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सांसद् रौनियार का निलम्बन कानून विपरित !

काठमांडू, २० दिसम्बर । सांसद् हरिनारायण रौनियार को सांसद् पद से निलम्बना करना कानून विपरित और विवादास्पद दिखाई दिया है । गत आश्वीन २१ गते संसद् सचिवालय ने एक सूचना निकाल कर कहा था कि सांसद् रौनियार का पद स्वतः निलम्बन हो गया है । लेकिन कुछ जानकारों का मानना है कि यह निर्णय सत्ताधारी राजनीतिक दल के कुछ नेताओं की दबाव में किया गया था ।
बर्दिया जिला स्थित जब्दिघाट पुल निर्माण संबंधी प्रकरण को लेकर अख्तियार दुरुपयोग अनुसंधान आयोग ने सांसद् रौनियार सहित १२ लोगों के विरुद्ध विशेष अदालत में मुद्दा पंजीकृत किया था, उसी मुद्दा के आधार में संसद् सचिवालय ने सूचना प्रकाशित कर रौनियार का सांसद् पद निलम्बन होने का सूचना जारी की थी । लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है कि आज तक सांसद् रौनियार को पद निलम्बन संबंधी कोई पत्र नहीं दिया गया है ।

 

 

कानुन के जानकार लोगों को मानना है कि सांसद् रौनियार का पद निलम्बन करना ही कानुनी तौर पर विवादास्पद दिखाई दिया है । सांसद् सचिवालय द्वारा जारी सूचना में कहा गया है कि अख्तियार दुरुपयोग अनुसंधान आयोग ऐन २०४८ की दफा १७ और भ्रष्टाचार निवारण ऐन २०५९ की दफा ३३ अनुसार उनका पद स्वतः निलम्बन हो गया है । लेकिन संसद् नियमावली की नियम २४४ में लिखा है कि अगर किसी सांसद् के विरुद्ध अदालत में फौजदारी मुद्दा पंजीकृत की जाती है तो उसका अन्तिम फैसला होकर सजाय की भागीदारी रहते वक्त वा कैद सजाय भुक्तानी करते वक्त में ही सांसद् पद स्वतः निलम्बन होता है, अन्यथा नहीं । अर्थात् संसद् नियमावली के अनुसार अख्तियार द्वारा मुद्दा पंजीकृत करने के कारण किसी भी सांसद् को निलम्बन होना नहीं पड़ता है । कानुन के जानकार लोगों का कहना है– ‘व्यवस्थापिका संसद् नियमावली के अनुसार ही संसद् संचालित होता है, इसीलिए सांसदों के ऊपर भी यही नियमावली आकर्षित होती है । ऐसी अवस्था में सांसद् रौनियार की पद निलम्बन नहीं होगा ।’
रौनियार के कानुनी सल्लाहकारों का कहना है– ‘हॉ, भ्रष्टाचार निवारण ऐन के अनुसार अगर किसी राष्ट्रसेवक के विरुद्ध मुद्दा पंजीकृत की जाती है तो उनका पद स्वतः निलम्बन होता है । लेकिन सांसद् सार्वजनिक पद है, सार्वजनिक पद धारक सांसदों को भ्रष्टाचार निवारण ऐन नहीं, संसद् नियमावली पहले आकर्षित होती है ।’ उनका कहना है कि अगर किसी सांसद् को किसी भी अपराध में दोषी प्रमाणित करते हुए जेल सजाय की फैसला होती है तो उस वक्त ही सांसद् पद स्वतः निलम्बन हो सकता है । संसद् नियमावली और भ्रष्टाचार निवारण ऐन में अलग–अलग प्रावधान होने के कारण अब बहस होने लगा है कि ऐन शक्तिशाली है या नियमावली ?



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