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कांग्रेस और एमाले को लगा जोर का झटका

खुद को सबसे बडी, सबसे पुरानी, सबसे लोकतांत्रिक पार्टी दावा करने वाली नेपाली कांग्रेस और नेकपा एमाले को इस बार मधेशी मोर्चा ने ऐसा जोर का झटका दिया है जो इन दोनों दलों को धीरे से नहीं बल्कि जोर से ही लगा है। अब तक कई गलतफहमियों के बीच पल रही नेपाली कांग्रेस और एमाले को इस बार मधेशी मोर्चा ने उनकी असलियत का आईना दिखाया है। नेपाली कांग्रेस को यह सबसे बडी गलतफहमी थी कि मधेशी मोर्चा उसके अधीन है या फिर उसके पाँकेट की संस्था है। जो कांग्रेस के ही कहने पर चलती है या फिर कांग्रेस के निर्ण्र्ााको मानती है। कांग्रेसी नेताओं को यह बहुत बडी गलतफहमी थी कि मधेशी मोर्चा उनके अलावा किसी और के साथ मिलकर कभी सरकार बना भी नहीं सकती है। लेकिन इस बार मधेशी मोर्चा के फैसले से कांग्रेस को मोर्चा की ताकत का अंदाजा भी हो गया होगा।
पिछली बार जेठ १४ गते जब संविधान सभा की समय सीमा बढाने के लिए राजनीतिक दलों के बीच सहमति की कसरत हो रही थी तो मधेशी मोर्चा को कांग्रेस ने बडा धोखा दिया था। मोर्चा इस बात पर अडी थी कि पहले खनाल का इस्तीफा आए उसके बाद ही संविधान सभा की समय सीमा बर्ढाई जाए। लेकिन कांग्रेस ने मोर्चा के साथ बैठक में इस बात पर सहमति तो कर ली लेकिन बाद में मुकर गए। इससे मधेशी मोर्चा खुद को ठगा हुआ महसूस किया था। कांग्रेस को यह लगता था कि मोर्चा का कोई अस्तित्व ही नहीं है इसलिए सिर्फखानापर्ूर्ति के लिए मोर्चा के नेताओं से बैठक करती थी।
कांग्रेस की तरह एमाले भी मोर्चा के अस्तित्व को स्वीकारने में हिचकिचा रही थी। एमाले को सबसे बडी गलतफहमी यह थी कि उसे लगता था कि उसके बिना इस देश में कोई सरकार बन ही नहीं सकती है। वही असली किंगमेकर है। और एमाले हमेशा यह चाहती थी कि कांग्रेस और माओवादी में, माओवादी और मधेशी मोर्चा में और मोर्चा तथा कांग्रेस के बीच आपसी तकरार होती रहे और उसका फायदा एमाले को मिलता रहे। सत्ता के लिए हमेशा लालायित रहने वाली एमाले ने इसी फूट का फायदा उठाया और तीसरी बडी पार्टर्ीीोते हुए भी दो बार प्रधानमंत्री की कर्ुर्सर्ीीक पहुंच गई। लेकिन इस बार मधेशी मोर्चा ने एमाले के उस गलतफहमी को ही नहीं बल्कि उसके गुरूर को भी तोडा है कि उसके बिना इस देश में कोई सत्ता तक नहीं पहुंच सकती है।
कांग्रेस और एमाले, माओवादी के साथ मिलकर इस देश का भाग्य विधाता और भाग्य निर्माता बन गई थी। तीन दल ही मिलकर इस देश के सभी महत्वपर्ूण्ा फैसले लिया करती थी। कांग्रेस-एमाले-माओवादी जिस तरह से चाहते थे । उस तरह से देश को चलाते थे उसी दिशा में देश को ले जाते थे। नेपाल से राजतंत्र जाने के बावजूद ऐसा लगता था कि देश पर कांग्रेस एमाले और माओवादी की हुकुमत चलती थी। उनकी ही तानाशाही चलती थी। लेकिन मधेशी मोर्चा ने इस तिकडी गठबन्धन को ध्वस्त कर देश को एक और तानाशाही शासन से भी मुक्त किया है। तीन दल खुद को इस देश का ठेकेदार समझने लगे थे। खासकर कांग्रेस और एमाले को यह गलतफहमी थी कि वो लोग कुछ भी कर लेंगे उन्हें कोई भी रोकने वाला नहीं है। लेकिन इस बार मधेशी मोर्चा ने ऐसा दांव खेला है कि कांग्रेस और एमाले दोनो ही चारों खाने चित्त होते नजर आए।
माओवादी तो फिर भी मधेशी मोर्चा की ताकत को समझती थी लेकिन कांग्रेस और एमाले ने कभी भी मोर्चा को महत्व नहीं दिया था। इसी वजह से मधेशी मोर्चा ने इस बार माओवादी के साथ गठबन्धन कर कांग्रेस और एमाले को जोर का झटका दिया है। मधेशी मोर्चा के नेता बार बार बोलते थे कि मोर्चा के बिना कोई भी सहमति राष्ट्रीय सहमति नहीं हो सकती है लेकिन कांग्रेस और एमाले ने उस बात पर कभी भी ध्यान नहीं दिया। पहले ऐसा होता था कि तीन दल आपस में निर्ण्र्ााकर बाद में मधेशी मोर्चा को उसकी जानकारी करा कर सिर्फऔपचारिकता पूरी करती थी। लेकिन अब समय बदल गया है। मोर्चा ने भी अपना दम दिखा दिया है। और अब मोर्चा का समय है।

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