नेपाल भारत साहित्यिक महाेत्सव एक सी संस्कृति के भारत नेपाल : डा नारसन
डा श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
यूँ तो नेपाल को भारत का पडौसी देश ही कहेंगे लेकिन नेपाल और भारत के बीच आने जाने के लिए व्याप्त कानूनी सुगमता नेपाल को भारत के सबसे करीब लाती है।साथ ही दोनो देशो की संस्कृति एक सी होने के कारण भी भारत नेपाल एक दूसरे का हमसाया है।सच पूछिए तो लगता ही नही भारत से कब नेपाल मे चले जाते है और कब लौट आते है।यही स्थिति भारत मे नेपालियों के लिए भी है।इससे भी दो कदम आगे बढ़कर दोनो देशो के लोगो ने आपस मे रोटी बेटी का रिश्ता कायम कर रही सही दूरी को भी समाप्त प्राय कर दिया है।नेपाल के वीर गजं के व्यापारी शिव गोयल कई पीढ़ियों पहले हरियाणा के हिसार से नेपाल आ बसे थे,तो भी उनकी शादी नेपाल के बजाए भारत की बेटी से ही हुईं।उनकी पत्नी बिहार के खगडिया की है।उनके बच्चों की ननिहाल भारत मे होने से उनका नेपाल और भारत से बराबर का रिश्ता बन गया है।इसी प्रकार त्रिभुवन विश्व विद्यालय काठमांडू के केन्दीय हिन्दी विभाग की प्रोफेसर डा श्वेता दीप्ति भी भारत की बेटी और नेपाल की बहु है।वे भी बिहार मे जन्मी व पली बढ़ी है लेकिन ससुराल नेपाल मे होने से उनके दिल मे भी भारत और नेपाल दोनो बसते है।इसी प्रकार नेपाल की अनेक बेटिया भारत में बहु बनकर आई हुई है जिनके कारण भारत व नेपाल के बीच सामाजिक रिश्ते प्रगाढ़ हुए है।वही नेपाल की आर्थिकी भी भारत के विशाल बाजार पर निर्भर है।केरलिफोनिया का बादाम,चीन की काली मिर्च,छोटी इलायची,तेजपात,सोंफ,जीरा समेत सभी मशालो को दुनियाभर के देशो से नेपाल लाकर ही भारत मे सप्लाई किया जाता है।जिसका एक बड़ा कारण यहां वस्तुओ के आयात निर्यात पर टैक्स न के बराबर है।जबकि भारत मे यह टैक्स यहां से कई गुना है।टैक्स कम होने के बावजूद नेपाल को एक बड़ी आमदनी मशालो के कारोबार से होती है।इसी प्रकार नेपाल मे सोने की गुणवत्ता अधिक व कीमत भारत से कम होने के कारण सोने की खरीद फरोख्त भारतीय लोग बहुतायत मे करते है।उच्च शिक्षा,बेहतर स्वास्थ्य सेवाओ और नोकरियो के लिए भी नेपाल भारत पर अधिकांशत निर्भर है।जिसके लिए भारत को एक पड़ोसी देश होने के नाते नेपाल मे ही शिक्षा,स्वास्थ्य व नोकरी के अवसर उपलब्ध हो इसके लिए काम करने की आवश्यकता है।क्योकि नेपाल मे उच्च शिक्षण संस्थान बहुत कम है,अच्छे अस्पतालों की भी कमी है और नोकरियो के अवसर भी बहुत कम है।साथ ही यहाँ व्याप्त गरीबीऔर क्षेत्रीय स्तर के मतभेद नेपाल की प्रगति मे बाधक है।लम्बे समय तो राजशाही व्यवस्था मे रहा नेपाल हालांकि अब लोकतांत्रिक व्यवस्था मे है तो भी विकास के मामले मे यह देश अभी पिछड़ा हुआ कहा जा सकता है।नेपाल को देखकर लगता है कि जैसे वह कम से कम तीस साल पहले का भारत हो।जिसे मदद करके आगे लाने की नीति बनानी होगी।मीडिया की दृष्टि से भी नेपाल भारत से बहुत कमजोर है।हालांकि सामान्यत नेपाल एक शांत और बहुत छोटा देश है। नेपाल मे सात प्रांत और 77 जिले है ।कई प्रान्तों का तो अभी तक नामकरण भी नही हो पाया है।फिर भी कहा जा सकता है कि नेपाल भारत के प्रबल सहयोग से धीरे धीरे विकास की पटरी पर आगे तक जा सकता है जो एक सुखद संकेत हो सकता है भारत के सहयोग से नेपाल की तरक्की ऊंचाइयों को छू सकती है।जिसके लिए दोनो देशो के लोग मन ,वचन और कर्म से तैयार भी है।क्योकि नेपाल मे जाकर भारतीयो को और भारत मे आकर नेपालियों को लगता ही नही कि वे किसी दूसरे देश मे हो।दोनो देशो की अंतरराष्ट्रीय सीमाओ पर भी सुरक्षा प्रहरी नागरिको के साथ मित्रवत व्यवहार करते है।कोई तलाशी नही,कोई छानबीन नही और कोई किसी प्रकार की रोक टोक नही।लगता है जैसे नेपाल ,भारतीयो के लिए अपना दूसरा घर हो।इसी तरह नेपाली भी बेखटके भारत मे बिल्कुल घर की तरह ही भारत मे आते जाते है।हाल ही मे दोनो देशो के साहित्यकारों ने पहले मेरठ व फिर नेपाल के वीर गजं मे साहित्यिक महोत्सव करके मित्रता व प्रेम की नई धारा बही है।जिसे भारत व नेपाल दोनो देशो की सरकारो ने भी खुले दिल से समर्थन दिया है।मेरठ मे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा नेपाली साहित्यकारों का स्वागत करना और अब नेपाल मे मुख्यमंत्री प्रांत नम्बर 2 लालबाबू राउत द्वारा भारतीय साहित्यकारों का उनके बीच मे आकर स्वागत करने से आपसी सदभाव का सूत्रपात हुआ है।जिसके लिए हमे आगे भी निरन्तर प्रयास करना चाहिए।इस साहित्यिक आयोजन से हिन्दी का नेपाली मे और नेपाली का हिन्दी मे अनुवाद की सहमति दोनो देशो को और करीब लाएगी।ऐसा माना जा सकता है।
डा श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
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