संघीयता पर साबाल :-
रामेश्वर खनाल
अच्छा अवसर मिलने पर श्रम, पूँजी व प्रविधि अपना राज्य है कहते हुए सीमित नहीं होता है इसलिए संघीय राज्य की अवधारणा से राजनीतिक संतुष्टि तो दे सकती है लेकिन आर्थिक विकेन्द्रीकरण को बढाने की संभावना दिखाई नहीं देती संघीयता सम्बंधी बहस २०६३ साल बैशाख से ही शुरु हो गई थी भाषण करने वाले राष्ट्रीय स्तर के नेता से लेकर प्रमुख जिला अधिकारी तक संघीयता का महिमा बखान करते थकते नहीं संघीयता पर अनेक बहस हुए लेकिन बहस का केन्द्र संघीय राज्यका प्रदेश की संख्या व इसके भौगोलिकता के विभाजन पर ही बना हुआ है संघीयलप्रणाली अर्ंतर्गत केन्द्र, राज्य या प्रदेश वे स्थानीय स्तर के बीच कार्य विभाजन व वित्तीय व्यवस्था के बारेम संविधान सभा के भीतर बहस भी हुआ है लेकिन इस तरह के बहस के दौरान सम्भावित जोखिम व उसके न्यूनीकरण करने के ऊपाय के बारे में शायद ही कभी चर्चा की गई कुछ सभासद इसका खुलकर विरोध करते हैं उनमें चित्रबहादुर केसी व कमल थापा की पार्टर्ीीे सभासद शामिल है यद्यपि विरोध करने वाले सभासदों ने इसके बारे में स्पष्ट धारणा नहीं रखी है संघीयता के बारे में विरोध करने वालों में नेपाल के लिए ब्रिटिश राजदूत एन्ड्रू हाँल भी शामिल है
संघीयता के बारे में जितना अधिक र्समर्थन है, उतने ही लोगों के मन में संदेह भी है संघीयता के बाद सीमान्तकृत होने के डर से क्षेत्री समुदाय ने क्षेत्री समाज का निर्माण किया इसी का अनुसरण करते हुए ब्राहृमण समाज का भी गठन हुआ देश में संघीयता के र्समर्थन में चक्काजाम किया तो विरोधियों ने भी नेपाल बन्द करवाया
करीब दो वर्षपहले व्यवस्थापिका संसद में इसी विषय के सम्बंध में एक समिति के सदस्य मंगलसिद्धि मानन्धर से पूछने पर उन्होंने कहा कि प्राकृतिक स्रोत के विवरण व आर्थिक संभावना के आधार पर चर्चा करने जितना संघीयता चलना इतना आसान नहीं है मानन्धर का कहना है कि बडे नेता इस बारे में कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है इसी बहस के र्इद-गिर्द संघीयता के बारे में कुछ ऐसे प्रश्न है, जिसका उत्तर ढूँढना आवश्यक है
१. जातीय आधार में बनाई जाने वाली राज्य या प्रदेश कल जाकर फिर उसी आधार में विभाजित ना हो इसकी क्या गैरण्टी है – मधेश का उदाहरण लिया जाए तो क्या कल जाकर मधेश के भीतर रहे मिथिला, भोजपुरा, अवध, थारु आदि अपने लिए अलग राज्य की माँग नहीं करेंगे – ऐसी स्थिति पहाडÞो में भी आ सकती है लम्बे समय से राजनीतिक अस्थिरता से गुजरने के बाद देश की आर्थिक वृद्धि ओझल में पडÞी हर्ुइ है ओर गरीबी की चपेट से मुक्त हुए बिना भविष्य में अपनी पहचान के लिए राज्य का विभाजन कर हमेशा के लिए होने वाले विवाद का वीजारोपण तो नहीं कर रहे हैं यदि संविधान में भी राज्य का प्रदेशों की संख्या का निर्धारण कर दिया जाए तो कालान्तर में फिर से राज्य के विभाजन ना होने की कोई गांरण्टी तो नहीं – इतिहास गवाह है हर क्रान्ति की शुरुआत संविधान को जलाकर ही किया जाता है
२. नेपाल में बहुदलीय व्यवस्था लागू होने के बाद से लेकर संविधान सभा के चुनाव तक जितने दलों का विभाजन नहीं हुआ उतने दलों का विभाजन इस तीन साल के दौरान हो गया है आवेश में आकर या सत्ता के लिए विभाजित हर्ुइ राजनीतिक दलों द्वारा भविष्य में राज्य पुनर्विभाजन की माँग नहीं होगी, इसकी गारेन्टी कौन देगा –
३. स्वायत्त या प्रदेश का अधिकार अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है इसमें आत्मनिर्ण्र्ााका विषय भी शामिल है राज्यों की भौगोलिक सीमा रेखा निर्धारण करते समय प्राकृति बाध्यता के गौण कर दिया गया है प्रकृति ने हमारे देश में तर्राई पहाडÞ व हिमाल को साथ रहने की बाध्यता कर दी है प्राकृतिक कारण से साथ रहने की विवशता के बीच भाषा, जाति के आधार पर भौगोलिक क्षेत्रों का निर्धारण करने से प्राकृतिक स्रोत से लाभ लेते समय या प्राकृतिक आपदा आने पर आपसी असहयोग के कारण द्वंद्व की स्थिति आ सकती है
४. नेपाली अर्थतंत्र का करीब दो तिहाई हिस्सा ग्रामीणों में रहता है इसलिए समग्र आर्थिक गतिविधि चिन्ताजनक रूप में केन्द्रीकृत ना होने पर सरकार को राजस्व योगदान करने की आर्थिक गतिविधियों का कुछ निश्चित क्षेत्र में सीमित है काठमांडू व आसपास के दो जिलों को मिलाकर इस क्षेत्र से सरकार को देश की कुल आय का ४६ प्रतिशत रकम प्राप्त होता है इस देश में पर्सर्ाामोरंग व रूपन्देही तीन ही ऐसे जिले हैं, जहाँ खर्च से अधिक आमदानी होती है ऐसे में देखा जाए तो काठमांडू, भक्तपुर व ललितपुर यदि राज्य में आता है तो देश के बाँकी सभी राज्य आर्थिक दृष्टि से भी काठमांडू पर भी निर्भर होंगे इसको संतुलित करना संघीयता में एक बडी चुनौती होगी
५. संघीयता सहतिका राज्य अवधारणा आने से तत्कालिक राजनीतिक संतृष्टि तो मिल सकता है लेकिन आर्थिक विकेन्द्रीकरण के बढने की सम्भावना नहीं दिखती है कुछ स्थापित क्षेत्रों से जातीयता के नाम पर उद्यमी के आर्थिक दुश्चक्र व अपराध के घेरे में पडÞने खतरा बढÞने की सम्भावना बढ जाएगी
६. काठमांडू साधन स्रोत सम्पन्न है सीमा निर्धारण होने के बावजूद यहाँ पर देश के अन्य क्षेत्रों से लोगों के आने का सिलसिला तो जारी ही रहेगा इसके समाधान के लिए भी राजनीतिक नेतृत्व को ठोस समाधान ढूँढना पडेÞगा
७. आर्थिक विकेन्द्रीकरण के लिए कर्मचारी प्रशासन तंत्र कितना तैयार होगा, इस बात पर भविष्य निर्धारित होगा हमेशा ही सुविधा सम्पन्न स्थानों पर टिके रहने की चाह संघीयता आने के बाद कर्मचारी तंत्र इस को कितना आत्मसात कर पाएँगे –
८. राजनीतिक निश्चित ही विगत के समस्या के सर्ंदर्भ में ही किया जाएगी लेकिन विगत की समस्या करते समय भविष्य में और अधिक जटिल हो सकती है
९. हमारे दोनों पडÞोसी विश्व के मानचित्र पर उभरती हर्ुइ आर्थिक महाशक्ति है नेपाल की भूमि से अपने देश के विरोध में हो रही गतिविधि से दोनों ही देश चिंतित है ऊपर से नेपाल में स्वायत्त राज्य बनने से इन दोनों देशों के लिए एक नई समस्या पैदा हो सकती है
-लेखक पर्ूव अर्थसचिव हैं)
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