हम अखंड : अजयकुमार झा
***हम अखंड***
एक हाथ ही भारत मेरा,दूसरा हाथ नेपाल है।
एक है छूता गहरा सागर,दूजा अटल हिमाल है।। 1
एक की जननी सीता माता,हिन्दू राष्ट्र नेपाल है।
सर्व धर्म समभाव जहाँ है, भारत वही विशाल है।। 2
एक भूमि है महादेव की,दूजा नन्द गोपाल है।
एक के संग है शैलकुमारी,दूजे संग सोलह हजार है।। 3
हिमालय सा निर्मल मन है,दिल है सागर सा गहरा।
व्रह्मपुत्र है हर नरनारी,चांदसा चमके है चेहरा।। 4
एक दृष्टि करुना के सागर,बुद्ध ज्ञान भण्डार है।
परम अहिंशक महावीर,वैशाली करे विहार है।। 5
अष्टावक्र की भूमि को देखो,कण कण प्रज्ञावान है।
स्वामी विवेका औं निंबार्का जगका करे कल्याण हैं।। 6
दौड़ रहा नस नस में सबके ऋषि मुनि का ज्ञान है।
उनके ही वंशज हैं हम,उनका ही सब संतान हैं।। 7
भेष-भूषा और भाषा एक है,हिंदी ही पहचान है।
शब्द कुशुम अर्पण कर,खुद हीं खुद पाते सम्मान हैं।। 8
भाईचारा हृदय में अंकित,नित्य करते गुणगान हैं।
सह न सकेगा कभी मधेसी,भारत का अपमान है।। 9
तन है उपवन मेरा भारत,मन माली नेपाल है।
देख हमारी गहन मित्रता,सारे जहाँ बेहाल है।। 10
धर्म संस्कृति से है बधें हम,जगत हेतु कल्याण हैं।
कभी राम परशुराम,कृष्ण भगवत्ता ही अरमान है।। 11
धैर्य हमारा अटल हिमालय,शांत सागर सा बुद्धि।
वेद पुराण दो आँखे मेरी, चहुँ ओर रिद्धि शिद्धि।। 12
फिरभी लड़ते और झगड़ते,करते खींचातान है।
पीकर हाला अतिवाद का,घर करते शमशान है।। 13
यह कविता सन 2002 के गणतंत्र दिवश के अवसर पर भारतीय राजदुतावास द्वारा काठमांडु के जैन भवन में आयोजित कार्यक्रम में प्रस्तुत किया गाया था।
रचनाकार:- अजयकुमार झा