महाधिवेशन कराने की मजबूरी
लीलानाथ गौतम
लीलानाथ गौतम
मोहन वैद्य पारटी अलग होने के बाद पहली बार आयोजित एमाओवादी की सातवीं विस्तारित बैठक सम्पन्न हर्ुइ। बैठक में एमाओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड और उपाध्यक्ष डा.

बाबुराम भट्टर्राई पक्षधर कार्यकताओं के बीच बैठक हाँल के भीतर ही आपस में कर्ुर्सर्ीी्रहार हुआ था। वहां जिस तरह की भिडन्त देखी गई, यह दो शर्ीष्ा नेता -प्रचण्ड-बाबुराम) के प्रति सिर्फआक्रोश ही नहीं, माओवादी नेतृत्व के प्रति कार्यकर्ताओं की तरफ से चरम असन्तुष्टि की अभिव्यक्ति भी है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि माओवादी नेता लोग अपने ही कार्यकर्ता से सुरक्षित नहीं हैं। माओवादी के शब्दों में ही कहें तो विगत में दुश्मन के विरुद्ध प्रयोग किया गया हथियार, अब कार्यकर्ता अपने ही नेता के विरुद्ध भी प्रयोग कर सकते हैं, बैठक में सहभागी पर्ूव लडाकु कमाण्डर के बयान और बैठक की समग्र परिस्थिति से यही निष्कर्षनिकलता है।
माओवादी नेतृत्व अभी आकर कार्यकर्ता के सामने ही सही, अपनी सेवा-सुविधा कटौती करने की बात कर रहा है। इसी तरह आर्थिक गतिविधियो को पारदर्शी बनाने के लिए लेखा समिति का गठन, शर्ीष्ा नेताओं की सम्पत्ति पार्टर्ीीण, पार्टर्ीीेतृत्व की असफलता, गुट-उपगुट आदि अन्त्य के लिए महाधिवेशन जैसी बातें भी माओवादी खेमे में उठी हैं। लेकिन इस तरह के उद्घोष से कार्यकर्ताओं में रहे नेतृत्व के प्रति आक्रोश कम होने की सम्भावना नहीं दिखाइ देती। घोषित प्रतिवद्धता का व्यवहारिक कार्यान्वयन की प्रतीक्षा में कार्यकर्ता हैं।
इसी तरह राष्ट्रियता के सवालों को लेकर एमाओवादी के उपाध्यक्ष एवं प्रधानमन्त्री डा. बाबुराम भट्टर्राई के ऊपर कार्यकर्ताओं ने जिस तरह से आक्रोश व्यक्त किया है, सत्ता की आडÞ में शक्तिशाली दिखाइ देनेवाले डा. बाबुराम भट्टर्राई की भावी राजनीतिक यात्रा भी इस के कारण अच्छी नहीं दिखाई पडÞती। उसी तरह इसी मुद्दे के कारण आगामी दिनों में एमाओवादी पार्टर्ीीकठ्ठा होकर आगे बढÞेगी, यह भी नहीं कहा जा सकता। उसी तरह कार्यकर्ताओं के आक्रोश के कारण ही एमाओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड ने उनके द्वारा प्रयोग हो रहे करोडÞों मूल्य बराबर की प्राडÞो गाडÞी वापस कर दी है और लाजिम्पाट के महल त्याग देने की घोषणा भी की है। सतही विश्लेषण किए जाने पर यह कह सकते है- जनता के लिए काम करनेवाली पार्टर्ीीे नेता ऐसा करेगा और यह बहुत ही सकारात्मक बात भी है। लेकिन यह वास्तविकता है ही नहीं, इस बात की पुष्टि होने के लिए बहुत दिन प्रतीक्षारत नहीं रहना पडेÞगा। कुछ दिन प्रतीक्षा करने से वास्तविकता सामने आ जाएगी।
आम जनता देख रहे हैं कि जनयुद्धकाल में र्सवसाधारण जनता के लिए बडेÞ-बडÞे आश्वासन देकर अपने पक्ष में माहौल खडÞा करने में सफल माओवादी नेता लोग, शान्ति प्रक्रिया होकर संविधानसभा में पहुँचने के बाद रातों-रात करोडÞÞपति बन गए है। पार्टर्ीीे शर्ीष्ा तह में रहे प्रायः बहुत नेता तथा उनके परिवारजनों के नाम में काठमांडू और आसपास के क्षेत्र में करोडÞों मूल्य बराबर की जमीन खरदीने की बात किसी से नहीं छिपी है। भूमिगत जीवन में कुछ आर्थिक हैसियत नहीं दिखाई पडÞनेवाले नेता लोग, कैसे इस तरह रातों रात करोडÞÞपति बन गए – जब तक एमाओवादी नेतृत्व इस रहस्य को र्सार्वजनिक नहीं करेगा और उस सम्पत्ति को राष्ट्रीयकरण तथा माओवादी की ही भाषा में सब के सामने पार्टर्ीीण नहीं होगा, तब तक एमाओवादी की सभी आर्थिक पारदर्शीता जनता के सामने दिखानेवाला तमासा ही सिद्ध होगी। इस तरह का तमासा तब बन्द हो सकता है, जब वे लोग अन्तर हृदय से ही देश और जनता के प्रति समर्पित होंगे।
इसी तरह पार्टर्ीीे अन्दर रहे आन्तरिक विवाद जब अपने बस से बाहर हो गया और बैठकस्थल भृकुटीमण्डप रणमैदान में रुपान्तरण होने लगा, वहीं से एमाओवादी ने आगामी फरवरी के लिए पार्टर्ीीहाधिवेशन की भी घोषणा कर दी है। पार्टर्ीी्रति कार्यकर्ताओं की असन्तुष्टि और भवनाओं को कन्ट्रोल करने के लिए ही यह महाधिवेशन घोषणा की गई है। पार्टर्ीीतिहास के २१ साल बाद पहिली बार घोषित यह महाधिवेशन निर्धारित समय में ही होगा, इसकी कोई ग्यारेन्टी नहीं है। क्योंकि यह आवश्यकता और प्रजातान्त्रिक अभ्यास के लिए नहीं हुआ है बल्कि बाध्यतावश घोषित किया गया है। इससे पहले से ही बारबार महाधिवेशन की तिथि तय करना और स्थगित करना, माओवादी की आदत बन चुकी है। इस दृष्टिकोण से देखे जाने से भी वह महाधिवेशन होनेवाला नहीं है। याद रहे, वि.सं. ०४८ में हुए एकता महाधिवेशन के बाद माओवादी ने अभी तक पार्टर्ीीहाधिवेशन नहीं किया है और तभी से पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचण्ड’ ही सुप्रिम कमाण्डर रहते आए हैं।