चंद्र ग्रहणः जाने ग्रहण का समय और क्या करना होगा शुभ

आज साल का पहला पूर्ण चंद्रग्रहण है, जो दुनिया के कई देशों में देखा जा सकेगा। आज चांद धरती के सबसे करीब होगा। ऐसी स्थिति करीब 150 साल में बनती है। जाहिर है कि यह आम दिनों में दिखने वाले चांद के मुकाबले काफी चमकीला और बड़ा भी होगा।
दावा है कि पूर्णिमा के चांद की तुलना में यह 30 फीसदी ज्यादा चमकीला और 12 फीसदी बड़ा होगा। भारत में चंद्र ग्रहण शाम 5.18 बजे से शुरू होगा जो की 3 घंटे से ज्यादा समय तक रहते हुए रात 8.42 बजे मोक्ष होगा।
भारतीय ज्योतिर्विज्ञान परिषद के अनुसार चंद्रमा पर पृथ्वी की आंशिक बाहरी छाया 4.22 बजे से पड़ना शुरू होगी आंशिक चंद्र ग्रहण 5.18 से शुरू होगा। जबकि पूर्ण चंद्र ग्रहण शाम 6.22 बजे से शुरू होगा जो 7.38 बजे तक चलेगा। मोक्ष 8.42 बजे होगा।
हिंदू धर्म के अनुसार इस दौरान कई कार्य वर्जित माने जाते हैं। ज्योतिषियों के अनुसार चंद्र ग्रहण के दौरान भगवान का ध्यान करना और मंत्र जाप करना ग्रहण के बुरे असर को कम करता है।
काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार बुधवार को माघ पूर्णिमा भी है। इस बार माघ पूर्णिमा भारत में ग्रस्तोदित खग्रास चंद्रग्रहण के रूप में दृश्य होगी। यह ग्रहण पुष्य नक्षत्र व कर्क राशि पर होगा।
ग्रहण शाम 5.18 बजे ग्रहण शुरू होगा और रात 8.42 बजे मोक्ष होगा। ग्रहणकाल 3 घंटे 24 मिनट का रहेगी। धार्मिक मान्यतानुसार ग्रहण का सूतक 12 घंटे पहले यानी बुधवार सुबह 5.18 बजे लग जाएगा। इसके चलते मंदिरों के कपाट बंद रहेंगे और ग्रहण खत्म होने के बाद ही मंदिर खुलेंगे जिसके बाद आरती होगी।
यह होगा पूरा समय
ग्रहण का स्पर्श- 5.18 बजे
खग्रास आरंभ- 6.22 बजे
खग्रास समाप्त- 7.37 बजे
ग्रहण का मोक्ष- 8.42 बजे
बड़े शहरों में यह होगा चंद्र उदय का समय
दिल्ली में चंद्र उदय 6.04 बजे होगा वहीं कोलकाता में 5.17 बजे होगा। इसके अलावा मुंबई और चेन्नई में क्रमशः 6.26 व 6.04 बजे चंद्र उदय होगा।
चंद्र ग्रहण में करें दान
ज्योतिषियों के अनुसार चंद्र ग्रहण के दौरान दान का महत्व होता है। ग्रहण काल के दौरान दान करना चाहिए व अपने ईष्ट के मंत्रों का जाप श्रेयस्कर रहता है।
दिखेगा सुपर ब्लड ब्लू मून
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे “सुपर मून” कहा जाता है। इसे हर कोई कोरी आंखों से देख सकेगा। इससे आंखों को कोई नुकसान नहीं होगा। ब्लड खगोलीय घटना पर नजर रखने वाली फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी (पीआरएल) अहमदाबाद के एसोसिएट प्रो. संतोष वडावले के मुताबिक, धरती के ज्यादा करीब होने से सूर्य की किरणों का रिफ्लेक्शन ज्यादा होगा। धरती से टकराकर ये किरणें चंद्रमा से टकराएगी। इस कारण इसका रंग थोड़ा लाल होगा। इसके चलते इस ग्रहण को ब्लड सुपरब्लू मून नाम दिया गया है।
1866 में दिखा था ऐसा ग्रहण
प्रो. वडावले के मुताबिक, वर्ष1866 में भी चंद्रमा पृथ्वी के इतने ही करीब आया था। हालांकि तब उसे सिर्फ अमेरिका में देखा जा सका था। चंद्रग्रहण को मूलतः अशुभ घटनाक्रम माना जाता है, लेकिन इस अनूठी खगोलीय घटनाक्रम के जरिये लोगों के इस मिथक को तोड़ना है।
एक कतार में आते हैं धरती, सूर्य, चंद्रमा
धरती सूर्य के और चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार कक्षा में चक्कर लगाते हैं। एक समय ये तीनों एक कतार में आ जाते हैं और धरती की छाया चंद्रमा पर पड़ने लगती है। जब हम धरती से चंद्रमा को देखते हैं तो वह भाग काला दिखाई देता है। इसलिए इसे चंद्रग्रहण कहते हैं।