Wed. Mar 19th, 2025

वो दिन दूर नहीं; जब फ़िर जनशैलाब उमड़ेगा और इसबार संघर्ष निर्णायक होगा : गंगेशकुमार मिश्र

दिन काला या नीयत काली;

” जो आग छुपी है, राख में; इक रोज़, धधकनी है;

धीरे-धीरे, धुआँ उठेगा; फ़िर आग, बरसनी है ।”

आनन-फानन में, जिस तरह से संविधान को लाया गया, उससे शासक वर्ग की नीयत स्पष्ट हो ही गई थी।
इससे पूर्व छः संविधान आकर गुज़र गए थे, पर इस बार सबसे उत्कृष्ट संविधान बनाया गया है; ऐसा प्रचारित किया गया।
आज वही, संविधान के अंध- प्रशंसक, इसमें त्रुटि देख रहे हैं, क्यों आख़िर क्या हुआ ? उत्कृष्ट संविधान, नक्कारा कैसे हो गया ? प्रश्न उठेगा ही।
आज, जिस क़दर संविधान के ख़िलाफ़ जन- सैलाब उमड़ा; उससे एक बात स्पष्ट है; आग अभी बुझी नहीं है। वीर शहीदों की क़ुर्बानी रंग लाएगी; उनके लहू का एक-एक क़तरा; अपने शहादत का हिसाब माँगेगा।
” अभी, जंग की, शुरुवात है;
कहाँ  जीत, हार की बात है ?
अरे ! शहादत, बेकार नहीं जाती;
बस ! वक़्त, आने की बात है।”
मधेश के लिए, काला दिन ही तो था जब जबरन; संख्या-बल के आधार पर पूर्वाग्रही संविधान थोप दिया गया था । आन्दोलन को दबाने के लिए, जिस अमानवीय तरीके से सर पर निशाना साधा गया, मधेश का अवाम कभी भूल नहीं सकता। क्या यही तरीका होता है, विरोध के दमन का; बिलकुल नहीं ।।
अपने ही देश के नागरिकों को विदेशी कह कर दुष्प्रचारित करना, क्या देश का अपमान नहीं था; मानवता के सारे प्रतिमानों को ध्वस्त कर; शहीदों का मज़ाक उड़ाना; सम्मान की बात है क्या ?
कितनी ही बहुएँ बिधवा हुईं, माँ ने अपने लाल खोए; मधेश में हाय ! हाय ! मची रही; पर सत्ता सुख के लिए सदैव लालायित रहने वाले कुछ मधेशी नेतागण; जयचन्द की भूमिका निभाते रहे। इस बात का भरपूर लाभ, सत्तासीन शासक वर्ग के लोगों ने उठाया और आज भी उठा रहे हैं। पर, वो दिन दूर नहीं; जब एक बार फ़िर जनशैलाब उमड़ेगा और इस बार संघर्ष निर्णायक होगा ।
” इतिहास, ख़ुद को दोहराता है;
वो दिन,  ज़रूर आता है;
जो फ़रेब के, दाँव लगाता है;
वो बलवान, पटकनी खाता है। “

About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com