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वसन्त पञ्चमी को सरस्वती पूजा :- 

वसन्त पञ्चमी को सरस्वती पूजा :-
22 जनवरी 2018 सोमवार को ,
 मान्यता है कि माघ मास के शुक्ल प्रतिपदा के दिन से ही वसंत ऋतु प्रारम्भ हो जाता है, और इसी दिन से माघ गुप्त नवरात्रा प्रारम्भ हो जाता है  नवरात्र व वसंत के पांचवें दिन ही सृष्टि के समस्त विद्याओं के अधिष्ठातृ देवी माता सरस्वती का प्रकाट्य हुआ था , जिसके कारण नवरात्र के पांचवें दिन माता सरस्वती के विशेष पूजन का विधान है । और इसके लिए
वसन्त पञ्चमी का दिन माँ सरस्वती को समर्पित है और इस दिन माँ सरस्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। माता सरस्वती को ज्ञान, विज्ञान,  सँगीत, कला, एवं शिल्प-कला की देवी माना जाता है। इस दिन को श्री पञ्चमी और सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
भक्त गण समस्त विद्या और   ज्ञान प्राप्ति के लिए , तथा अपनी सुस्ती, आलस्य एवं अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिये, आज के दिन देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। आज के दिन शिशुओं को भी पहला अक्षर लिखना  भी सिखाया जाता है। दूसरे शब्दों में वसन्त पञ्चमी का दिन विद्या आरम्भ करने के लिये काफी शुभ माना जाता है इसीलिये माता-पिता आज के दिन शिशु को माता सरस्वती के आशीर्वाद के साथ विद्या आरम्भ कराते हैं। सभी विद्यालयों में आज के दिन सुबह के समय माता सरस्वती की पूजा की जाती है।   एवं
वसन्त पञ्चमी को वाणी जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। जिस दिन पञ्चमी तिथि सूर्योदय और दोपहर के बीच में व्याप्त रहती है उस दिन को सरस्वती पूजा के लिये उपयुक्त माना जाता है।
शास्त्रों के अनुसार वसन्त पञ्चमी का दिन सभी शुभ कार्यो के लिये उपयुक्त माना जाता है। इसी कारण से वसन्त पञ्चमी का दिन सिद्ध मुहूर्त के नाम से प्रसिद्ध है और नवीन कार्यों की शुरुआत के लिये उत्तम माना जाता है।
वसन्त पञ्चमी के दिन किसी भी समय सरस्वती पूजा की जा सकती है परन्तु पूर्वाह्न का समय पूजा के लिये श्रेष्ठ माना जाता है। सभी घरों, विद्यालयों और शिक्षा केन्द्रों में पूर्वाह्न के समय ही सरस्वती पूजा कर माता सरस्वती का आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है।
 पञ्चमी तिथि को पूर्वाह्न अपराह्न  दोनों ही समय पूजा के लिए  प्रसस्त होता हैं। इसीलिये वसन्त पञ्चमी के दिन सरस्वती पूजा पूरा दिन करना श्रेष्ठ है।
सरस्वती पूजन :-
 पूजन मंडप सजा कर माता जी के मूर्ति या फ़ोटो को किसी चौकी पर स्थापित कर साज सज्जा से अलंकृत कर, पूजन सामग्री व्यवस्थित कर  उपयुक्त समय माता जी के सामने आसन लगा कर बैठें एवं जलपात्र में गंगा पूजन कर आचमन , पवित्री , आसन शुद्धि, पृथ्वी पूजन , शिखा स्पर्श, गायत्री स्मरण, तिलक धारण , पवित्री धारण पूर्वक दीप प्रज्ज्वलन कर दिशा शुद्धि  करते हुवे मातृ पितृ गुरु वन्दना कर स्वस्तिवाचन करें, पुनः पूजन संकल्प कर , गणपति गौरी पूजन, कलश स्थापन, पँचदेवता पूजन नवग्रह पूजन कर वाद्य यंत्र पूजन वेद पूजन, शास्त्र पूजन लेखनी पूजन कर माता जी का ध्यान पूर्वक आवाहन कर प्राणप्रतिष्ठा कर षोडशोपचार पूजन करें, एवं सविध पूजन कर धूप दीप नैवेद्य से पूजित कर अग्नि स्थापन पूजन पूर्वक आवाहित देवताओं के निमित्त  क्रमशः हवन करते हुवे माता जी के निमित्त हवन कर नारियल से पूर्णाहुति देकर , आरती करें, व माता जी की वंदना
सरस्वती वन्दना
सरस्वती या कुन्देन्दु देवी सरस्वती को समर्पित बहुत प्रसिद्ध स्तुति है जो सरस्वती स्तोत्रम का एक अंश है। इस सरस्वती स्तुति का पाठ वसन्त पञ्चमी के पावन दिन पर सरस्वती पूजा के दौरान किया जाता है।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥२॥
माता सरस्वती , अंदर के सभी विकृतियों, काम , क्रोध, लोभ, मोह, मद, अज्ञानता , एवं प्रमाद को दूर कर समस्त सदविचार, सद्ज्ञान, संस्कार, विनम्रता, विवेक, एवं विद्वता से पूर्ण करें, आचार्य राधाकान्त शास्त्री ।

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