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हमारे देव और देवस्थल : प्रकाश प्रसाद उपाध्याय

हिमालिनी, अंक अगस्त 2018 । वेद, पुराण, विभिन्न धर्मों से संबंधित कृत्य, अनुष्ठान, रीति–रिवाज, परंपरा और सामाजिक बंधन के सूत्र नेपाल और भारत को प्राचीनकाल से ही आवद्ध करते आ रहे हैं । फलस्वरूप दोनों देशों के धर्मावलंबी धार्मिक और आत्मिक सुख प्राप्त करने हेतु एक–दूसरे के पावन तीर्थों की यात्रा में जाते रहते हैं । यह आवागमन दो देशों के संबंध में सुदृढ़ता और मधुरता तो लाती ही है, दोनो देशों की जनता को एक दूसरे के करीब भी लाती है । इस प्रकार तीर्थाटन पर्यटन के एक महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक अंगके रूप में विकसित होता रहा ।
भारत की जनता जब भी नेपाल में तीर्थाटन की बात सोचते हैं तो उनके सामने सबसे पहले काठमांडू का नाम आता है, क्योंकि काठमांडू एक देवभूमि है, देवाधिदेव पशुपतिनाथ की नगरी है, यह शक्तिपीठ से विभूषित है,प्रथमपूज्य गणेश के चार प्रमुख धाम यहाँ अवस्थित है और प्रकृति का असीम वरदान इसे प्राप्त है ।
भगवान पशुपतिनाथ के संबंध में अनेक धार्मिक आख्यान, कथा, किंवदंंती, श्लोक और आख्यान पाये जाते हैं । धर्म, सभ्यता और संस्कृति की झाँकी प्रस्तुत करता पशुपति का क्षेत्र पौराणिक गाथाओं का भी अंग है । कहा जाता है कि पशुपतिनाथ मंदिर के पास बहती हुई बागमती नदी के पूर्वी तट पर विद्यमान वन्य क्षेत्र में भगवान शिव मृग के रूप में विचरण किया करते थे । वह स्थल आज भी मृगस्थली के नाम से प्रसिद्ध है । पशुपतिनाथ मंदिर का पावनक्षेत्र संतों, महात्माओं, बाबाओं और तांत्रिकों के विचरण, आराधना और चमत्कारिक कार्यो के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है । यहाँ के प्रमुख देवी–देवताओं की पूजा तांत्रिक विधि के अनुसार आज भी संपन्न किये जाते हैं । (यहाँ के तांत्रिकों के चमत्कारिक गाथाओं की चर्चा भविष्य में कभी की जा सकती है) ।यहाँ एक प्रसंग की चर्चा पाठकों के लिए रोचक हो सकती है । नेपाल के एक लेखक नेमसिंह नकर्मी के अनुसार लंका के राजा रावण ने भगवान शिव की तपस्या गोकर्ण में की थी । बागमती नदी के तट में स्थित यह स्थल काठमांडू के उत्तरी भाग में लगभग ५–६ कि.मी. दूर है । यहाँ गोकर्णेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर अवस्थित है । नकर्मी अपनी कृति ‘मेरो काठमांडौं हाम्रो काठमाडौं’ में आगे लिखते हैं–‘विभिषण ने भी शंखमूल में तपस्या कर ज्ञान प्राप्त की थी ।’ शंखमूल आज आवासीय क्षेत्र बन चुका है और संसद भवन के निकट में अवस्थित है ।
नेपाली जन में यह भी मान्यता है कि भगवान श्री राम ने अपने १४वर्षों के वनवास काल में देवी सीता और लक्ष्मण के साथ काठमांडू की यात्रा की थी और देवी सीता का पद जिस स्थान पर पड़ा था वह स्थल सीतापाइला के रूप में जाना जाता है ।
इन सबके अतिरिक्त, काठमांडू उपत्यका के अंदर विश्व संपदा सूची में समाविष्ट कई स्मारक है, जिनमें पशुपतिनाथ क्षेत्र, बौद्ध चैत्य, स्वयंभु चेैत्य, और हनुमान ढोका क्षेत्र काठमांडू के अंदर विद्यमान हैं तो ललितपुर में पाटन दरबार क्षेत्र और भक्तपर में चांगुनारायण और भक्तपर दरबार क्षेत्र विद्यमान हैं । काठमांडु उपत्यका के बाहर भगवान बुद्ध की जन्म स्थली लुंबिनी, चितवन राष्ट्रीय निकुञ्ज और माउण्ट एवरेष्ट विश्व संपदा सूचि में समाविष्ट हैं ।
ये सभी संपदाएँ नेपाल की मूर्तिकला, काष्ठकला और वास्तुकला के उत्कृष्ट रूप प्रस्तुत कर पर्यटकों का मन जीत लेती हैं । इन क्षेत्रों के अंदर विद्यमान विभिन्न देवी–देवताओं के मंदिर, कीर्तन स्थल, भक्तजनों की सुविधा के लिए निर्मित मंडप आदि वास्तुकला का अत्युत्तम छटा प्रस्तुत करते हैं । अतः इन्हें विश्व के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में पावन तीर्थस्थल की मान्यता प्राप्त है और ये विश्व संपदा सूची में समाविष्ट हैं ।
अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के लिए भी काठमांडू ही प्रथम प्राथमिकता होती है क्योंकि देश का एक मात्र अंतर्राष्ट्रीय विमान स्थल यहीं अवस्थित है । विदेशियों के लिए यहाँ का मौसम भी मनोहर होता है, जहाँ पहाड़ों से छनकर निकलती शीतल हवा उनके मन को आह्लादित करती है वहीं धूप से चमकते हिमशिखरें उनके मन को मोह लेते हैं । इसके अतिरिक्त विभिन्न वर्गों के पर्यटको के लिए यहाँ विभिन्न किस्म के होटल मिल जाते हैं । यातायात की सुविधा की भी कमी नहीं रहती । किसी भी वक्त टैक्सी से कहीं भी आया–जाया जा सकता है । आंतरिक विमान सेवा भी देश के किसी भाग में पर्यटकों को पहुँचाने और वापस लाने में तेयार रहती है । विमानों से पहाड़ों की सुंदरता को निकट से निहारने के लिए भी उड़ान सेवाएँ९mयगलतबष्ल ाष्निजतक०उपलब्ध हैं ।
भगवान गणेश की महिमा सर्वविदित है । हिंदू धर्मावलंबी ही नहीं बौद्ध संप्रदाय में भी गणेश अत्यंत पूजनीय हैं । नेवार संप्रदाय के लोग, जो मुख्यतः बौद्ध धर्म के अनुयायी होते हैं, गणेश की पूजा किए बिना कोई
कार्य आरंभ नहीं करते । हिंदूओं में भी शादी हो या कोई धार्मिक अनुष्ठान, सभी पावन कार्यों का प्रारंभ गणेश की पूजा और उनकी स्तुति के साथ होता है । क्योंकि कहा जाता है कि उनकी साधना के बिना किसी कार्य को पूर्णता नहीं मिलती । भगवानगणेश को विभिन्न नामों से भी महिमामण्डित किया गया है । वह विघ्नहर्ता हैं, दुःखहर्ता है,अतः वह विनायक के रूप में भी पूजे जाते हैं और काठमांडू उपत्यका में अवस्थित उनके चार धाम नेपाल और भारत के हिंदू धर्मावलंबियों के लिएश्रद्धा और आस्था के पावन स्थल हैं । काठमांडू के अंदर दरबार क्षेत्र के निकट अशोक विनायक(मरुगणेश), चाबहिलक्षेत्र में चन्द्रविनायक(चाभेलगणेश), भक्तपुर में सूर्यविनायक और दक्षिणकाली तीर्थ के मार्ग में चोभार निकट अवस्थित जलविनायक नेपाल और भारत के तीर्थयात्रियों के लिए समान रूप से पूजनीय है ं। नक्खू जेल के पास अवस्थित कार्यविनायक गणेश का मंदिर है । इसके संबंध में यह मान्यता है कि विभिन्न समस्याओं में उलझा कोई व्यक्ति यहाँ आकर यदि मन्नत माँगता है और उसकी समस्या हल हो जाती है तो वह यहाँ कार्यविनायक के प्रति आभार व्यक्त करने हेतु पुनः आता है ।
गणेशजी का प्रिय भोज्य–वस्तु लड्डू और दूब है, अतः भक्तजन उन्हें लड्डू और दूब की माला अर्पित कर उनसे आशिर्वाद प्राप्त करते हैं । इन सभी धामों के अलावा प्रथम पूज्य गणेश के कई मंदिर काठमांडू के विभिन्न कोणों में अवस्थित हैं जिन्हें विश्व संपदा सूची में समाविष्ट होने का सौभाग्य प्राप्त न होने के बावजूद इन्हें समान धार्मिक और सामाजिक मान्यता प्राप्त है । इनमे प्रमुखहैं– रानीपोखरी के पूर्वी तट के पास अवस्थित कमलादि गणेश और नक्साल के पास अवस्थित गोमा गणेश । इतना ही नहीं काठमांडू के हर मोहल्ले और बस्ती में गणेश मंदिर का होना इन मंगलमूर्ति के प्रति नेपाली जनमानस में विद्यमान श्रद्धा और आस्था के भाव ही प्रदर्शित करते हैं । क्रमशः

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