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समृद्ध नेपाल के लिए सभी समुदाय की समान सहभागिता : बद्रीनारायण ठाकुर

हिमालिनी, अंक अप्रील 2019 |हम लोगों ने बहुत सारे राजनीतिक आन्दोलन किए हैं, आन्दोलन के जरिए कई उपलब्धियां भी हासिल हुई हैं । लेकिन आज भी कई नागरिक असन्तुष्ट हैं, असन्तुष्ट नागरिकों का मानना है कि उन लोगों को आज भी समान अधिकार प्राप्त नहीं है, राज्यसत्ता में सहज पहुँच नहीं है । ऐसी अवस्था में कब तक हम लोग राजनीतिक क्रान्ति के लिए ही लड़ते रहेंगे ? ऐसे सवाल आज भी बांकी हंै ।



कुछ का मानना है कि अब राजनीतिक आन्दोलन की आवश्यकता नहीं है, समृद्ध राष्ट्र निर्माण के लिए आगे आना जरूरी है । लेकिन यहां स्मरणीय बात यह भी है कि जब तक देश के सभी भू–भाग में रहनेवाले आम नागरिकों को समान राजनीतिक तथा प्रशासनिक अधिकार प्राप्त नहीं होगा, तब तक देश दीर्घकालीन रूप में शान्तिपूर्ण नहीं रह सकता । अर्थात् जब तक देश राजनीतिक दृष्टिकोण से शान्तिपूर्ण नहीं रहता, तब तक विकास और समृद्धि भी सम्भव नहीं है । इसीलिए आज तक हम लोगों ने जो भी राजनीतिक क्रान्ति किया और जो भी उपलब्धि हासिल की है, उसमें कुछ पुनरावलोकन होना जरूरी है । शान्तिपूर्ण और समृद्ध नेपाल निर्माण के लिए हिमाल और पहाड़ से लेकर तराई–मधेश तक की जनता को लगना चाहिए की हम लोग समान रूप में अधिकार प्राप्त कर रहे हैं । शान्तिपूर्ण और समृद्ध नेपाल निर्माण के लिए यह पहला आधार है । इसके लिए हम लोग क्या कर सकते है ? आज के लिए हमारे सामने यह मूल प्रश्न है ।

समस्या क्या है ?
विशेषतः तराई–मधेश मेंं रहनेवाले मधेशी, मुस्लिम, थारु आदि समुदाय और हिमाल–पहाड में रहनेवाले कई जनजाति समुदाय को लग रहा है कि राज्यसत्ता में उन लोगों की पहुँच नहीं है, राजनीतिक तथा प्रशासनिक अधिकार से वे लोग वंचित हैं । राज्य संरचना में आज जो लोग हैं, उन लोगों को देखने पर भी एक सच तो सामने आ ही जाता है कि राज्यसत्ता में सभी जातीय तथा भाषिक समुदायों की सहभागिता नहीं है, सिर्फ एक ही जाति तथा भाषिक समुदायों के नियन्त्रण में हमारी राज्यसत्ता है, जिसको हम लोग खस जाति तथा नेपाली भाषी के रूप में जानते हैं ।

हां, नेपाल सिर्फ खस जाति तथा नेपाली भाषियों का देश नहीं है, यहां ऐसे कई जातीय तथा भाषिक समुदाय हैं, जिनकी उपस्थिति राज्यसत्ता में शून्य के बराबर है । मधेश आन्दोलन हो या जनजाति आन्दोलन, इसके पीछे यही एक कारण है । इसीलिए राज्य संरचना में सभी समुदायों की समान सहभागिता के लिए हम लोगों को अब कुछ तो करना ही चाहिए, नहीं तो नेपाल में कभी भी स्थायी शान्ति आनेवाली नहीं है । इसके लिए क्या कर सकते हैं ?

भौगोलिक तथा समुदायगत संरचना
भूगोल के आधार में नेपाल छोटा–सा देश है, लेकिन भौगोलिक संरचना की दृष्टिकोण से नेपाल स्पष्टतः ३ भागों में विभाजित है– हिमाल, पहाड़ और तराई । इन तीनों भू–खंड में रहनेवाले लोगों की भाषिक तथा संस्कृतिक पहचान भी अलग–अलग ही है । राज्य संरचना में उल्लेखित तीनों भू–भाग रहनेवाले अलग–अलग पहचान के लोग अपनी उपस्थिति चाहते हैं, जो आज नहीं हो रहा है । पिछली बार हम लोगों ने समानुपातिक सहभागिता संबंधी अवधारणा को आगे लाया है, लेकिन वह अपर्याप्त दिखाई दे रहा है । लेकिन उसमें थोड़ा–सा परिवर्तन करते हैं तो आज जो लोग असन्तुष्ट दिखाई दे रहे हैं, उन लोगों को सन्तुष्ट बना सकते हैं और हम लोग शान्तिपूर्ण और समृद्ध नेपाल निर्माण अभियान में हाथ में हाथ मिलाकर आगे बढ़ सकते हैं । जिसके लिए हमारी शासन संयन्त्र संचालन की प्रक्रिया निम्न अनुसार होना जरूरी है–
समान सहभागिता के लिए

नेपाल में दो वंशानुगत समुदाय की नागरिक रहते हैं– मधेशी मूल के और पहाडी मूल के । इसीलिए कम से कम शासन संयन्त्र में इन दोनों समुदाय की समान सहभागिता आवश्यक है, उससे ही समस्या का समाधान हो सकता है । हमारे देश और राष्ट्रीयता को बचाना है तो इसका विकल्प नहीं है । इसके लिए नई राज्य संचालन प्रणाली का विकास करना होगा । वही प्रणाली नेपाल को बचा सकता है । इसके लिए नयां संविधान २०७२ में संशोधन कर सभी प्रकार के सार्वजनिक काम, सरकारी कार्यालय, अर्ध सरकारी तथा गैर सरकारी संस्था द्वारा होनेवाला महत्वपूर्ण निर्णय में दोनों समुदायों की समान सहभागिता अनिवार्य करनी चाहिए । इन संस्थाओं की ओर से जो भी महत्वपूर्ण निर्णय किया जाता है, उसमें दोनों समुदाय से संबंद्ध अधिकारियों का संयुक्त हस्ताक्षर अनिवार्य होना चाहिए । सभी पद, सभी स्थान और सभी निर्णय में संयुक्त हस्ताक्षर से राज्य सञ्चालन किया जाता है तो आज जो समुदायगत द्वन्द्व हम देख रहे हैं, वह बिल्कुल नहीं रहेगा । ऐसी व्यवस्था निजामती कर्मचारी, पुलिस, आर्मी, सशस्त्र पुलिस, विदेशी नियोग, न्यायलय, विद्यालय, सरकारी तथा गैर सरकारी संस्था, अन्य सामाजिक संरचना सभी क्षेत्रों में होनी चाहिए । ऐसी व्यवस्था अगर संविधान में ही कर देते हैं तो आज जो समुदायगत विभेद का अनुभव हो रहा है, वह नहीं रहेगा ।

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ऐसी व्यवस्था से सभी विभेद का अन्त हो सकता है । सभी नागरिकों को समान रूप में समाजिक हक मिल सकता है, सभी प्रकार का सामाजिक द्वन्द्व मिट सकता है । उसके बाद ही सामाजिक और सांस्कृतिक सद्भाव कायम रह सकता है । इससे हमारी राष्ट्रीय पहचान बढ़ेगी, दोनों समुदाय अपने मातृभूमि के प्रति समान रूप में समर्पित हो जाएंगे । और राष्ट्र विखण्डन की बात भी कभी नहीं उठेगी । हमारे आपसी विवाद के कारण ही आज जो विदेशी हस्तक्षेप बढ़ रहा है, वह भी खत्म हो जाएगा ।

राज्य संरचना के संबंध में
आज नेपाल को ७ प्रदेशों में विभाजन किया गया है । नेपाल की जो आर्थिक क्षमता है, यह उससे कई अधिक है । अधिक प्रदेश होने से हमारा राज्य संचालन खर्च भी अधिक होता है । आन्तरिक अर्थव्यवस्था कमजोर होने के कारण हमारे यहां अधिक प्रदेश का होना ठीक नहीं है । इसीलिए नेपाल की भौगोलिक संरचना और वंशानुगत जातीय संरचना अनुसार तत्काल के लिए सिर्फ दो प्रदेशों में ही काफी है । १. मिथिलाञ्चल प्रदेश (तराई–मधेश) । २. हिमाञ्जल प्रदेश (पहाड़–हिमाल) । दोनों प्रदेश को पूर्व–पश्चिम बनाकर सीमा निर्धारण कर सकते हैं ।

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जनप्रतिनिधमूलक संरचना
संविधान अनुसार हमारे यहां संघीय राज्य में (१) प्रतिनिधिसभा और (२) राष्ट्रीयसभा है, जिसको हम लोग दो सदनात्मक व्यवस्था कहते है । हम लोगों ने जिस तरह यह दो संरचना खड़े किए है, वह भी आर्थिक रूप में खर्चीला है । जिस स्वरूप में आज यह संरचना है, वह आवश्यक नहीं है । उसको खारिज कर सभी अधिकार दो प्रदेशों में ही विभाजित कर देना चाहिए । प्रतिनिधिसभा तथा राष्ट्रीय सभा के लिए जो रकम खर्च होता है, उसको हर गांवपालिका, नगरपालिका, उप–महानगरपालिका तथा महानगरपालिका जैसे स्थानीय संरचना को विकसित करने के लिए खर्च कर सकते हैं ।

इसीतरह देश को बचाना है और वैदेशिक हस्तक्षेप से मुक्त रहना होता है । इसके लिए सबसे पहले हम लोगों का आत्मनिर्भर होना जरूरी है । इसके लिए राज्य संरचना संचालन तथा प्रशासनिक कार्य संचालन में जो खर्च होता आ रहा है, उसको भी कम करना चाहिए । अधिक प्रदेश बनाकर हमारी सम्पूर्ण आमदनी उसको संचालन करने की खातिर खर्च करते हैं तो हमारा देश कभी भी विकसित नहीं बन सकता । इसके लिए देश को दो प्रदेश में विभाजन कर सम्पूर्ण अधिकार प्रदेश में हस्तान्तरण हो तो बेहतर होगा ।
आज तो हमारा अधिकांश रकम केन्द्र सरकार संचालन के खातिर खर्च हो रहा है । उसको कम करना ही होगा । उसके लिए हमारी राष्ट्रीय आय (बजट) में भी दो प्रदेशों का समान अधिकार रहना चाहिए । अर्थात् कुल बजट में ५०–५० प्रतिशत का अधिकार होना चाहिए । उसमें से दोनों प्रदेशों की ओर से तत्काल २–२ प्रतिशत रकम केन्द्र सरकार संचालन के खातिर अलग करना चाहिए । और नेपाल के लिए जो भी वैदेशिक सहयोग आता है, उसको भी समान रूप में ५०–५० प्रतिशत बंटवारा होना चाहिए ।

धार्मिक स्वतन्त्रता के संबंध में
आज नेपाल में धर्म के नाम में भी आन्दोलन हो रहा है । देश को धर्म निरपेक्ष घोषणा करने से ऐसी अवस्था आई है । नेपाल में ९४ प्रतिशत से अधिक लोग ‘ॐकार परिवार’ के भीतर हैं, जिसको हम लोग हिन्दू के रूप में जानते हैं । बांकी ४ प्रतिशत इस्लाम और १ प्रतिशत क्रिश्चियन हैं । आज जो भी व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तन कर क्रिश्चियानिटी अपना रहे हैं, उनके खून में भी हिन्दूत्व ही है । इस तरह अपने पूर्वजों के धर्म, संस्कार और संस्कृति को छोड़ कर अन्य धर्म के प्रति आस्थावान होनेवालों की संख्या में वृद्धि हो रही है, जो ठीक नहीं है । इसी मान्यता को आत्मसात् करते हुए और ४ प्रतिशत मुस्लिम धर्मावलम्बी को सम्मान करते हुए नेपाल को हिन्दू राष्ट्र ही कायम रखना ठीक है, जिससे हमारे पुर्वजों का सम्मान होता है और हमारी पहचान भी बढ़ जाती है ।

अन्य विषय
हमारे देश में आज भी दौरा–सुरुवाल और टोपी को राष्ट्रीय पोशाक माना जा रहा है, जो परम्परागत रूप से चला आ रहा है । उसमें परिवर्तन होना आवश्यक है । आज हम लोग जिसको राष्ट्रीय पोशाक के रूप में जानते हैं, वह हिमाल और तराई–मधेश में रहनेवाले जनता को पसन्द नहीं है । इसीलिए उसमें समयानुकूल परिवर्तन आवश्यक है । मिथिला प्रदेश में धोती–कुर्ता, तौलिया व बण्डी को सरकारी कामकाज का पोशाक बनाना चाहिए । इसीतरह नेपाल में दो भाषा को सरकारी कामकाज की भाषा बनायी जा सकती है । हिमालञ्चल प्रदेश में नेपाली भाषा और मिथिला प्रदेश में मैथिली भाषा को सरकारी कामकाज की भाषा बनानी चाहिए । स्मरणीय है– नेपाल में सबसे अधिक बोली जानेवाली भाषा ही नेपाली और मैथिली है ।

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आत्मनिर्भर होने के लिए
नेपाल आज आत्मनिर्भर नहीं है, हर दिन परनिर्भर होता जा रहा है । अब ऐसी अवस्था को बदलना होगा । इसके लिए नेपाल की जल सम्पदा को सदुपयोग करना होगा । अधिक से अधिक विद्युत उत्पादन कर देश मेंं उद्योग तथा कल–कारखाना संचालन में लाना होगा, बांकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में बेचना होगा । जिससे हम लोग बहुत हद तक आत्मनिर्भर हो सकते है । हमारे यहां तो ऐसी अवस्था है कि सरकारी कार्यालय ही विद्युत शुल्क समय में भुगतान नहीं करते हैं, अधिक विद्युत चोरी हो जाती है । जलस्रोत की दृष्टिकोण से हमारा देश अमीर तो हैं, लेकिन यहां रहनेवाली जनता अधिक विद्युत शुल्क भुगतान करने के लिए बाध्य हैं, ऐसी अवस्था का अन्त होना चाहिए । विद्युतीय शक्ति के सदुपयोग से हम लोग आत्मनिर्भर की ओर उन्मुख हो सकते हैं ।

इसीतरह कृषि का आधुनिकीकरण भी आवश्यक है । नेपाल कृषि प्रधान देश तो है, लेकिन कृषि में आधुनिकीकरण, सहज सिचाई सुविधा और आधुनिक बीज उत्पादन के अभाव में हमारा कृषि उत्पादन घटता जा रहा है । उसमें सुधार लाने की जरूरत है । भौगोलिक बनावट और हवापानी के अनुसार कृषजन्य वस्तुओं को प्राथमिकता देकर प्रविधि मैत्री खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए । तराई अन्न का भण्डार है तो, पहाड़ फलफूल, जड़ीबुटी और पशुपालन के लिए उपर्युक्त भूमि है । अगर इसको हम लोग सही सदुपयोग करते हैं तो हम लोग आत्मनिर्भर बन सकते हैं ।

नेपाल पर्यटकीय दृष्टिकोण से भी आकर्षक देश है । यहां ऐसे कई पर्यटकीय ऐतिहासिक क्षेत्र हैं, जो विश्व जगत के लिए महत्वपूर्ण है । भ्रमण, अवलोकन और अनुसंधान के लिए यहां कई प्राकृतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जगह है, जो अन्य देशों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन सकता है । शान्ति और स्थिरता होती है तो यहां हर साल लाखों पर्यटक आ सकते हैं, जो हमारे लिए अर्थोपार्जन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकता है । लेकिन विडम्बना हमारे युवा शक्ति (श्रम शक्ति) विदेश पलायन हो रहे है । उसको तत्काल रोक कर स्वदेश में ही काम करने का वातावरण बनाना चाहिए ।

(लेखक ऐतिहासिक प्रजातान्त्रिक जनता पार्टी नेपाल के अध्यक्ष हैं ।



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