्ति प्रक्रिया के बाँकी काम विगत की सहमति बमोजिम सम्पन्न किए जाएँगे, ऐसा उल्लेख है तो दूसरी ओर बुँदा पाँच में संविधान निर्माण के काम को तीव्रता देने के लिए दलों के शर्ीष्ा नेतागण नियमित रुप में बैठक करेंगे, ऐसा उल्लेखित है।
कार्यान्वयन होगी पा“च सूत्रीय सहमति –
पाँच सूत्रीय सहमति में दलों ने जेठ १४ के पहले ही संविधान घोषणा करने का दाबा किया है, फिर भी व्यावहारिक रुप में यह उतना सहज नहीं दिखता। संविधान जारी करने का समय अब बहुत कम रह गया है। छोटी सी अवधि में दलों के बीच राज्य पर्ुनर्संरचना के सवाल में सहमति हो पाना सहज नहीं है। इस मुद्दे को संविधानसभा में बहुमतीय प्रक्रिया में ले जाने से और अधिक समय लगेगा। राज्यपर्ुनर्संरचना करते समय जातीय, भाषिक, सामर्थ्य और पहचान को आधार बनाना चाहिए, ऐसा कहनेवाले मधेशी मोर्चा तथा विभिन्न जातजाति की माँग को सहज रुप में संबोधन करने के लिए नेपाली कांग्रेस और नेकपा एमाले तैयार नहीं दिखते। पहचान के मुद्दे को सम्बोधित न करते हुए संविधान जारी होने नहीं देंगे, इस अडÞान में बैठे मधेशी मोर्चा और जातीय समुदाय की एक शक्ति और इसके विपरीत विचारधारा रखनेवाली दूसरी शक्ति के बीच सहज सहमति की सम्भावना नहीं है। इससे दलों के कथनानुसार जेठ १४ के आगे ही संविधान जारी होगा और नेपाली कांग्रेस की नेतृत्व में नई चुनावी सरकार बनेगी, यह बात जरा हास्यास्पद भी लगती है। उसी तरह प्रत्यक्ष निर्वाचित राष्ट्रपति और संसद से निर्वाचित कार्यकारी प्रधानमन्त्री के बीच शक्ति बटवारा करते हुए मिश्रति प्रणाली को शासकीय स्वरुप में दलों के बीच अनौपचारिक सहमति हर्ुइ है, ऐसा दावा होने पर भी इस मुद्दे का सन्तोषजनक समाधान नहीं दिखता है। उसी तरह न्याय प्रणाली और नागरिकता जैसे विषयों में दलों के बीच पुनः विवाद होने की सम्भावना कायम है।
दूसरी ओर जेठ १४ में संविधान नहीं उसका सिर्फमसौदा जारी होगा, ऐसा कुछ नेता लोग र्सार्वजनिक रुप से कहते आ रहे है। यदि यह बात सही है तो संविधान को पर्ूण्ा रुप से जारी करने मंे और कुछ समय लग सकता है। सिर्फमसौदा घोषित करके प्रधानमन्त्री राजीनामा नहीं देंगे। उसके बाद प्रधानमन्त्री का त्यागपत्र माँगनेवाले और संविधान जारी होने के बाद त्यागपत्र दिया जाएगा, इस विचारधारा वालों के बीच नयाँ द्वन्द्व शुरु हो सकता हैं। इस प्रकार पाँच सूत्रीय सहमति ऐसा विवादास्पद है कि जेठ १४ गते सिर्फमसौदा जारी होने पर डा. भट्टर्राई पक्षीय संविधान जारी के बाद ही त्यागपत्र देने का तर्क आगे राखेंगे, जो एक हदतक सही भी है। उधर सरकार का नेतृत्व का दाबा करनेवाली नेपाली कांग्रेस जेठ १४ के बाद अपना नेतृत्व दाबा कर सकती है। इस तरह राजनीतिक द्वन्द्व और बढ जाएगा। ऐसी अवस्था में पाँचसूत्रीय सहमति में उल्लेखित एक वर्षके अन्दर राष्ट्रिय चुनाव होने की बात कल्पना मात्र रह जाएगी। फिर भी जब तक सास तब तक आश ! ऐसे बहुत सारे प्रश्न और समस्याओं की प्रसवबेदना से परेशान संविधानसभा जल्द ही नेपाल और नेपाली के सुन्दर भविष्य के लिए नयाँ संविधान को जन्म देगी, जिससे सभी जातजाति, भाषाभाषी तथा पिछडे हुए समुदाय को भी न्याय सुलभ होगा। ±±±