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हमें भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र बनाना होगा : चन्दा चौधरी

चन्दा चौधरी,संघीय सांसद तथा राष्ट्रीय जनता पार्टी

हिमालिनी, अंक फेब्रुअरी 2019 |नेपाल मे लोकतन्त्र आए हुए दशक गुजर चुके हैं । परन्तु देश में आम नागरिक किसी विकास का अनुभव क्यों नहीं कर पा रहे हैं ? आज के परिवेश में इस सवाल का जवाब सहज नहीं है नेपाल में । क्योंकि नेपाल में विद्यमान एकीकृत प्रणाली थी । जिसका अर्थ यह भी था कि संघीय संरचना मे नेपाल का कदम न बढाना । परंतु अब तो नेपाल मे संघीयता भी है और स्थानीय स्तर पर जननिर्वाचित सरकार भी । फिर भी जनता यह निश्चय नही कर पा रही है कि इस देश का विकास होगा । ऐसी सोच जनता के दिल में आना निश्चय ही खेदजनक है । वास्तविकता यह है कि विकास शब्द अपने आप में अमुर्त है । और अन्तहीन यात्रा भी । दरअसल देखा जाए तो अर्थपूर्ण विकास न होना और गरीब नागरिकों के जीवन में प्रगति न देखने का मुल कारण भ्रष्टाचार है । यह एक दीमक है जो राज्य के हरेक अंग को धीरे धीरे खोखला कर देता है और राज्य को मजबूत बनाने में कारक भूमिका खेलने वाले अधिकारी वा कहे तो जिम्मेदार व्यक्तियों को अपने औजार की तरह प्रयोग करता हैं ।

 

भ्रष्टाचार होता क्या है ?

ट्रान्सपेरेन्सी इन्टरनेसनल के अनुसार सार्वजनिक दायित्व से विचलित होना भ्रष्टाचार होता है । भ्रष्टाचार का कारक तत्व किसको कहा जाय इसका सटीक और सपाट जवाब पाना मुश्किल होता है । कहा जाता है कि भ्रष्टाचार आवश्यकता से ज्यादा लोभ, ओहदा, और प्रवृत्ति का कारण होता है । भ्रष्टाचार का कारण पता लगाना कठिन कार्य होता है क्यूँकि यह अपने आप मे सापेक्षित शब्दावली है । देश समाज, परिवेश और आर्थिक नैतिक धरातल के आधार पर इसको समझना उचित माना जाता है । नेपाल के सन्दर्भ मे भ्रष्टाचार होने का कुछ कारण इस प्रकार है । शक्ति, लोभ, प्रवृत्ति, मूल्यप्रणाली और अभिमुखिकरण भी भ्रष्टाचार का कारक है । अल्पविकसित देश जहाँ आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक आदर्श सदाचारयुक्त न हो वहाँ भ्रष्टाचार पूरे देश को अपने चंगुल मे जकड लेता है । भ्रष्टाचार अपने आप मे मूल्य मान्यता और नैतिकता विरुद्ध कार्य होने के कारण लोकतान्त्रिक संस्था अगर क्रियाशील न हो तो भ्रष्टाचार को एक उर्वर भूमि प्राप्त होता है । नेपाल का सार्वजनिक क्षेत्र भ्रष्टाचार से ग्रसित रहा है जिसका जिक्र सदियों से होता आ रहा है । प्रारम्भ में देश मे रहे राजनीतिक अस्थिरता भ्रष्टाचार बढ़ाने में उत्प्रेरक भूमिका निर्वाह किया था । अब समाज मे पारदर्शिता और जवाबदेही की माँग बढ़ रही है जो की काले बादल मे चांदी के घेरे जैसा है । परंतु नैतिकता का अभाव अभी भी देखा जा रहा है । छोटा और बड़ा, हरेक सार्वजनिक दफ्तर में अगर अनुसन्धान किया जाय तो भ्रष्टाचार ने अपना सिर उठाया है । इसी लिए भी शायद देश में गरीब और ज्यादा गरीब होता जा रहा है और अमीर अधिक अमीर । यह अवस्था कमोवेश विश्व के हरेक देश में देखा जा रहा है । जनवरी २२ से २५ तक स्वीटजरलेण्ड के डावोस में विश्व के धनाढ्य लोगों का ४९ वें अन्तराष्ट्रीय वार्षिक वल्र्ड इकन्मिकफोरम’ का सम्मेलन सम्पन्न हुआ है । सम्मेलन से कुछ ही दिन पहले एक अक्सफामनामक एक अन्तराष्ट्रीय संस्था ने प्रतिवेदन सार्वजनिक किया था जिस ने यह प्रमाणित किया है कि विश्व में अभी भी गरीब और अमीर का फासला बढ़ता जा रहा है । अक्सफाम के अनुसार विश्व के सर्वाधिक २६ अमीरों के पास विश्व की आधा गरीब की संख्या से ज्यादा सम्पत्ति है । उस प्रतिवेदन का निष्कर्ष यह है कि अमीर और ज्यादा अमीर और गरीब दिन प्रतिदिन गरीब होता जा रहा है । अक्सफम के प्रतिवेदन का ही विश्लेषण से यह कहता है की अमीर और गरीब के बीच बढ़ते अन्तर को अगर कम करना है तो उन २६ धनाढयों की सम्पत्ति में महज एक प्रतिशत ही कर लगा दिया जाय तो प्रतिवर्ष ४ खर्ब १८ अर्ब डलर संकलन किया जा सकता है यह दलील सहित यह भी कहा है कि उतनी रकम से स्कूल जाने से वंचित रहे बच्चाें के संख्या मे ३० लाख बच्चों को स्कूल भेजा जा सकता है और मृत्यु से बचाया जा सकता है । यह अवस्था नेपाल मे भी सान्दर्भिक है । गरीब अभी भी गरीब है । हर एक दशक में नेपाल में राजनीतिक परिवर्तन होता आ रहा है परंतु आम गरीबों के जीवन में राज्य तरफ से कोई भी परिवर्तन लगभग नहीं देखा गया है । आँकड़े मे कहा जाय तो पचास लाख युवावर्ग विदेश में अपना श्रम बेचने को मजबूर है । रेमिट्यान्स की बदौलत अपना जीवन व्यतीत करने क मजबूर हैं । वही प्रत्येक दिन चार–पाँच नेपाली की लाश ‘कफिन’ में रख कर नेपाल भेजा जाता है । और राज्य ‘कफिनरेमिट्यान्स’ को अर्थतन्त्र के सूचक के रुप मे लेता है जो की अति निन्दनीय है ।

नेपाल मे राणा शासन अन्त के बाद जब लोकतन्त्र का आन्दोलन हुआ, लोकतन्त्र आया तो उसी समय से कम्युनिष्ट आन्दोलन का भी आगज हुआ था । कम्युनिष्ट नेतागण ने देश को ‘बुर्जुवा और सर्वहारा’ वर्ग मे विभक्त किया था । वैसे दार्शनिक कालमाकर््स ने १८वीं सदी मे हीे ‘कम्युनिष्ट मेनुफेस्टो’ में कहा गया था कि जबतक ‘बुर्जुवा और सर्वहारा’ रहेंगे तब तक आर्थिक समानता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है । यह एक अकाट्य सत्य है । परंतु नेपाल मे कम्युनिष्टों की बदलती राह दुःखद है । कई बार देश में कम्युनिष्ट का सरकार बना है । वर्तमान सरकार भी कम्युनिष्ट का है वह भी दो तिहाई वाली । परंतु जिस तरह सरकार आगे बढ़ रही है यह सोचना कि देश से गरीबी को बडेÞ पैमाने मे विस्थापित किया जाएगा, सम्भव नहीं दिख रहा है ।
वास्तव में कहे तो देश मे बढ़ रही ‘चाकर पुँजीवाद’ (क्रोनिक क्याप्टालिज्म) और भ्रष्टाचार चाहे प्रकटित हो या अप्रकटित, प्रमुख कारक तत्व है जिसके कारण गरीब अभी भी गरीब है ।
ऐसे महामारी से छुटकारा पाने के लिए राष्ट्रीय संकल्प की आवश्यकता है । हरेक योजना निर्माता एवं आम नागरिकों का ईमानदार होने का विकल्प नही । आशा करें कि वह दिन जल्द देखने को मिले ।
(लेखकः संघीय सांसद तथा राष्ट्रीय जनता पार्टी की नेतृ हैं।)



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