मधेश की भुमि खण्डित किसने किया, क्या आप जानते हैं ? ई. श्याम सुन्दर मंडल
ई. श्याम सुन्दर मंडल # ओली_वाणी एक भारतीय टी.वी. अन्तरवार्ता के दौरान घोर अन्ध-राष्ट्रवादी केपी शर्मा ओली नें कहा : “मैं पहाड़ से तराई में ५५ वर्ष पहले आया, मुझे मधेशी नहीं माना गया । लेकिन १०/१५ वर्ष पहले भारत से तराई आकर नेपाली नागरिकता प्राप्त किया और यह दावा करने लगा, मैं ही मधेश का असली भुमिपुत्र हुँ । मैं नेपाल अर्थात अपने ही पहाड़ से तराई आया फिरभी मैं भुमिपुत्र नहीं हो सका किन्तु कल भारत से तराई आया और असली मधेशी भुमिपुत्र बन गया । ईसलिए हम मधेश का ईस परिभाषा को नहीं मानते ।” ओलीजी के ईस प्रश्न पर कई सवाल खड़ा हो उठता है,
१. आसाम, सिक्किम, दार्जलिंग, बर्मा का एक नेपाली भाषी ओली, पोखरेल, भण्डारी, कोईराला, गुरूङ्ग असली नेपाली है कि हजारों वर्ष से मैथिली, भोजपुरी, अवधी बोलनेवाला थारू, सदा, यादव, मण्डल, साह, हरिजन नेपाली है ?
२. विहार/युपी और मधेश (जिसे नेपाली लोग तराई कहते हैं) में रहनेवालों का भाषा, संस्कृति, पर्व-त्यौहार, पहिरन, मनोविज्ञान समान किस कारण से है ? एक ही मुल्क के पहाडी़ और मधेशी बीच यह सब क्यूँ समान नहीं है ?
३. विहार/युपी और मधेश बीच जो सीमा रेखांकित किया गया है वह कब, कैसे, किसलिए और किस नें किया है ?
४. कोई जानता भी है उस रेखांकन से मधेशियों का केवल जमीन ही बिभाजित नहीं हुई है बल्कि परिवार, भाषा, संस्कृति, संबन्ध, और भावना भी बिभाजित हुआ है । हर मधेशियों के लिए हृदय विदारक वह ईतिहास पर किसी नेपालियों को आह तक भी कभी आई ?
५. काठमाण्डु या कहीं भी जब हम मधेशियों को कोई भी नेपाली लोग देखता है, हर एक नेपाली हमें धोती, मधेशी, बिहारी ही देखता है, क्यूँ ? क्यूँ नहीं कोई भी नेपाली देखते ही यह नेपाली मधेशी है और यह बिहारी/ यूपीवाले है, पहचान कर पाते हैं ? जहाँतक ईतिहास कहती है : सन् १८१६ और सन् १८६० में रेखांकित यह ईण्डो-नेपाल बोर्डर मधेशियों के सरपर बन्दूक रखकर जबरजस्ती किया गया है । अँग्रेजों नें अपना स्वार्थ पुरा करने और नेपालियों द्वारा अँग्रेजी अम्पायर का चाकड़ी वापत पाए गए ईनाम है । आज विहार/यूपी और नेपाली साम्राज्य के तराई में रह रहे लोग जिनका भाषा, संस्कृति, मनोविज्ञान समान है वे सारे एक ही मुल्क के बासी है । वह ऐतिहासिक मुल्क और कोई दुसरा नहीं बल्कि गौरवशाली “मध्यदेश अर्थात मधेश” है । मैथिली सभ्यता, भोजपुरी सभ्यता, अवधी सभ्यता, मगध साम्राज्य, राम-जानकी विवाह ईस सत्य का स्पष्ट और मजबुत प्रमाण है । यही कारण है कि नेपाली संस्कृति/ सभ्यता में पले लोग भले ही १०० वर्ष पहले क्यूँ न मधेश/तराई के भुमिपर आए हो, वह असली मधेशी भुमिपुत्र नहीं हो सकते हैं । जैसे हम मधेशी सैकड़ों वर्ष काठमाण्डु में बैठने के बाद भी नेपाली नहीं हो सकते । यह ही सत्य है और शास्वत भी । जय मधेश!