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मौन सरकार, लाचार तंत्र और बेजुवान जनता इस देश की नियति है : श्वेता दीप्ति

 प्रधानमंत्री की सोच सराहनीय परन्तु समयानुकूल नहीं

सम्पादकीय, हिमालिनी, अंक जुलाई २०१८ | मानसून की आहट के साथ ही बाढ़ का भय मधेश के दिलों मेंं व्याप्त हो जाता है । एक भय और चिन्ता के बीच जीने की उनकी बाध्यता होती है । एक ऐसी विपदा जो हर वर्ष आती है और अपने साथ सुख समृद्धि और जीवन बहा ले जाती है । दुर्भाग्य यह कि तयशुदा इस विपदा से लड़ने के लिए सरकार के पास न तो कोई नीति है और न ही समाधान की चाहत । अस्त व्यस्त मधेश अपनी लाचार अवस्था के साथ, बाढ़ के पानी में अपने आँसुओं को भी मिलाने के लिए बाध्य है । मौन सरकार, लाचार तंत्र और बेजुवान जनता इस देश की नियति है ।
इन सबके बीच देश, चीनी रेल में विकास की सम्भावनाओं को तलाश रहा है और जनता उसमें सफर करने के लिए लालायित है । ये दीगर है कि उनकी जेब देश की कमजोर अर्थव्यवस्था और पलायित होती युवाशक्ति के बीच कैसे इस मंहगे शौक को वहन कर पाएगी ? क्योंकि उस सफर से पहले उसके निर्वहन के लिए देश में गृह उद्योग या अन्य उद्योगों को तलाशने और आगे बढ़ाने की आवश्यकता है । वरना ऋृण का बोझ कई पीढि़यों के भविष्य को दाँव पर लगा सकता है । रेमिटैन्स और कर शुल्क से चलने वाले देश को पहले आन्तरिक अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने और समय रहते ध्यान देने की जरुरत है ।
देश को विकास की राह पर दौड़ाने की प्रधानमंत्री की सोच सराहनीय है, परन्तु समयानुकूल नहीं है । अव्यवस्थित राजधानी, निर्माण कार्य की कछुआ गति, अनुदान राशि का दुरूपयोग, उद्योग धन्दों की अनदेखी, बेरोजगारी, गरीबी और मंहगाई से जूझते देश को केरुंग से काठमान्डौ के सफर से अधिक इन समस्याओं का समाधान चाहिए । जिससे उनकी जीवन शैली सुधर सके और हमारी युवा पीढ़ी को बाहर की मिट्टी में अपने पसीने को खून की तरह न बहाना पड़े । किन्तु फिलहाल चीन से हुई सहमति और समझौतों को सोच कर हम खुश हो लें क्योंकि इनके कार्यान्वयन की कठिनाई इसे कितना सहज बना पाएगी, यह वक्त के गर्भ में है ।
डा.केसी एक बार फिर अनशन पर हैं । बिगड़ते स्वास्थ्य के बीच भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे देश को निकालने की उनकी जिद बरकरार है और इधर सरकार विरोध जताने की जगह और माध्यम को निषेधित कर रही है । दंभ और निरंकुशता की उम्र लम्बी नहीं होती । खैर, आनेवाले दिन में सरकार की सोच और कार्यदिशा अनुकूल और फलदायी हो आम जनता की सोच यही है और उम्मीद पर दुनिया टिकी है ।



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