कर या मर ! बिम्मी शर्मा
हिमालिनी अंक अगस्त २०१८ |भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान करो या मरो का नारा दिया गया था । जिसके चलते बहुत से देशप्रेमी भारतीयों ने अपनी जान देश के लिए निछावर कर दिया । पर हमारा देश तो कभी किसी का गुलाम रहा ही नहीं तो जान निछावर करने का भी सवाल नहीं । इसीलिए हम देश के लिए कुछ कर नहीं सकते तो मर भी नहीं सकते । इसीलिए हमारे परम आदरणीय विद्यापति प्रधान मंत्री केपी शर्मा ओली कुछ न करने वाले देश की निठल्ली जनता के लिए सांस लेने से ले कर चिता में जलने तक टैक्स (कर) के भार से लाद दिया । नए नवेले कवि बने पीएम ओली ने नाक को घुमा कर छूते हुए देश की अवाम को यह संदेश दिया कि कर (टैक्स) दो नहीं तो मर जाओ ।
अब देश की जनता जो गरीबी की रेखा से भी नीचे गुजर बसर करती है, जिस को खाने के लाले हैं वह कर खाक देगी सरकार को ? नंगा नहाएगा क्या और निचोडेÞगा क्या ? जब निचोड़ने के लिए गरीब के पास कुछ बचा ही नहीं तो वह कर के विकल्प में मरना ही पसंद करेगा । दो तिहाइ के बहुमत से बनी हुई ‘सरकार हर उत्पाद और सेवा में दो तिहाई के हिसाब से ही कर लगा रही है । और कर (हाथ) होते हुए भी सरकार क िनीति के कारण विकलांग जैसी कर विहीन बनी हुई जनता अपने मत को कोस रही है जिसने नेताओं के भाषण और राशन के बहकावे में आ कर अपना अमूल्य मत गलत व्यक्ति और राजनीतिक दल को दे दिया था । वृद्ध भत्ता दो हजार से पांच हजार कर देंगे कह कर इन्हीं नेताओं और सत्तारुढ राजनीतिक दल ने दिन में ही सपने दिखाए थे ।
और देश के वृद्ध और प्रौढ जनता ने इन के चाशनीदार भ्रम में डूब कर वोट दे दिया । अब इन्हें होश आया है जब बजट भाषण में इन के भत्ते को तो नहीं बढ़ाया गया पर मंहगाई और कर जरूर दो तिहाई बढ़ गयी । अब इन्हें पता चला अपनी असली औकात जब चाशनी से इन्हें मरी हुई मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया गया । जो आश्वासन दिए गए थे वह नहीं पूरे किए और जो मंहगाई और कर के बारे में इन नेताओं ने उच्चारण भी नहीं किया था । उसको सब के मत्थे में टोपी की भांति पहना कर उसी कर को महिमा मंडित कर रहे हैं । अब कर को जबरदस्ती बढाए बिना नेताओं का गुजर बसर होना जो मुश्किल है । इसी लिए तो सरकार देश की जनता से कह रही है कर दो, या न दो तो मर जाओ । बिना कर दिए तुम्हारा जीना दुश्वार हो जाएगा । कर या मर ।
अभी देश के पीएम कवित्व के खुमार में हैं । नए नवेले कवि जो बने हैं इसीलिए मरने के बाद भी सपने देखते रहना चाहते हैं । हमारे देश के पीएम दुनिया के पहले व्यक्ति हैं जो मरने के बाद भी ख्वाब देखने और दिखाने का आश्वासन अपनी कविता के माध्यम से देते हैं । मरने के बाद तो सब खाक और राख हो जाता है फिर कैसे मरने के बाद कोेई सपने देखने की जुर्रत करेगा हमारे पीएम के अलावा । शायद मरते समय वह अपनी आंंख को किसी और को दान कर देंगे या मरने से पहले अपनी आंख निकाल कर लाकर में छुपा कर रख देंगे । तभी न वह मरने के बाद भी सपने देखने का दम रखते हैं । केपी ओली पीएम हैं चाहे जो कर सकते है ं। वह चाहे तो आसमान को जमीन पर ला सकते हैं ।
इसीलिए हर साल की तरह इस साल के घाटे के बजट में भी कर और उस के दायरे को बढ़ा कर बाढ़ के पानी की तरह सब के घर में घुसा दिया । अब इस‘ अनचाहे बाढ़ के पानी की तरह बढ़ी हुई कर के दर को बैठ कर सारी जिंदगी उलीचते रहें । बाढ़ का पानी तो एक दिन सूख जाएगा पर यह कर घटने वाला नहीं है । इसी लिए जो कर नहीं दे सकते या कर का विरोध करते हैं वह सरकार का प्यारा नहीं हो सकता । इसीलिए उसको जल्दी से अल्लाह का प्यारा हो जाना चाहिए यानी कि कर नहीं दे सकते तो मर तो सकते हो । कर का विकल्प मर ही है इसी लिए तो सरकार ने गधे की भांति जनता के सिर में कर का बोझा लाद कर मरने के लिए स्वीकृति दे दी है ।
और देशों में जिनको ठीक न होने वाली लाईलाज बीमारी हो जाती हैं वहां के कानून में इच्छा मृत्यु (मर्सी किलिगं) या ईस्थोनेसिया दे कर उन बीमारों का उद्धार किया जाता है जो भयंकर रोग से शरीर से जर्जर हो गए हैं । हमारे देश की सरकार भी अपने देश की जनता से बहुत ही ज्यादा प्यार करती है इसी लिए तो उसे सभी वस्तु, उत्पाद और सेवा में अत्यधिक मात्रा में कर बढा कर जनता को इच्छा मृत्यु का सर्वोतम उपहार दे रही है । अब जो कर नहीं दे सकता उसे जीने का भी कोई हक नहीं है, उस के हर सांस में सरकार अख्तियार है । वह दायां, बांया, उपर, नीचे जिधर भी देखे उस को देखने का भी कर देना है । यदि कर नहीं दे सकता कोई इंसान तो मर तो सकता ही है । जब पानी खरीद कर पी रहे हैं, आक्सिजन भी खरीद कर सांस ले रहे हैं तो कर देने या लेने में हर्ज ही क्या है ?
देश की जनता कर देगी या उस के बदले में अपनी जान देगी तभी न देश के सातो प्रदेश के निठल्लू नेताओं और उनकी अगली पीढी को पाला जा सकेगा । चाहे इस के लिए सर्व साधारण लोगों की चमडी ही उधेड़नी पड़े तो उधेड़नी चाहिए । गरीब जनता की खाल से ही तो धनी नेताओं के लिए जूते बनेंगे । आखिर में ये नए, नवेले सामंत है । जनता की खाल ही क्या ज्यादा बोलने और कर का विरोध करने पर जुबान भी खींच सकते हैं । इसी लिए सरकार महंगाई और कर दोनो एकसाथ बढ़ा कर घाव में लगाने के लिए नमक मिर्च का उपहार दे रही है । वह सरकार है चाहे जो कर सकती है । इसी लिए दो तिहाई के दंभ में इन के मंत्री और नेता आगा पीछा सोचे बिना चाहे जो बोल देते है । हमारे पीएम ने हमें सिर्फ महंगाई और कर का ही उपहार नहीं दिया है मरने के बाद भी सपने देखने का वीजन भी दिया है । इसी लिए मरने का मन नहीं है तो सरकार को उसके कहे मुताबिक सशुल्क कर दे कर मरने के बाद भी देश को समृद्ध करने के सपने देखने के वीजन को निःशुल्क घर ले जाइए और घर में सजाइए और सब को दिखाइए इस सरकार का इक्कीसवीं शताब्दी का मौलिक वीजन ।
