ओली प्रवृत्ति का उद्देश्य सिर्फ सत्ता और शक्ति का उपयोग करना है : सिके लाल
सिके लाल, काठमांडू | राजनीति देश और समाज के रुपान्तरण के उद्देश्य के लिए किया जाता है । यहाँ मैं किसी व्यक्ति खडग प्रसाद ओली की बात नहीं कर रहा हूँ । मैं प्रवृत्ति की बात करता हूँ । ओली प्रवृत्ति का कुछ अच्छा करने का उद्देश्य ही नहीं है उनका उद्देश्य सिर्फ सत्ता में पहुँचना और शक्ति का उपयोग करना है । दूसरी बात राजनीति में नैतिकता बडी चीज होती है । किन्तु ओली प्रवृत्ति में नैतिकता जैसी कोई चीज ही नहीं है । यह तो मानव का सर काट कर शुरु की गई राजनीति है यहाँ तो पहले ही नैतिकता और मुल्यमान्यता को तिलांजलि दिया जा चुका है । मनुष्य की हत्या से अधिक तो नैतिक पतन हो ही नहीं सकता है । अगर राजनीतिक रुप में सफल होते तो शायद यह अपराध नहीं होता पर यह अपराध ही तो है । सच तो यह है कि ओली व्यक्तिगत रुप में सजा प्राप्त अपराधी है । यही कारण है कि उनमें नैतिक मूल्य और मान्यता नहीं है । और ऐसा व्यक्ति अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकता है ।
अभी जो राजनीति वो कर रहे हैं ऐसी प्रवृत्ति वाले समाज में हमेशा होते हैं । वह है दूसरों के लिए घृणा करना । किसी को प्रेम सिखाना मुश्किल है परन्तु घृणा करना सिखाना आसान है । और यही कारण है कि इसे सिखाकर एक बडी जमात पैदा हो जाती है और उन्हें एक जगह में रखने के लिए उनको मधेश विरोधी, और भारत विरोधी नारा उपयोगी सिद्ध होता है । इसलिए व्यक्तिगत रुप में उन्हें दोष देने से यह कहना सही होगा कि ओली प्रबृत्ति राजनीतिक स्खलन का एक प्रमाण है । इसलिए ओली को गाली देने का कोई अर्थ नहीं है ।
समाज के पागल हो जाने के कई उदाहरण हैं । राक्षस जब पागल हुआ तो रावण की जय जय हुई । पाण्डव और कौरव की लडाई के पक्ष में सारा महाभारत था सिवा कृष्ण के । आत्मसम्मान की रक्षा के लिए हिटलर का उदय हुआ इस मान्यता के साथ जर्मनी का सभ्य समाज उसके पीछे चल पडा । मुसोलिनी के पीछे इटली की सारी जनता थी । इस तरह कभी कभी मास मैडनेस होता है । जो कुछ समय तक जनता को मुर्ख बना सकता है । नेपाल में यह स्थिति १६ बुन्दें सहमति के बाद से शुरु हुई । और इसके नेता के रुप में खडगप्रसाद ओली स्थापित हुए । यह उतना अस्वाभाविक नहीं है । इन सब उपक्रम में राष्ट्रवाद के आवरण में जनता को भ्रम में रखना है । काठमान्डौ के सत्ताधारी खास कर वामपन्थी और दूर दक्षिण पन्थी पर कोई दवाब देना है या अपना फायदा लेना है तो राष्ट्रवाद को हवा दे देना है । राष्ट्रवाद एटीएम मशीन की तरह हो गई है सत्ताधारी के लिए । भारत विरोधी भावना को जगाए रखकर यह सोच रखना कि भारत पर नियंत्रण रखा गया है और उसी के नाम पर भारत के साथ लेन देन का व्यवहार किया जाता है । फायदा मिल जाने पर चुप्पी साध ली जाती है ।
अब काला पानी का मुद्दा लीजिए । महेन्द्र को पंचायत टिकाना था तो आँख बन्द कर ली । महाकाली संधि के समय तत्कालीन एमाले माले से छूटकर नाराबाजी करते हुए भारतीय दूतावास पहुँच गए । और एमाले का मूल प्रवाहीकरण हुआ और सत्ता के साथ जुडा । उसके बाद कालापानी खो गया । दूसरे जनआन्दोलन के बाद एमाले प्रायः सभी सरकार में है पर आज तक भारत के साथ कालापानी और महाकाली का मुद्दा किसी ने नहीं उठाया । राज्यसत्ता पर भी दवाब नहीं दिया पर बाहर होते ही राष्ट्रवाद का मुद्दा शुरु हो गया । यह व्यवहार लेने देन के लिए ही है । बात सिर्फ इतनी सी है कि देते हो या राष्ट्रवाद का मुद्दा उछाल दूँ ? इसी सोच को जिन्दा रखकर राजनीति की जा रही है ।
नेपाल लाइव डाटकाम से साभार