नेपाली और मधेशी दोनो अलग अलग राष्ट्रियता के रूपमे स्थापित हो चुके हैं : विकास प्रसाद लोध
विकास प्रसाद लोध, लुम्बिनी | विगत कुछ दशक से आन्दोलित मधेश एवम नेपाल मे हाल ही मे सम्पन्न प्रतिनिधि सभा और प्रदेश सभा निर्वाचन मे कम्युनिष्ट पार्टीयों को लोकसभा और विधान सभा मे मिले वहुमत से यह लगता है कि नेपाल का संविधान अब लागु हो गया है ।
आन्दोलन की सुरूवात और अन्त:
विशाल जनआन्दोलन से नेपाल मे राजशाही खात्मा करने के पश्चात नेपाल का संविधान लेखन कार्य जन प्रतिनिधियों द्वारा सुरू किया गया था । जिसके लिए दो वार संविधान सभा का चुनाव क्र्बये गये। पहली संविधान सभा से संविधान लेखन पुर्ण नही होने के कारण दोवारा संविधान सभा का चुनाव हुवा। लगभग दश वर्ष से अधीक समय लगाकर संविधान लिखा गया। संविधान सभा से संविधान पारित होते ही देश की अधी संख्या मे रहे मधेशी जनता आन्दोलीत हो उठा। जिसका कहना था कि यह संविधान हमारे खिलाफ वनाया गया है।
मधेश आन्दोलन का वृहत स्वरूप संविधान पारीत होने के तुरन्त वाद हुवा। हलाकि संविधान लेखन प्रकृया के दौरान भी आन्दोलन हुआ था। लेकिन संविधान पारित करने मे विपरीत सहमती देते हुवे आन्दोलित हुवे थे। संविधान को अस्विकार्य करते मधेशी नेता के नेतृत्व मे चले आन्दोलन मे नेपाल सरकार द्वारा भिषण दमन तथा मानवधीकार उलंघन किया गया । जहाँ पचासो मधेशी शहीद हुये। हजारौं लोग अंग भंग और वेघर विस्थापित हुवे। अरवों का व्यापारीक नुक्सान के साथ साथ पहाड़ी मधेशी के विचका पुराना विभेद चरम सिमा पार कर गया।
दुसरा मधेश आन्दोलन एक भयानक मंजर से कही अधीक क्रुर रहा। नेपाली पुलिस प्रशासन की ज्यादती दमन यातना क्रुरता की हर सिमा पार कर गई। इधर आन्दोलन कारी अपने अधिकार के लिए संघर्षरत रहे। वन्द हड़ताल जुलुस सभा होते, वात नाकावन्दी तक पहुंच गयी। छ महिनों की लम्वी नाकावन्दी से पुरे देश मे हाहाकार का वातावरण होने के वाद भी शासक तनिक भी नही हिला। “अन्ततः अधिकार के सम्पुर्ण मार्ग वन्द होते दिखा”
मधेश आन्दोलन एक समिक्षा:
मधेश वीर पुरूषों की भूमी रही है। और मधेशी निसन्देह सदा वीर ही रहे हैं। जिसका प्रमाण कालान्तर मे वहुत बार देखा जा चुका है। त्याग और वलिदान मे कभी पिछे नही हट्ने वाले विर मधेशी अपने बलवुते पर अपना एक सम्मान स्थापित कियें हैं। नेपाल जैसा क्रुर शासकों का रहा देश के अन्दर मधेश के विभिन्न सकारात्मक संस्कृतियाँ हमे विरासत के रूप मे देने मे मधेश के पुर्वजों का क्या योगदान रहा होगा हम अच्छे से अनुमान कर सक्ते है।
मित्रों मधेश विगत के दशकों से अधिकारर ही नही वहुत अमुल्य रत्नों को खो चुका है। सक्षम उपाय और सही नेतृत्व के अभाव मे हमे वहुत असहनिय क्षति को गले लगान पड़ा है। जिसका मुल्यांकन हम मधेशीयों ने कभी किया ही नहीं। हमने हमेसा त्याग किया, हर कुर्वानीयाँ झेले और अन्ततः विन कुछ प्राप्त किए वह सव त्याग वलिदानी भुला भी दिए।
दुनियाँ के ईतिहास मे इस से दिर्धकालीन आन्दोलन कभी हुआ ही नही और नाही कभी कहीं होगा। हमने वह कृतिमान कायम किया जिसके कारण पुरी कायनात कि दृष्टि मधेश पर टिके रह गए। और जव उस कर्म का फल नही मिला तो सभी को अपनी दृष्टि हटाने पर विवश होना पड़ा। और हम मधेश के लिए धिरे धिरे अन्तराष्ट्रिय समर्थन खो दे रहे है, जिसका कारण वार वार की उपलव्धी विहिन संघर्ष ही है।
कम्युनिष्ट सरकार और मधेश आन्दोलन-
मधेश आन्दोलन के मध्य कम्युनिष्ट पार्टी के प्रधानमन्त्री के पी शर्मा ओली के कार्यकाल मे मधेश आन्दोलन मे काफी दमन हुवा। मधेश आन्दोलन उत्कर्ष विन्दु पर पहचाने मे दमन, विभेद तथा मानवधीकार हनन और प्र म ओली के द्वारा हुवे तरह तरह के विभेदकारी नश्लिय टिप्पणियाँ जो मधेश आन्दोलन को आग देने तथा उच्च विभेद कायम करने का उत्प्रेरक रहा।
लेकिन वहीं टिप्पणियाँ आन्दोलित मधेश छोड़कर वाकी जगहों पर प्रशंसा का विषय भी रहा। तथा केपी ओली को एक राष्ट्रवादी प्र म का विल्ला एक तरफ मिला तो दुसरे तरफ मधेश का सवसे वड़ा दमनकारी प्र म के रूप मे परिचित हुवे।
के पी ओली द्वारा व्यक्त मधेश विरोधी वाक्यांश ही उनका सवसे वड़ा शक्ती वना जिसका प्रमाण यह निर्वाचन स्वयं है। प्रतिनिधि सभा के निर्वाचन मे प्राप्त अत्याधीक जनमत चिख चिख कर कम्युनिष्ट को नेपाल वादी पार्टके रूपमे परिचय करा रहा है।।
समग्र मे मधेश आन्दोलन को उग्र तथा हिंसक वनाने मे दमनात्मक भुमिका निर्वाह करते कम्युनिष्ट सरकार के प्र म केपी ओली द्वरा मधेश की सम्पुर्ण अधिकार को सिमित तथा समाप्त करने का वल प्रदान हुवा।।
मधेशीयों प्रती कम्युनिष्ट निति:
आपने आपको मधेश विपरीत मजवुती के साथ प्रस्तुत करने का कलात्मक गुण से ही ओली खुद को राष्ट्रवादी नेता तथा एमाले को राष्ट्रवादी पार्टी के रूप मे नेपाली जन्ता से परिचय करवाए। ओलीका मधेशी जन्ता को विहारी भारतीय कहना ही नेपाली जन्ता को पसन्द आया। अपने अधारभुत अधीकार के लिए संघर्ष करते मधेशीयों पर गोलीयां चलवाने वाले मे ही नेपाली जन्ता को राष्ट्रवादी नेता देखा। मधेश के हर आन्दोलन को भारत का आन्दोलन कहने वाला तथा भारतीय कहकर मधेशीयों पर दमन करने वाले मे ही नेपालीयो को आपना हीरो दिखा।
अर्थात जो मधेश के विरोध मे रहेगा नेपालीयों का समर्थन उन्हे ही मिलेगा। इस से प्रमाणीत होता है नेपाली और मधेशी दोनो अलग अलग राष्ट्रियता के रूपमे स्थापित हो चुके हैं। और इन दोनो राष्ट्रियता मे काफी विचलन कायम है और रहेगा। मधेशी और नेपाली भले एक सीमा मे रहे लेकिन अव मांसिक रूपसे दोनो अलग अलग धार पर स्थापित हो चुके है। धरातलीय विखण्ड़न हो न हो लेकिन मांसिक वटवारा कवका हो चुका है। और इस वटवारे को फिरसे मिलाने का तोड़ कहीं है या नही यह समय पर निर्भर करता है।