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मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल में मंचीय कविता और बाजारीकरण पर विस्तृत चर्चा- फोटो सहित

मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल, मेरठ | कार्यक्रम का दूसरे दिन २५ नोभेम्बर को साहित्यिक चर्चा जिसका विषय था मंचीय कविता और बाजारीकरण हुई । नेपाल से पहुँची डा.श्वेता दीप्ति ने कहा कि भावनाएँ और अनुभूति हैं तो कविता है । कविता की सार्थकता तभी है जब प्रबुद्ध लोग और श्रोता उसे सराहे और जो स्थापित हैं उन्हें भी आगे बढने का अवसर दें । जयपुर के राजेन्द्र मोहन शर्मा ने कहा कि बाजार ने यह समझ लिया है कि वही बिकेगा जो मैं बेचुँगा । हिन्दी के सशक्तिकरण में साहित्य को नहीं हिन्दी को हिंग्लिश बनाने वाले सिनेमा के योगदान को सराहा जा रहा है । मुरादावाद से आए साहित्यकार डा.महीपचन्द्र दिवाकर ने कहा कि हिन्दी को विश्वपटल पर सकारात्मक दृष्टि से देखे जाने की आवश्यकता है । उन्होंने कहा कि जब गंगा अपनी धार बदल सकती है तो भाषा क्यों नहीं हमें उसके बदलते स्वरुप के साथ स्वीकार करना चाहिए । झारखंड से आए दिनकर शर्मा ने मुक्तिबोध की कहानी पक्षी और दीमक को काफी भावपूर्ण एकल अभिनय द्वारा प्रस्तुत किया । साथ ही आइएमएम टी के विद्यार्थियों ने अपनी सांगितिक प्रस्तुति दी ।

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कार्यक्रम के अंतिम दिन सभी साहित्यकारों को सम्मानित किया गया और कार्यक्रम की भावपूर्ण समाप्ति इस उम्मीद से की गई कि आगे भी ऐसे कार्यक्रमों को निरन्तरता मिलती रहेगी ।

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