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जय जवान ! जय किसान !! भविष्य के हैं ये भगवान !!!

अजयकुमार झा, हिमालिनी अंक अगस्त, 2018 । आधुनिक नेपाल का प्रदेश नम्बर दो जिसके उत्तरी भाग में वन तथा जड़ीबुटी का भंडार है तो बाकी का भाग अन्न का भण्डार है । यहाँ कोशी और बागमती जैसी हिमनदियाँ हंै तो वहीं कमला,रातो,लालबकैया जैसी मौसमी नदियोंं से भी यहाँ की धरती शोभायमान है । समतल भूभाग होने के कारण यातायात के लिए कहीं कोई समस्या प्राकृतिक रूप से नहीं है । परन्तु सरकारी उदासीनता और षडयंत्र के कारण हीरे को धूल चाटने पर मजबूर अवश्य कर दिया गया है ।
यहाँ तक कि राजधानी से ३ सौ किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित मधेस के महोत्तरी और रौतहट जिला मानव विकास सूचकांक में सबसे निचले बिन्दु पर विद्यमान होना इस क्षेत्र की दीनता और सरकारी उदासीनता को दर्शाती है ।
गरीबी, अशिक्षा और सरकारी कुदृष्टि के साथ साथ चेतना अभाव के कारण भी दो नंबर प्रदेश के सभी आठों जिला विकास के दौर में बहुत पीछे छूूट गया है । गरीबी घटने के बदले उल्टा द्रुत गति में वृद्धि होती दिख रही है । २०५८ साल के जनगणना अनुसार पर्सा जिला से सप्तरी जिला तक ८ जिला में गरीबी १९ प्रतिशत थी लेकिन १० वर्ष वाद यह अंक विकसित होकर २४ प्रतिशत पर पहुँच गया । इस क्षेत्र में सरकार द्वारा दी जानेवाली सीमित सुविधाएं और सेवा का फायदा भी राजनैतिक कार्यकर्ता लोग मात्र ले पाने के कारण गरीबी विकासोन्मुख है ।
नेपाल की कुल कृषि उत्पादन का ६०५ उत्पादन मधेस में होता था जो आज वैज्ञानिक युग में भी सरकार के द्वैध नीति के कारण किसान परम्परागत रूप में खेती कर गरीबीमुख होने को बाध्य हैं । वैसे भी नेपाल सरकार तराई वासियों के अस्तित्व को स्वीकार करना नहीं चाहती है और ये मौका भी अच्छा हाथ लगा है मधेस को बर्बाद करने का । याद रहे ! जिस समाज ने अपनी मौलिकता को लात मारा है वह शारीरिक रूप से भले ही जीवित रहे सांस्कृतिक अस्तित्व को नहीं बचा सकता ।
अतः जिसके पास उपजाऊ भूमि हो, सड़क संजाल हो, शिक्षित नागरिक हो, व्यापार के लिए बाजार उपलब्ध हो फिर भी युवाओं को कमाने के लिए विदेश पलायन करना पड़े तो हम कही न कही भारी भूल कर रहे हैं । कहा गया है ः
पानी बिच मीन पियासी, देखि देखि मोही आवत हाँसी
यह दोहा पुर्णतः सत्य है हमारे परिवेश में ।
नेपाल के अनेक विद्वानों ने दुनिया के अनेक देशों के विकास का माडल सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया है परन्तु आजतक एक भी माडल लाभदायक साबित नहीं हो सका । उल्टे हम दिन प्रतिदिन नीचे गिरते जा रहे हैं । अब हमें इसका कारण खोजना चाहिए, आखिर प्राकृतिक रूप में समृद्ध होकर भी हम गरीब क्यों होते जा रहे हैं ! कही हम सरस्वती नदी की तरह अपने मूल से तो नहीं कट गए हैं ।
इस प्रदेश नं. दो को संपन्न, सभ्य और सुसंस्कृत बनाने के लिए सर्वप्रथम हमें वैज्ञानिक तरीके से बृहद अनुसंधान और आम संवाद के पश्चात प्राथमिकता के आधार पर योजना निर्माण करना चाहिए । जिस के केंद्र में वैज्ञानिक कृषि और पूर्ण आधुनिक प्राविधिक शिक्षा को रखा जाना चाहिए । कानून पूर्णतः शक्तिशाली और स्वतंत्र निकाय के रूप में निर्माण और व्यवस्थित किया जाना चाहिए । भ्रष्ट, निकम्मी और हैकमवादियों को देशद्रोही के श्रेणी में रखकर शून्य सहनशीलता का व्यवहार अपनाया जाना चाहिए ।
एक ईमानदार मोदी के कारण आज नेपाल से पचास गुना बड़ा देश भारत विकास की बुलंदियों को छूने लगा है । अतः ईमानदारी किसी भी राष्ट्र के उत्थान का सबसे बड़ा हथियार होता है, यह प्रमाणित होने लगा है । दुर्भाग्य है कि नेपाल की मिट्टी ईमानदार और देशभक्त नागरिक पैदा करना भूल गई है । हुलाकी सड़क समग्र मधेस के लिए विकास का संवाहक है । अतः इसका निर्माण प्राथमिकता की सूची में रखना आवश्यक है । सभी छोटे बड़े उद्योगों,कल कारखानाओं और सरकारी स्कूल कालेजो का प्रवंधन निजी क्षेत्र को सौपते हुए समयानुकूल उत्पादन हेतु कड़ा निर्देशन और निरीक्षण में रखने की आवश्यकता है । सरकारी अधिनस्त सभी उद्योग एवं संस्थाएं भ्रष्टाचार एवं जनता की कमाई को लूटने का केंद्र बन गया है । अतः सरकार का काम उत्पादन नहीं बल्कि निरीक्षण,परीक्षण और निर्देशन करना है । दंड और प्रोत्साहन की व्यवस्था करना है । तथा श्रमिकों के भविष्य को सुनिश्चित और व्यवस्थित करना है ।
दूसरा सभी प्रकार के मादक पदार्थ जिससे मानव और समाज पर सीधा बुरा प्रभाव पड़ता है उसपर सौ प्रतिशत रोक लगाया जाय । क्योंकि जो तत्व रोग और बेहोशी का कारण है वह विकास का नहीं विनाश का ही कारण होगा, क्योंकि बेहोशी में विचार करने की सामथर््य नष्ट हो जाती है और आचार नीचे की ओर लुढ़कने लगता है । जिससे परिवार,समाज और राष्ट्र को पतनोन्मुख होना पड़ता है । शांत और स्वस्थ मन में ही सृजनशील विचार जन्म लेता है, जो धीरे धीरे संस्कारित होकर हमारे आचरण में समाहित हो जाता है, जिससे एक समृद्ध और सुसंस्कृत समाज का निर्माण होता है ।अतः धुम्रपान हो या मद्यपान निर्मूलन ही हो हमारा अभियान ।
तीसरा सबसे मौलिक और आधारभूत बिन्दु है हमारा सनातन प्राकृतिक जीवन शैली जिसकी नीव कर्मठता और दैविक सांस्कृतिक विरासत के दूरदर्शी सुक्ष्मतम भाव के आधार पर सृजना की गयी थी । सामूहिक भ्रातृत्व के संस्कार और सर्वजन हिताय व्यवहार के उच्चतम मानवीय संस्कार पर आधारित था । वह जीवन शैली जिसमे भौतिक समृद्धि के साथ साथ आध्यात्मिक उपलब्धि के हर एक पहलू हमारे सामने मौजूद रहते थे । वह है कृषि, जो सब के जीवन का आधार है । यह वह आधार है,जिसमें हम जीवन के हर आवश्यकता की शुद्धतम रूप में पूर्ति करने में स्वयं सक्षम होते हैं । एक पूर्ण स्वाधीन, स्वतंत्र और आदर्श जीवन जीने में सफल होते हैं । आज हम गदहों की तरह काम करने को बाध्य होते हुए भी विषाक्त खाद्य,पराधीनता और तनावग्रस्त जीवन जीने को मजबूर हैं । इधर सारी मेहनत और बैंक बैलेंस भावी जटिल रोगों से लड़ने में ही स्वाहा होती दिख रही है । तो उधर आधुनिकता के दौड़ में डूबने के कारण पारिवारिक सहिष्णुता,सामाजिक मर्यादा और संस्कृति तथा सभ्यता के साथ पैत्रिक धरोहर समेत नेस्तनावूद होता जा रहा है । अतः समग्र मानवता और संस्कृति के संरक्षण तथा संवर्धन के लिए भी मधेश की सोना उगलने वाली भूमि का वैज्ञानिक व्यवस्थापन होना नितान्त आवश्यक है । हमारा मौलिक उद्देश्य मधेसी जनता, संस्कृति, भूमि और सभ्यता के सम्पूर्ण संरक्षण,संवर्धन और आधुनिकीकरण कर जीवन सुफल बनाना ही होना चाहिए ।
कर्मठता, जीवन और विकास का आधार जरुर है, पर उसमे आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक का अत्यधिक उपयोग समयसापेक्ष होगा । अतः अब मधेसी शरीर बल से नहीं बुद्धिबल से आगे बढ़े ऐसी योजना तैयार करनी होगी । यहाँ के नागारिकों का हाथ अपनी जेब भरने के लिए ही नहीं बल्कि असहाय को सहयोग देने में पूर्णतः सक्षम हो ऐसी मानसिकता और उदार भावना से भरना होगा । नेता, जनता के कर से सुखभोग करने के लिए नहीं होता, बल्कि अपनी दूरदर्शिता, ईमानदारी और सक्रियता से जनता को सुखी और समृद्ध बनाने के लिए होता है, इस भाव से भावित होना होगा ।
इसबार के बजट में मधेस के विकास के लिए विनियोजित ३६ अरब रुपया को उचित ढंग से उपयोग में लाया जाय । इसमे नेताओं के बीच संघर्ष और जातीय तथा पार्टीगत द्वंद्व को जन्म देने से खुद का विनासक भस्मासुर ही कहलाएंगे । अब मुद्दा विकासवाद का होगा किसी भी उदासीन भावनाओं को विकासवाद के साथ तुलना नहीं किया जा सकता । जनता के भीतर आत्मनिर्भरता और उत्पादनशीलता का भाव कूट कूट कर भरना होगा,साथ ही आवश्यक भौतिक सामग्री,तालीम और औजारों का समुचित व्यवस्थापन करना होगा । मधेसियों के लिए कृषि और उद्योग व्यापार परस्परनिर्भरता ,पारिस्थितिक तंत्र के साथ ही व्यवहारिक विषय होने के कारण यह सर्वाधिक उपयोगी एवं सतत धारणीय दिखाई देता है ।
वैसे तो आज से कुछ वर्ष पहले कृषि के वाद दूसरा सबसे बड़ा उत्पादन का क्षेत्र उद्योग भी तराई मधेस में ही था । सन् १९६२ में नेपाल में निजी क्षेत्र द्वारा १ हजार ६ सौ ८६ लघु उद्योगों में से ७२ प्रतिशत मधेस में ही सञ्चालित थे । सन् ६० के दशक में नेपाल आए अमेरिकी नागरिक फ्रेडरिक एच गेज ने ‘रिजनालिजम एन्ड नेशनल युनिटी इन नेपाल’ नामक पुस्तक में ‘तराई नेपाल के कुल क्षेत्रफल के करीब १७ प्रतिशत जमीन में अवस्थित है और यहाँ कुल जनसंख्या के मात्र ३१ प्रतिशत लोग रहते हुए भी नेपाल को कुल राष्ट्रीय उत्पादन में ५९ प्रतिशत और राजस्व में ७६ प्रतिशत तक का योगदान देते हैं’ कह के अपने अनुसन्धान के निचोड में उल्लेख किए थे । अब यह तथ्य अपनेआप ही प्रमाणित करता है कि राष्ट्रीय अर्थतन्त्र में मधेस का कितना अदभुत योगदान रहा है । परन्तु जिस मधेस को अन्न का भण्डार और जीवन का आधार माना जाता था,नेपाली साहित्य के कथाओं और उपन्यासों में सहज और सुखद जीवन के प्रतीक के रूप में मधेस को संबोधित किया जाता था, आज उसी मधेस की जनता को अपना पेट भरने के लिए विदेश पलायन करना पड़ रहा है । यह नेपाल सरकार के अपने ही नागरिकों के प्रति द्वैध नीति का प्रमाण है । भारत के साथ योजना बद्ध रूप में विवाद सृजना कर हिमनदियों (कोशी,गण्डकी,महाकाली) आदि को मधेसी किसानों के विकास के लिए सिचाई के रूप में व्यवस्थित न कर उल्टे भारत को बाँध बांधने के लिए मजबूर करना ताकि मधेस जलमग्न हो जाय और मधेसी लोग यहाँ से पलायन करने को मजबूर हो जाय । प्रमाण है खुर्द लोटन बाँध और उससे प्रभावित नेपाल के मधेसी जनता । ये तो आतंरिक और बाह्य कूटनीति के चंगुल में फसने के कारण हमारी यह अवस्था है । कृषि उत्पादन की अपार सम्भावना होते हुए भी आसमानी पानी पर निर्भर होना,आधुनिक बीज और मल का अभाव, उत्पादन के लिए बाजार और उचित मूल्य की व्यवस्था न होना,कृषि को सम्मानजनक पेशा के रूप में न देखा जाना, युवा जनशक्तियों को व्यवसायिक खेती के लिए आकर्षक माहौल सृजना न कर पाना । कृषि और कृषक को गँवार और निचले दर्जे के नागरिक के रूप में देखना, कंस और राणाओं की तरह करो का बोझ कृषक के ऊपर लादना, और कार्यालयों में चपरासी से लेकर प्रमुख तक कृषक के साथ कुत्तों जैसा व्यवहार करना । इन्हीं अमानवीय और अराजक सोच के कारण अधोगति को प्राप्त मधेस को अब एक सामूहिक और दूरदर्शी सोच के तहत विकास के पथ पर गतिमान करना होगा । कृषक का सम्मान राष्ट्रपति से भी ऊपर रखना होगा ।आम नागरिक को देखते ही कार्यालय प्रमुख को सलाम ठोकना होगा । तब जाके लोकतंत्र शुद्ध रूप में परिभाषित हो पाएगा और मानवता उच्च गरिमा को उपलब्ध हो पाएगा ।
जापानी विकास के माडल हो या युरोपिन मोडल, उस का पुर्णतः प्रयोग करने के लिए जापानी और युरोपियन जैसी सोच भी होनी चाहिए । बैलगाड़ी के चालाक से जेट विमान नहीं चलवाया जा सकता । अभी हम विकास के नामपर नीचे की ओर ही गिरते जा रहे हैं । मदिरापान और खींचातान के साथ ही हमने सृजनात्मकता और कर्मठता को जो हमारा संस्कार था उसे भी हम सत्यानास कर चुके हैं । अतः विकास के लिए हमारा माडल आधुनिक वैज्ञानिक सोच से संम्पन्न होते हुए आधारभूत भी हो । और दीर्घायु भी हो । जो पहले बीस बीघा जमीन में भी संभव नहीं आज वो वैज्ञानिक तकनीकों के कारण दो बीघा जमीन में सहज ही संभव हो गया है । अतः पूर्ण आधुनिक कृषि कार्य पर सर्वाधिक ध्यान जाना चाहिए ।
जय जवान ! जय किसान !! भविष्य के हैं ये भगवान !!!

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