बेटियाँ बचाओ : विनोदकुमार विश्वकर्मा `विमल `
देश में लोकतन्त्र की प्राप्ति के बाद भी ग्रामीण स्त्रियाँ ऐसी हैं जिनकी कोई मर्जी नहीं होती और उन्हें हर काम दूसरों के हिसाब से करना पड़ता है . क्या हमारी संस्कृति में ये लिखा है कि एक औरत को उसकी मर्जी से जीने का कोई हक नहीं है ? घरों में आज भी स्त्रियों का कोई सम्मान नहीं है .आखिर नारी इतनी मजबूर क्यों है ? क्यों सारे परिवार को अपना बनाने के बाद उसके सारे हक खो जाते हैं ? क्यों सारे परिवार का ख्याल रखने के बाद उसके जज्बातों को समझने वाला कोई नहीं होता ? आखिर महिला को सम्मान क्यों नहीं किया जाता है ? नारी की महत्ता को हम क्यों नहीं समझ पा रहे हैं ?
हिन्दी के महाकवि जयशंकर प्रसाद लिखते हैं – नारी तुम केवल श्रद्धा हो
नारी वास्तव में नि;सन्देह श्रद्धा है .वह मानव जीवन के समतल में बहने वाली अमृतधारा है .जिस प्रकार तार के बिना वीणा बेकार होती है ,उसी प्रकार नारी के बिना मनुष्य का सामाजिक जीवन भी अर्थहीन होता है .ऐसा लगता है ,जैसे जीवन की सच्चाई को मनीषियों ने पहले ही जान लिया था . नारी कितनी महिमामयी है ,वह मनु के इस कथन से भी प्रमाणित हो जाता है – जहाँ नारी की पूजा होती है ,वहाँ देवता का निवास होता है .नारी की स्नेहभरी वाणी, उदार व्यवहार ,करुणामय हृदय तथा दया भाव समाज तथा मानवता के लिए उस परमपिता परमेश्वर या सर्वोपरी वरदान है .
हर बेटी के भाग्य में पिता होता है पर हर पिता के भाग्य में बेटी नहीं होती है . गुरुप्रित जी कहते हैं -“ फूल ना रहे धरती पर तो फल तुम कैसे पाओगे ,अंश काटकर अपना तुम कैसे वंश बचाओगे .“इसीलिए बेटी को बचाओ ,क्योंकि-
अन्त में अगर बेटा नूर है तो बेटी कोहिनूर है .बेटी बचाओ ,बेटी बचाओ , बेटी बचाओ .