जाग मुसलमान जाग, हो जाओ तैयारः अब्दुल खानं

संसार में यदि कहीं पे गुलामी है, कहीं के लोग दास्ता के शिकार मे तड़प रहे है, कहीं कि जनता औपनिवेशिक्ता से जुझ रही हैं तो आजादी ही अन्तिम निकास है । स्वतन्त्रता ही समाधान है, वही उसका धर्म है । हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाइ सभी के धर्म की अन्तिम सार ही अन्याय अत्याचार से जुझ रहे लोगों कि कल्याण अर्थात आजादी दिलाना ही है । जिस किसी धर्म के प्रवर्तक का सन्देश ही अन्याय, अत्याचारी, दुराचारियों से मुक्ति दिलवाना ही रहा है । इसी को धर्म युद्ध, जेहाद और होली वार कहाँ जाता है । इस में समझौता नहीं होता है ।
ईस्लाम धर्म तो सदैव सत्य, न्याय और अहिषां के मार्ग को अबलम्बन किया है । दुनयां में जब जुलम और सितम छाया, जब अदल ईन्साफ के गले पे छुरिया चली, महिला और गरिवों के आजादी को दफनाया गया तब अरब जगत से विद्रोह हुवा, इन्सानियत के पैगाम को मिशन बनाकर जिहाद का एलान हुवा । ईस्लाम धर्म के प्रवर्तक मोहम्द शाहब जब जुलम, जबर के खिलाफ आवाज दिया, तब उन्हें शासको ने अनेक यातनाए देना सुरु किया । उनके समर्थकों को सिने पे गरम धूप में लेटाकर गरम पत्थरो को रख दिया करते थे । गले में रसिया डाल कर बच्चो को खेल ने के लिए दे दिया करते थे, नोकरी जागिर से निकाल दिया करते थे, समाज से निकाल दिया जाता था, यहाँ तक कि मोहम्मद शाहब को भी मक्का छोड कर मदिना जाने पर मजबुर किया गया था । उनके उपर सामाजिक जुल्म से लेकर भौतिक हमले भी किया गया । हिम्मतवाले लोग हजारों से ३१३ भी टकराते थे । सिर्फ नमाज पड़ना काफी नहीं, सम्झा जब आजादी, स्वतन्त्रता पे आनेवाले हमले को देखकर ईमाम हुसेन ने अपने बुडे–बच्चे सभी को दावं पे लगाकर सत्य और न्याय के लिए लडकर शहीद हो गए पर अत्याचारी शासन को स्वीकार नहीं किया ।
मुसलमानो जागो, अपने अतीत को याद करो, आज तुमहारे मादरे वतन के साथ वही यजिदी हमले हो रहे है । इसीलिए हुसेनी वनके उठो । उसी सत्य और अहिंसा को हथियार बनाकर इस कि हिफाजत करो, यही हमारी ईबादत है, यही हमे जन्नत कि राह पर लेजाने का जरिया बनेगा । अपने कौम के साथ ईनसाफ करो, बस एक वार जागो आजादी अब दुर नही है । ‘हिम्मते बन्दा मदते खुदा’ हिम्मत करलो खुदा गैब से हमारी मद्दत करेगा ।
आज डा. सि के राउत जो हमारी हिफाजत के लिए, हमारे वतन के लिए अपनी जानी–माली कुर्वानिया दे रहे हैं, यिन अल्लाह के बन्दे को एजिदी सरकार और हमारी कौम के मुनाफिकिन मिल कर सता रहे हैं, इस समय हमारा फर्ज क्या बन्ता है ? उनकी हिफाजत के लिए तैयार हो जावो अपने फर्ज को निभाते हुवे उनका साथ दो । उन को अपने ही वतन में कैद किया जाता है, हम देख ते रहते है । क्या हम अल्लाह और रसुल कि सुन्नत को अदा कर रहे है ? अब अपने जमिर को उठाना है । मुसलमा हो तैयार होना है, आजादी अब दुर नहीं ।

आप काः
अब्दुल खानं, बर्दिया