Thu. Mar 28th, 2024
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नेता गिरगिट की तरह रंग तो बदलते ही थे, अब तरबूजे की तरह एक को देख कर दूसरा उसी के रंग का हो गया है या होने वाला है । विश्वास नहीं है तो नेपाल के सबसे पुराने राजनीतिक दल नेपाली काँग्रेस का वर्तमान चुनाव में हुए हविगत को देखिए तो विश्वास हो जाएगा । जिस तरह भारत की काँग्रेस आई पार्टी दिनोंदिन राजनीति के गलियारी में नाकाम होती जा रही है । उसी के तर्ज पर नेपाली काँग्रेस भी अपने पुराने पेड़ के जड़ सहित धड़ाम से गिर पड़ी है । इसी को कहते हैं ‘तरबुजे को देख कर तरबुजे का रंग बदलना ।’ गोया यह दोनो जुड़वा भाई हो ।
जिस तरह नेपाली काँग्रेस की मिट्टी पलीद हुई है उसको देख कर ऐसा लगता है कि अगले पांच साल तक इसकी जड़ मिट्टी के अंदर ही रहेगी । क्योंकि जब जहाज का कैप्टन ही जहाज को डुबाने में और अपने नेताओं को हराने में तुला हुआ है तो दूसरा कोई क्या कर सकता है ? भ्रष्टाचार, बेईमानी और चापलुसी से जिस पेड़ की जड़ को सींचा जा रहा है वह राजनीति के मैदान में एक दिन धड़ाम से गिरेगी और अपने नेता और कायकर्ताओं को अपनी टहनी और जड़ में ही घेर कर रख देगी हमेशा के लिए । ‘अब पछताए होत क्या जब चिडि़या चुग गई खेत ।’
पार्टी अध्यक्ष को भगवान और अपने को उस का भक्त मानने वाले हनुमान जैसे कार्यकर्ता जिस पार्टी में रहेंगे उस का तो बटांधार होगा ही । लायक को किनारा लगा कर नालायक को पार्टी में जगह और निर्वाचन में टिकट दिया जाना ही पार्टी के सब से बड़ा विनाश का कारण बन जाता है । जिस नेता ने मंत्री पद में रहते हुए जितना ज्यादा घोटाला किया पार्टी हाईकमान उसी को टिकट दे कर सत्ता सम्हालने की चाबी देती है । जिस नेता ने अर्थ मन्त्री के रूप में भूकंप के समय में विदेशो से आए हुए आर्थिक सहयोग की कड़ाही में अपनी पांचो उंगलियाँ और सर को उसी में दे मारा हो उसे उस क्षेत्र की मतदाता वोट क्यों दें ? भूकंप पीडि़तो के लिए खरीदा गया जस्ता, पाता भी जिसने अजगर की तरह निगल लिया हो उसे मत दे कर या चुन कर क्या फायदा ?
पेड़ दूसरों को छांव देने फल और फूल देने और लकड़ी देने के लिए लगाए जाते हैं । पर नेपाली काँग्रेस रुपी यह पेड़ देना तो दूर की बात बस दोनो हाथों से बटोरती रही । इस विष वृक्ष ने इतना ज्यादा बटोर लिया कि बदनामी और बेईज्जती भी साथ में आ गयी । पर बटोरना नहीं छोड़ा और जब जनता के हाथ में अधिकार आया तो उसने बड़ी शांति से काँग्रेस को नकार दिया और बूढेÞ और बडेÞ पेड़ को जड़ से हिला कर रख दिया । समय रहते नहीं चेतने और अपने अवाम की बात न सुनने का यह नतीजा बांकी और राजनीतिक दल के लिए भी एक अच्छा और सच्चा उदाहरण हो सकता है । जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे । यही प्रकृति और राजनीति दोनों का नियम है ।
जब राजनीति के खेत में ईमान और निष्ठा का अकाल पड़ता है । जब योग्य लोगों को किनारा लगा कर अयोग्य और असक्षम को अवसर दिया जाता है । जब आर्यघाट में जाने वाले उम्र के नेता सत्ता के गलियारे में भटकते रहना चाहते हैं तब दीपक मनांगे जैसा डॉन निर्वाचन में जीत कर अपनी डफली बजाने लगते हैं । दीपक मनांगे की जीत यह साबित करती है कि राजनीति धनवाद और डॉनवाद हो चुका है और इस को राजनीति में प्रवेश कराने का श्रेय विभिन्न राजनीतिक दल के पार्टी अध्यक्ष को जाता है । जो पार्टी को घोडेÞ का तवेला मान कर चलते हैं ।
नेपाली काँग्रेस के सभापति को ज्योतिष ने भविष्यवाणी की थी कि वह सात बार इस देश का प्रधानमंत्री बनेंगे । चार बार तो वह बन ही चुके हैं वो, बांकी तीन बार परलोक सिधारने के बाद स्वर्ग में बनेंगे । यदि अच्छे कर्म किए होंगे तो स्वर्ग में नहीं तो नर्क प्रधान मंत्री बन कर ज्योतिष की भविष्यवाणी को सही ठहराएँगे और अपने मन को भी तसल्ली देंगे । चार बार पृथ्वी में मनुष्य योनि में और तीन बार मरने के बाद प्रेत योनि में । हिसाब बराबर हो गया । न ज्योतिष झूठा साबित हुआ न नेपाली काँग्रेस के सभापति को कोई मलाल ही रहेगा प्रधान मंत्री न बन पाने का ।
दो तिहाई बहुमत से वाम ठग बंधन सरकार बनाएगी तब तो उसकी पौ बारह होगी ही । पर इस ठग बंधन के पांच साल तक टिकने में संदेह है । क्योंकि कम्युनिष्ट या वाम कभी एक विचार पर स्थिर नहीं रहते और नहीं इनकी एकता किसी से ज्यादा दिन तक टिकती ही है । यदि सच में कम्युनिष्ट या माओवादी इतने ईमानदार और निष्ठावान रहते तो कमरेड प्रचंड और बाबुराम भट्टराई कभी अलग नहीं होते । यह मिले सूर मेरा तुम्हारा वाला जो राग नेकपा एमाले और एमाओवादी ने छेड़ा है वह बस सूर (सरकार) बने हमारा तक ही सीमित है । सरकार गठन के बाद जब मंत्री बनने और मंत्रालय के भागबंडा में यह जो नौटंकी करेंगे तब मलाई के लिए झगड़ने वाली बिल्ली भी इन्हे देख कर शर्मा जाएगी । अकेले निर्वाचन में खड़े हो कर चुनाव जितना तो लोहे के चने चबाने जैसा ही है । दो तिहाई बहुमत हासिल करना तो दूर की बात है ।
इस देश की राजनीति में ईमानदारी, निष्ठा और समर्पण का सर्वथा अभाव रहा है । जिस भी दल को देखिए या उसका घोषणा पत्र पढि़ए तो ऐसा लगेगा कि वह सिर्फ हवा में ही उड़ कर बहकी बहकी बातें कर रहा है । जमीन में खड़े होने का तो उसका कोई आधार ही नहीं है । घोषणा पत्र में वह ऐसी दूर की कौड़ी ढूंढ कर लाता है जिसका हकीकत से कोई वास्ता ही नहीं हैं । इसी लिए तो मोनो रेल से ले कर मेट्रो रेल तक का कागजी फार्मूला अपना जादू दिखाता है और वोट बटोरने में यह ठग बंधन सफल हो जाता है । अब तो पांच साल में चंद्रमा तक रॉकेट भेजना और गरीबी या गरीब को मिटाने का हवाई किला भी बना लिया इस ठग बंधन ने ।
आगे आगे देखते जाइए होता क्या है । इस बार के निर्वाचन में पेड़ धड़ाम से जड़ सहित गिरा है । ऐसा ही रवैया रहा तो सूरज की चमक दमक भी एक दिन घट ही जाएगी । और हंसिया, हथौडा में भी धीरे धीरे जंग लगेगा ही । क्योंकि वक्त ही सब से बड़ा सिकंदर है और बांकी सब बंदर । जिस तरह आज पड़ोसी देश की काँग्रेस की हालत खस्ता है उसी तरह इस देश की काँग्रेस भी अपने अस्तित्व के लिए पानी माँग रही है । इसी को कहते हैं भारतीय काँग्रेस रुपी तरबूजे को देख कर नेपाल में फलता फूलता आ रहा नेपाली काँग्रेस रुपी तरबूजा भी बेचारा रंग बदल रहा है ।



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