Fri. Mar 29th, 2024
himalini-sahitya

क्या वज़ूद है मेरा सात फेरो संग फ़र्ज़ के बोझ तले दब जाना…! मनीषा गुप्ता

【 औरत 】



तमाम उम्र एक छत के नीचे
निकाल कर औरत ……
अपनों से एक सवाल करती है …!
क्या वज़ूद है मेरा
सात फेरो संग फ़र्ज़
के बोझ तले दब जाना…!
माँ बन कर
ममता में पिघल जाना …..!
या मायके की दहलीज़ से निकल
ससुराल की ड्योढ़ी पर सर को झुकना ….!
क्या सोचा किसी ने कभी
दर्द मुझ को भी छूता है ……!
मेरे दिल को भी
प्यार भरे शब्दो का एहसास होता है …!
न मायके की छत ने दिया नाम
मुझे अपना……..!
न ससुराल ने कभी मुझे
मेरे वज़ूद में सवारा ……!
क्यों दुखती है कोई रग
बड़ी शोर मचा कर …….!
क्यों आज फिर एक मन
मायूस हुआ हारा ……!



About Author

यह भी पढें   नवनीत कौर की तीन कविताएं, 1 होली 2 चिड़िया रानी 3 हमारी धरती
आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: