हम लोग ऋषियों के तपोभूमि में आए हैं : डा. ब्रह्मानन्द तिवारी अवदूत


सन्दर्भ : नेपाल भारत साहित्यिक सम्मेलन 2018
हिमालिनी अंक सितम्बर २०१८ नेपाल यात्रा बहुत ही सुखद और आरामदायी रही । यहां आकर मुझे ऐसा लगा कि हम लोग ऋषियों की तपोभूमि पर आए हैं । नेपाल के भाइ–बहनों से मिले । बहुत ही प्यार के वातावरण में हमारा समय बीता । भारत–नेपाल मैत्री आज की नहीं है, सदियों पुरानी है । भगवान श्रीराम का ससुराल जनकपुर में था, माता जानकी का जन्म यही हुआ था । राजा जनक के छोटे भाई जो उड़ीसा के राजा थे । भारतवासी के हृदय में यहां के पशुपति नाथ बसते हंै । इसतरह नेपाल भारत संबंध बहुत पुराना है, जो कोई भी नहीं मिटा सकता ।
यहां की साहित्यिक उर्बरा बहुत ही अच्छी है । कुछ नेपाली साहित्यकारों को मैं पहले ही पढ चुका हूं । कुछ किताबें इस महोत्सव के दौरान भेट की है । उन्होंने जो लिखा है, वह समाज के कल्याण के लिए अनुकरणीय, अनुशरणीय है । साहित्य समाज का दर्पण होता, जो नेपाली भाइ–भगिनियों ने लिखा है, उसमें ऐसा प्रतीत होता है कि भारत–नेपाल के हृदय एक ही है । शरीर अलग–अलग है, लेकिन दिल एक है, दिमाग एक है । अर्थात् हम लोग आत्मा से जुडेÞ हुए हैं । और नेपाल बासियों के लिए हमारा यह सन्देश है– यह वीरों की धरती है और जिस पर आज तक किसी दुश्मन ने आँख नहीं उठाई, इस धरती को अनेकों बार नमन करते हुए, यहां के वीरों को शतशत नमन करते हैं ।
मैं पहली बार नेपाल आया हूं । साहित्यिक महोत्सव ऐसा एक प्रेरक कदम है, जो भारत और नेपाल दोनों हृदय को जोड़नेवाला है । और यह मैत्री दिन–प्रति–दिन प्रगाढ होगी । प्रति वर्ष यह महोत्सव नेपाल में हो, प्रति वर्ष भारत में भी, जो डा. विजय पण्डित का संकल्प है । वह अपने अभियान में सफल रहे, मैं यही कामना करता हूं ।