प्रेम का प्रतिक रक्षाबन्धन : विनोदकुमार विश्वकर्मा `विमल`
अर्थात जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा था ,उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधती हूं .हे रक्षे ! तुम अडिग रहना .
हिन्दू परम्परा में महत्वपूर्ण त्योहार रक्षाबन्धन है .यह पर्व प्रत्येक वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है .यह पर्व भाई और बहन के बीच प्रेम का प्रतिक है . इसी दिन बहने अपने भाइयों को रक्षा सूत्र में बांधकर अपने प्रेम को प्रदर्शित करती है .साथ ही भाई सलामति की कामना ईश्वर से करती है .बदले में भाई बहन के मान -सम्मान की रक्षा का संकल्प जताता है .बहनें रक्षा सूत्र केवल सहोदर भाई को ही नहीं ,बल्कि मुंहबोले भाई को भी बाँधती है . भाई भी रक्षा सूत्र के कर्तव्यों का निर्वहन करने में कहीं से पीछा नहीं रहता .रक्षाबन्धन के त्योहार को उत्साह के साथ सावन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है .भाई कहीं भी रहते हैं, तो अपनी बहन के घर पहुँच रक्षाबन्धन बाँधबाते हैं .यदि कभी बहन के यहाँ भाई पहुंचने में असमर्थ होते हैं ,तो बहने रक्षा सूत्र भाई के यहाँ पहुँचवा देती है .इस तरह क त्योहार नेपाल व भारत के अलावा अन्य जगहों पर नहीं पाया जाता है .यह ऐसी हिन्दू परम्परा है,जो अनादिकाल तक चलती रहेगी . बहनें भाईयों को रक्षा सूत्र बाँध उसके दीर्घजीवी होने की कामना करती रहेगी .वहीं ,भाई भी बहनों को मान -सम्मान की रक्षा का संकल्प लेते और निभाते रहेंगे .
रक्षाबन्धन की महत्ता पर सूरदास जी लिखते हैं -राखी बाँधत जसोदा मैया /
अन्त में रक्षाबन्धन के इस पावन पर आप सभी भाई बहनों को ढेर सारी शुभकामनाएं …