अाश्विन तीन की दस्तक ये भ्रम नहीं, जाे तुमने बाेया है उसकी फसल है : श्वेता दीप्ति

जाे दस्तक पडी है
दरवाजे पर तेरे
देखाे, सुनाे अाैर जागाे ।
काफी है ये तुम्हें सचेत
करने के लिए
झकझोरने के लिए….।
अावाज जितनी घुटती है
उतनी ही तल्ख हाेकर
फिर निकलती है ।
मद से भरा तेरा गुरुर
तुझे चाैखट पर लाएगा
जिसे मुर्दा समझ रहे हाे
देखाे उसका असर
अाैर साेचाे,
वरना
मिट्टी में बारुद की
गंध अाज भी दबी हुई है
जिससे तुम अमन लाना चाहते थे ।
दिग्भ्रमित थे तुम
उठाे अपनी अाँखें खाेलाे
वक्त अब भी है ।
स्वाभिमान, सम्मान
अाैर खुद की तलाश ये
अायातीत नहीं हाेते ।
निकलाे उस चाेले से
जाे सदियाें से पहन रखा है तुमने
वरना दस्तक पड चुकी है
ये भ्रम नहीं, जाे तुमने
बाेया है उसकी फसल है ।