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फोरम–राजपा एकीकरण सम्भावना :डा. अशोक महासेठ

हिमालिनी, अंक अप्रील 2019 |इन दिनों राष्ट्रीय जनता पार्टी नेपाल और संघीय समाजवादी फोरम पार्टी के बीच एकीकरण की बातों की पहल हो चुकी है । दोनों ही तरफ से आधिकारिक पत्र का आदान–प्रदान हो चुका है । साथ ही दोनों तरफ वार्ता कमिटी भी गठन हो चुकी है । यह घटना क्रम जो आगे की ओर बढ़ रही है, बहुत ही स्वागत–योग्य है ।



अब यह दोनों पार्टी मात्र क्षेत्रीय मधेशी पार्टी के रूप में नही रह गयी है । राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित हो चुकी है । जिसे संघीय चुनाव के बाद चुनाव आयोग घोषणा कर चुकी है । व्यवहार में भी पार्टी के नाम में मधेश शब्द नहीं रह गया है और दोनों पार्टी संगठन पहाड़ी क्षेत्र में भी हो चुका है तथा पहाड़ी समुदाय के भी व्यक्ति की सहभागिता हो चुकी है ।

बहुत सारी राष्ट्रीय समस्याएंं यथावत है । जिसमें मधेशी, जनजाति, थारु, मुश्लिम, महिला आदि का मुख्य रूप से पहचान तथा अधिकार की समस्याएं है । जिसको नश्लवादी समुदाय अभी तक नहीं होने दे रहा है । इसी समुदाय की उपस्थिति सरकार में है । जो बार बार यही कहता आ रहा है कि समय की आवश्यकता तथा औचित्य देख रहा है । इन मुद्दों पर विचार किए जाएँगे, यह मूलतः संवैधानिक समस्याएं अर्थात् संविधान संशोधन वा पुनरलेखन की आवश्यकता है ।

बहुत तरह तथा बहुत बार आन्दोलन हो चुका है । सैकड़ो लोग अपने प्राण की कुर्बानी दे चुके हैं, फिर भी इनको औचित्य समझ में नहीं आया । इसका मूल कारण यह है कि ‘घर फूटे गंवार लूटे’ इसकी जानकारी हम सभी को है । फिर भी यह होता आ रहा है । फूट डालो और राज करों का सिद्धान्त हमेशा चलता रहेगा ।

आन्दोलन के दौरान ही थारु, मधेशी और मुश्लिम तथा पहाड़ की जनजाति को अलग–अलग रखने में सत्ताधारी अर्थात् कांग्रेस, तत्कालीन एमाले और माओवादी पार्टी सफल रही है । अभी यह लोग भाषा के विवाद में इन सभी को बांटना चाह रहे हैं । जातिगत भेदभाव को आगे बढ़ा रहा है । मूल दो पार्टी फोरम और राजपा के विरोध वा विकल्प में सीके राउत को आगे बढ़ा रहा है । यहां पर धार्मिक भावना को भी आगे बढ़ाने की चाल निहित है । न जाने और कितने चाल हैं । कहाँ एक मधेश एक प्रदेश की बात थी, उस मधेश को ५ भागों में विभक्त करने में सफल रहा है । जबकि एक मधेश एक थरुहट प्रदेश यह आम सहमति हो चुकी थी । आन्दोलन में कही भी धर्मनिरपक्षेता की आवाज नहीं थी, परन्तु विदेशी डॉलर के प्रभाव में यह भी हुआ । जो अभी एक पेचीदा मुद्दा के रूप में है ।

नेतागण इन सभी बातों से बखूबी परिचित हैं । फिर भी संभल नहीं पा रहे हैं । इन सब के पास भी भी एक मूल मंत्र है– एकता । एकता वा एकीकरण आज की आवश्यकता है । आज की मात्र आवश्यकता नहीं है, जब से आन्दोलन शुरु हुआ तब से यह जनसाधारण की आवाज है । चोट बहुत लग चुकी है । समय बहुत बर्बाद हो चुका है फिर भी चेतना पूर्ण रूप से नहीं है ।

मातृभूमि की आवाज है । प्रयास भी हुआ इसी प्रयास के कारण ही तो आज राजपा का निर्माण हुआ, उस समय भी फोरम के साथ गहन विचार विमर्श हुआ, परन्तु वे अलग ही रह गए । अलग पार्टी रहते हुए भी चुनाव में समझदारी के साथ चुनाव लड़ने पर अच्छा परिणाम आया ।

चुनाव के बाद केन्द्र में दोनों पार्टी की राह बदल गयी । एक सरकार में शामिल हुआ तो एक मात्र बाहर रहकर समर्थन दिया । यहां पर भी समझदारी की आवश्यकता थी । आज परिणाम यह है कि सत्ता में रहने के बाद भी खसवादी सरकार नहीं सुन रही है । इतने आश्चर्य की बात है कि सत्ता में रहने पर भी प्रधानमन्त्री को ज्ञापनपत्र दिया जाता है । जैसे कि वह कुम्म्भकर्ण की निद्रा में सोया है । बाहर बाले को तो कोई गिनता ही नहीं । अंतत्वोगत्वा राजपा ने सरकार को दी हुई समर्थन वापस ली है । फिर भी दो तिहाई वाले सरकार को क्या फरक पड़ता ? कुछ नहीं ।

अतः इन सारी परिस्थितियों को समझते हुए तथा अभी तक के आन्दोलन का तीता–मीठा अनुभव को याद करते हुए पार्टी एकीकरण अत्यावश्यक हो चुका है । क्या पार्टी एकीकरण होने के बाद यह नश्लवादी सरकार सुनेगी ? नहीं ! बहुत गहन विचार–विमर्श करके आन्दोलन करना होगा, तभी जाकर इस देश में पहचान तथा अधिकार की प्राप्ति होगी । इतिहास साक्षी है, बिना संघर्षो से कहीं किसी को कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ । मधेश आन्दोलन की उपलब्धि तो संघीयता है, जिसे आज कमजोर कर के समाप्त करने की तरफ उन्मुख है । कांग्रेस तो संघीयता, धर्मनिरपेक्षता तथा गणतन्त्र के ऊपर जनमत संग्रह होने की आवाज उठा चुकी है । जबकि यह तीनों चीज हम लोगों के अधिकार के भीतर की चीज है । हमारे लिए उपलब्धि है ।

प्रश्न यह है कि पार्टी का एकीकरण कैसे हो ?
‘मुन्डे मुन्डे मतिर्भिन्ना’ अर्थात् जितने दिमाग उतने भिन्न विचार होते हैं । यह स्वाभाविक है । परन्तु यह व्यक्तिगत है । जब हम सामूहिक वा प्रजातान्त्रिक तरीका से बहस करते हंै तो एक सामूहिक निष्कर्ष निकलता है और वह योग्य होता है । यही तो प्रजातन्त्र का मूल मन्त्र है ।
राजपा की गठन वा एकीकरण तथा माओवादी और एमाले की एकीकरण से भी हमे पाठ सीखना चाहिए । जब हम लोग राष्ट्रीय मुद्दा को उद्देश्य बनाएं तो एकीकरण आसान हो जाता है वही पर नेता अपना व्यक्तिगत पहचान, व्यक्तिगत सत्ता के उद्देश्य से आगे बढ़ता है तो एकीकरण में समस्या आ जाती है ।

इंसान ५ जीत चाहता है, वह है– जीवन (२) स्वतन्त्रता (३) ज्ञान (४) आनन्द । (५) और सब पर शासन करना । इस पाँचवे गुण के कारण नेता लोग एक दूसरे के ऊपर शासन करना चाहते हंै और पार्टी का गुट–उपगुट बनाते हैं । जिससे जनता की समस्याएं ओझल में पड़ जाती हैं । व्यक्तिवादी, हैकमवादी प्रवृति आगे आ जाती है, अतः नेतागण को विवेक वा प्रयोग करना चाहिए, वह ऐसे कि यह जीवन नश्वर है, मृत्यु निश्चित है । तो क्यों नहीं अच्छा कर्म करें । मात्र व्यक्तिगत हित के लिए सीमित न रहे । हम ८४ लाख प्रकार के देहधारी में से उत्तम मानव देहधारी जीव हैं, जिसे पाने के लिए देवतागण भी तरसते है । अतः एक इतनी बडी उपाधि तो आप को भगवान ने दे चुका है तो अन्य छोटी उपाधि के लिए न मरें ।

यह जीवन आदि–ब्याधि तथा उपाधि के घनचक्र में पिसता आ रहा है । इससे ऊपर उठना और उन वीर शहीदों को याद करे, जिन्होंने अपना सर्वश्व गुमाया है, न्यौछावर किया है । उनके परिवार को याद करें, उनकी शहादत को याद करें । अतः सभी गिला–शिकवा को भुलाते हुए जनता–जनार्दन की आवश्यकता की प्राप्ति के लिए एकीकरण को पूरा करे, यही हम सभी की अपील है ।



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