सनातन धर्म ही सम्पूर्ण प्राणियों को संरक्षण प्रदान करेगा : चारुदत्त पिंगले
हिमालिनी अंक मई २०१९ |
चारुदत्त पिंगले धार्मिक गुरु हैं । आप भारतीय शहर गोवा से हैं । सनातन धर्म संरक्षण के लिए आप राष्ट्रीय मार्गदर्शक हिन्दू जनजागृति समिति से सक्रिय है । नेपाल और भारत दोनों देश हिन्दू धर्म–संस्कृति से काफी प्रभावित हैं । दोनों देशों की अधिकांश जनता हिन्दू धर्म के प्रति आस्थावान हैं । इसीलिए धार्मिक भ्रमण के दौरान आप नेपाल आते रहते हैं । जब आप पिछली बार (अप्रैल) नेपाल भ्रमण में थे तो हिमालिनी परिवार को आप के साथ मुलाकात का अवसर मिला । उसी साक्षात्कार के दौरान हिमालिनी सम्पादक डा. श्वेता दीप्ति से हुई बातचीत का सम्पादित अंश यहां प्रस्तुत है–
० आप अपने विषय में कुछ बताएँ ?
– जन्म से तो मैं महाराष्ट्र से हूं । हमारी संस्था हिन्दू जनजागृति समिति मुख्यतः गोवा से कार्य करती है । पूरे भारत में तथा नेपाल, बंगलादेश, श्रीलंका, मलेसिया में भी हमारी संस्था सक्रिय है । यहां के हिन्दूओं को एकत्रित करने का प्रयास करती आ रही है । पूर्वाद्र्ध में मैं एक डॉक्टर अर्थात् एएनटी सर्जन रह चुका हूँ । साधना का महत्व, गुरुदेव की कृपा, धर्म और राष्ट्र की संकट की स्थिति देखकर मैं और मेरे जैसे हजारों लोग गुरुदेव के शिष्य बन गए । गुरुदेव की कृपा और आदेश अनुसार ही हम लोग धर्म उद्धार के लिए बाहर निकले हैं ।
० आप की संस्था कितने वर्षों से है और उद्देश्य क्या है ?
– हिन्दू जनजागृति समिति सन् २००२ में स्थापना हुई थी । उससे पहले १९८९ में ही सनातन संस्था की स्थापना हमारे गुरुदेव ने किया था । हम सभी जानते हैं कि सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) पर आधारित देवी–देवताओं पर कई बार अयोग्य टिका–टिप्पणी होती रही है । जो तथाकथित हिन्दू हैं, स्वयम् को सेक्वूलर कहते हैं, यह सब उनके माध्यम से ही होता है । एक बार ऐसी ही घटना हुइृ जहाँ हमारे संगठन के लोग उपस्थित थे । सभी को लगा कि इसके सन्दर्भ में कार्य करे ? पर कैसे करें ? ऐसे ही प्रश्नों के बीच सभी हिन्दूवादियों का एक साझा प्लेटफार्म बनाने के लिए विचार–विमर्श हुआ और धर्म रक्षा के लिए काम करने का निर्णाय किया गया । जिसके चलते २००२ में हिन्दू जनजागृति समिति बनाई गई, जो महाराष्ट्र के कंकन एरिया स्थित एक घटना से हुई थी । वहीं से हम लोग धर्म रक्षा के उद्देश्य से अभियान में निकल गए ।
हमार उद्देश्य है, लोगों को धर्म शिक्षा देना, धर्म की वैज्ञानिकता, धर्म की अध्यात्मिकता को सिखाना । इतना नहीं है, वैचारिक और बौद्धिक स्तर पर जो धर्म पर आघात हो रहा है, राष्ट्र विरोधी विचार को बढ़ावा मिल रहा है, उसका खण्डन करना । उसके विरुद्ध कानूनी तौर पर या आन्दोलनात्मक दृष्टि से विरोध करना और निषेध करना भी हमारा उद्देश्य है । उसी के साथ–साथ धार्मिक दृष्टिकोण पूर्ण एक हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के हेतु भारत में हम लोग काम कर रहे हैं । और इसी पक्ष में नेपाल में भी जो प्रक्रिया चल रही है, उनसे कुछ सीखने के लिए, अनुभवों का आदान–प्रदान करने के लिए नेपाल का प्रवास हमारा होता रहता है ।
० हिन्दू धर्म सनातन धर्म है, किन्तु हिन्दू धर्म के प्रति आदर और रुझान होते हुए भी इसके विरुद्ध भी जनमत है । इसके पीछे का राज क्या है ?
– भारत के सन्दर्भ में मैं पहले बताना चाहूंगा । भारत में ८ सौ से हजार वर्ष निरन्तर मुगलों का आक्रमण रहा । और अन्तिम २ सौ वर्ष पूर्णत अंग्रेजों का आक्रमण रहा । मुगलों का आक्रमण शारीरिक और विद्रोही था, जैसे उन्होंने हमारे विश्वविद्यालय, हमारे धर्मग्रन्थों को, मन्दिरों को जलाकर तोड़फोड़ कर किया । ब्राह्मणों की हत्या की । यहां एक स्मरणीय बात है– १ हजार चोटी सर काटनेवाले को गाजी इनाम दिया जाता है । ऐसे एक राक्षसी आक्रमण का शिकार हुआ था । प्रेम का तथा मानवसेवा–समाजसेवा का बुरखा ओढकर क्रिश्चियानिटी आई और हजार–बा¥ह सौ वर्ष तक निरन्तर इनका आक्रमण चलता रहा ।
अब यहां एक झूठा इतिहास सिखाया जाता है कि यह गुलामी का इतिहास है, भारत और भारत वर्ष के लिए । मगर प्रत्यक्ष में वह हजार–बा¥ह सौ वर्ष संघर्ष का इतिहास है, क्योंकि १९४७ में ८२ प्रतिशत हिन्दू जीवित थे, जो स्वयम् को हिन्दू कह सकते थे । जब क्रिश्चियानिटी युरोप में गया, तब ५० वर्ष के अन्दर पूरा युरोप अपनी मूल, धर्म, संस्कृति, परम्परा नष्ट करके क्रिश्चियनमय हो गया था । इस्लाम जब अरब देश में गया तो ३५ से ५० वर्ष के अन्दर मूल संस्कृति को नष्ट करके पूर्णतः १०० प्रतिशत धर्मान्तरित होकर इस्लाम बने थे । और १२ वर्ष की युद्ध और निरन्तर संघर्ष के बाद भी १९४७ में ८२ प्रतिशत हिन्दू भारत वर्ष में थे ।
अब यहां से दूसरा अध्याय शुरु होता है । अपने लोग है, हमारा राज्य है, और थोडा सा औद्योगिक प्रगति की ओर देखते हैं, विज्ञान की पूजा करते हैं, और धर्म को दूर–लक्षित किया, साधना को दूर–लक्षित किया और बुद्धि–वाद की तरफ बढे । ऐसी ही अवस्था में धर्म और ज्ञान, जो अगली पीढ़ी को देने की परम्परा थी, वह कम पड़े, वहां से पराभोग का इतिहास शुरु हुआ । स्मरणीय बात यह है कि हम दूसरों से नहीं हार रहे हैं, हम अपनों से हार रहे हैं । और मुझे लगता है कि पिछले ५० वर्ष में औद्योगिकीकरण और टेक्नोलॉजी की निर्मिती के बाद एक डिफ्रेन्ट विश्व क्रियट हुआ है । और नेपाल का बौद्धिक वर्ग विज्ञान, धन और नौकरी के लिए बाहर जाना शुरु किया है और धर्म को दूर–लक्षित करना शुरु किया । उसी समय नेपाल में भी यही हुआ । स्वधर्म से दूर जाने का एक बडा कारण यही लगता है ।
० आपने कहा कि गोवा से अपनी संस्था संचालित कर रहे हैं । जहां तक मुझे लगता है कि गोवा का परिवेश हिन्दू परिवेश से थोड़ा हटकर के है । मेरे खयाल से वहां पारसी और ईसाई संस्कृति का ही बोलवाला है । आपको कठिनाई तो होती ही होगी वहां ?
– गोवा के बारे में बहुत भ्रान्तियां है, गोवा सबसे पहले कोलॉनाइज हुआ, यह सत्य बात है । आज जिसको सन्त जेभियर्स कहा जाता है, जिन्होंने १० लाख हिन्दुओं की हत्या की, जिसके ऊपर यह जिम्मेदारी आती है, उसको सन्त घोषित करके उसके नाम से शैक्षणिक विद्यालय स्थापना किया जाता है । सौ–डेढ सौ वर्ष पूर्व करीब–करीब ७० प्रतिशत क्रिश्चिय कन्भर्सन उन्होंने किया था । इनमें से जो हिन्दू है, उन्होंने अपनी संस्कृति, परम्परा को बचाकर रखा, जंगल में आश्रय लिया, वहां से दूर भागकर देवता परम्परा को कायम रखा । और योग्य समय में फिर से गोवा में प्रवेश किया । आज की स्थिति ऐसी है कि गोवा में ७० प्रतिशत हिन्दू है, ३० प्रतिशत अन्य हैं । इसीलिए आज भी गोवा हिन्दू बाहुल्य है । मगर कहा जाता है कि गोवा क्रिश्चिन बाहुल्य है । ऐसा भ्रम फैलाने के पीछे एक कारण है, वह है– ऐसा कहने से वहां युरोप टुरिजम प्रमोट होता है । उसको बढ़ावा देने के लिए भारत में जो सरकार आती है, वह गोवा को हिन्दू बाहुल्य बताने से कतराती है । गोवा के वेभसाइट में वहां के मन्दिर और वेद पाठशाला के परम्पराओं को लिखने में वह टाल रहे हैं । अगर आप गोवा को प्रत्यक्ष देखेंगे और हमारे आश्रम को देखेंगे तो सच सामने आएगा ।
० आप इससे पहले भी नेपाल आए हैं, उस समय और आज यहां कोई परिवर्तन महसूस किया हैं आपने ?
– हां, नेपाल में एक वैचारिक परिवर्तन तेजी से हो रहा है । यहां के लोगों का कहना है कि हिन्दू धर्म का संरक्षण नहीं हो रहा है, सनातन धर्म का संरक्षण नहीं हो रहा है । लोगों का कहना है कि सनातन धर्म और परम्परा के विरुद्ध शासकीय कार्य चल रहा है । ऐसी व्यथा और वेदना यहां लोगों से सुनने को मिल रही है । यहां जो नयी राज्य व्यवस्था लागू हुई है, उसके प्रति भी जनता में असन्तुष्टियां दिखाई दे रही है । बहुत लोगों का कहना है– ‘हमारे नेता देश के साथ प्रेम नहीं करते हैं, देश को बेच रहे हैं । और यह भी कहते हैं कि यहां के जंगल, यहां के प्राकृतिक साधन–सम्पत्ति, आयुर्वेदिक पेड़ो को बेच रहे हैं । यहां के मैनपावर को वह बाहर भेज रहे हैं, पाश्चात्य विचार को आमन्त्रण किया जा रहा है, क्रिश्चिन बना रहे हैं, नागरिकों की हितों में निर्णय नहीं ले रहे हैं, देश में झूठा लोकतन्त्र है, सच्चा लोकतन्त्र नहीं है ।’ ऐसी कई शिकायत जनता की ओर से आ रही है । मुझे भी लगता है कि यहां के ७०–८० प्रतिशत से ज्यादा जनता ॐकार परिवार के हैं, वे लोग नेपाल को हिन्दू राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं । लेकिन जनता की इस भावना को यहां सम्बोधन नहीं हो रहा है । आम जनता को कहना है कि यहां के ८–१० नेताओं की चाहत के अनुसार नेपाल को धर्म–निरपेक्ष राष्ट्र घोषणा की गई है । अगर ८–१० नेताओं ने ४ लाख जनता के ऊपर अपनी इच्छा जबरन लादी हैं तो लोकतन्त्र कहां है ? ऐसा प्रश्न यहां के जनता हमें पूछ रहे हैं । हमें भी खयाल आ रहा है कि लोकतन्त्र के नाम में जबरन थोपा हुआ जो विचार है, उसके विरुद्ध में एक असन्तोष बढ़ रहा है ।
लेकिन हर देश अपने दृष्टि से सार्वभौम है । उसे अपने–अपने निर्णय प्रक्रिया को अवलम्बन करना पड़ता है । इसमें हम लोग कुछ भी नहीं कर सकते । लेकिन इतना तो होता ही है कि उन लोगों को जनता की भावना को सम्बोधन करना चाहिए, इस सन्देश को हम लोग भी एक मानव के रूप में सम्बन्धित निकाय तक पहुँचा सकते हैं ।
० हमारे यहां धर्म के नाम में राजनीति ज्यादा होती है । कई ऐसे संगठन है, जो कहते हैं कि अगर राजतन्त्र आएगा तो हिन्दू राष्ट्र भी आएगा । आप इससे इत्तफाक रखते हैं ?
– इसमें दो बातें होती है । एक हमारी धर्म परम्पराओं की बातें, दूसरी– वर्तमान परम्पराओं की बातें । कई विश्व को देखते हैं तो लगता है कि वर्तमान में लोकतन्त्र है ही नहीं । हमारे ऊपर जो धर्मनिरपेक्ष थोपा गया है, यह भी एक उदाहरण है । बाहर की बात करें तो इंगलैंड में आफिसियली रूप में प्रोटेस्टेन्ट क्रिश्चियानिटी को प्रोटेक्ट किया जाता है । केवल प्रोटेस्टेन्ट क्रिश्चियन ही वहां प्रधानमन्त्री या राज परिवार से जुड़ सकता है, दूसरा व्यक्ति नहीं । राज परिवार प्रोटेस्टेन्ट के बाहर विवाह तक नहीं कर सकते हैं । जर्मन जो है, वह क्याथोलिक है । अमरिका भी प्रोटेस्टेन्ट क्रिश्चियानिटी को ही बढ़ावा देता है । अरब देशों को देखते हैं तो वहां कुरान को ‘प्रोटेक्ट’ किया जाता है । इस दृष्टिकोण से हमारे यहां जो भी व्यवस्था आएगी, उससे हमारे सनातन धर्म, संस्कृति, परम्परा और यहां के धार्मिक और पौराणिक इतिहास को संरक्षण मिलना चाहिए । लेकिन यह सब इस लोकतन्त्र में सम्भव नहीं है । इसीलिए लोग राजतन्त्र की बात करते हैं । इंगलैंड कहता है कि लोकतन्त्र है, यहां प्रधानमन्त्री भी है, राजा भी है, वह एक विचित्र लोकतन्त्र है । आज युरोप के अधिकतर देशों में राजा भी है, प्रधानमन्त्री भी । उन लोगों ने ऐसा भ्रम चलाया है कि आप राजा बनाएँगें तो यह गलत है । लेकिन उनके यहां है तो अच्छा है ।
इसीलिए हमारी सबसे पहली मांग है– जो भी व्यवस्था आएगी, उसमें हमारी सनातन धर्म, परम्परा और संस्कृति को संरक्षण मिलनी चाहिए । दूसरी बात है– जो भी शासक हो, वह धर्मनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ और प्रजा को पुत्र के तरह माननेवाले होने चाहिए । जहां तक नेपाल में राजतन्त्र की बात है तो यहां की जनता क्या चाहती है ? यह मूल प्रश्न है । सनातन धर्म–परम्परा की दृष्टिकोण से देखें तो राजा ही हमारी परम्परा का एक स्वरूप है । लेकिन हिन्दू राष्ट्र के लिए राजतन्त्री आना चाहिए, यह नहीं है । राजतन्त्र के अलावा अगर नई व्यवस्था निर्माण होती है, राज्य के लिए प्रधानमन्त्री या राष्ट्रपति ही सर्वेसर्वा होता है और वही राज्य को संरक्षित करते हैं तो उसके द्वारा भी हमारे धर्म–संस्कृति, हमारे वेद–पुराण और हमारे मन्दिर–मठों को संरक्षण मिलना चाहिए ।
मेरे खयाल से जब तक धर्म का चिन्तन कर के राजनीति नहीं होगी, तब तक हिन्दू राष्ट्र की कल्पना नहीं होगी । दूसरी बात जो धर्म को जानता है, उसके सत्ता में बैठने से हिन्दू राष्ट्र आ जाएगा, ऐसी भी प्रकृति नहीं है । जब तक हर व्यक्ति को धर्म–शिक्षा नहीं मिलती, तब तक वह अपने वैयक्तिक जीवन में सनातन परम्परा को अनुशरण नहीं कर पाते । जो आचरण सनातन परम्परा से नहीं जुड़ी है, जो राष्ट्र और सनातन धर्म परम्परा के प्रति कटिबद्ध नहीं है, ऐसी राजा, प्रजा, प्रशासन और न्याय व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था से हिन्दू राष्ट्र आनेवाला नहीं है ।
० हिन्दू राष्ट्र के लिए गुरु–शिक्षा (गुरुकुल) परम्परा को निरन्तरता देनी चाहिए ?
– हिन्दू राष्ट्र स्थापना की प्रक्रिया तीन पीढि़यों की है, ऐसा हमारे गुरुदेव बताते हैं । सबसे पहले तो शिक्षा व्यवस्था बदलनी होगी, परिवार में संस्कार व्यवस्था बदलनी होगी, न्याय व्यवस्था बदलनी होगी, समाज व्यवस्था में जो कुरीतियां आई है, उन कुरीतियों को नष्ट करके विशुद्ध स्वरूप में धर्म की स्थापना करनी होगी । आज की पीढ़ी जो कार्य कर रही है, वह ३० वर्ष में एक और नयी पीढ़ी तैयार करेगी । ३० वर्ष के बाद जो नहीं पीढ़ी बनेगी, वह अपने आचरण और विचार से ३० वर्ष अधिक काम करेगी और उसके माध्यम से तीसरी पीढ़ी तैयार करेगी, उसके बाद ही हिन्दू राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया शुरु होगी ।
० विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में धर्म परिवर्तन ज्यादा हो रहा है, कई लोगों का कहना है कि इसके पीछे हिन्दू धर्म में जो संस्कार है, वह भी एक महत्वपूर्ण कारण है । लोगों को मानना है कि हिन्दू धर्म बहुत जटिल है । पूजापाठ से लेकर विभेदजन्य संस्कार, जो लोगों को नहीं भाती है । क्या हम लोग हिन्दू धर्म–संस्कार को थोड़ा–सा लचीला बनाकर आगे नहीं बढ़ सकते हैं ?
– संस्कार और परम्परा में लचीलापन नहीं आ सकता है । क्योंकि वह संस्कार ही आपकी पहचान होती है ।
० लेकिन उसी से तो लोग भाग भी रहे हैं !
– नहीं, लोगों के भागने के पीछे अलग–अलग कारण हैं । हमारे धर्म ने तीन काण्ड बताए हैं । कर्म–काण्ड, उपासना–काण्ड और ज्ञान–काण्ड । हमने समाज को केवल कर्मकाण्ड में ही अटका के रखा है और कहा कि यही आपकी पहचान है । कर्म से आप को उपासना–काण्ड में जाना है और उसे आगे बढ़ाकर आप को ज्ञान–काण्ड में जाना है । यह बात हमने नहीं सिखाया । हमारे संस्कार में आश्रम व्यवस्था है । बच्चों को कब स्कूल भेजना है ? अध्ययन से लौटने के बाद गृहस्थी में कब तक रहना है ? फिर वानप्रस्थ कब है ? यह चक्र हम लोगों ने नहीं सिखाया । अगर यह चक्र सु–व्यवस्थित हो जाए तो इतने उत्साह से धर्म का पालना शुरु हो जाएगा, जो आश्चर्यजनक नतीजा ला सकती है । आज हम लोग जो छोड़ना चाह रहे हैं, उसको युरोप और अमेरिका के लोग पकड़ रहे हैं । जब वे लोग शुद्ध स्वरूप में आचरण करके शान्ति और आनन्द को अनुभव करते हैं तो हम लोग क्यों नहीं कर सकते हैं ? मगर स्थापना करने की प्रक्रिया शुद्ध होनी चाहिए । अभी उसको शुद्ध करने के लिए हमारे पास व्यवस्था नहीं है ।
० आपकी संस्था इस में प्रयासरत हैं ?
– हां, हम लोगों को पता है कि सरकार हमारी बात सुननेवाली नहीं है । इसीलिए तत्काल राज्य की ओर से शिक्षा व्यवस्था में बदलाव नहीं होगा । हमने अपनी तरह से ही बाल संस्कार वर्ग, सतसंग और धर्म संस्कार शुरु किया है । ऐसे कई प्रश्न है, जो मीडिया, क्रिश्चियन मिसिनरी और कम्युनिष्ट लोग उछालते हैं, उन लोगों के साथ विचार–विमर्श कर आशंका और भ्रम को दूर करने का प्रयास करते आ रहे हैं । और उनको उत्तर देते हैं कि आप वैचारिक और बौद्धिक संघर्ष कीजिए । शिवपिण्ड का परिक्रमा क्यों किया जाता हैं ? शिव जी को बेलपत्र ही क्यों चढ़ाते हैं ? शिवलिंग का पूजन क्यों होता हैं ? इन सारे प्रश्नों का जवाब उन लोगों से मांगते हैं तो कहते हैं कि हम अपने धर्म–संस्कार के बारे में कुछ नहीं जानते । अगर कुछ भी नहीं जानते हैं तो अनावश्यक प्रश्न कर क्यों भटकते हैं ? बेलपत्र संबंधी विषयों को लेकर एक युवक के कथन को मैं यहां पेश करना चाहता हूँ । एक युवक ने कहीं कहा था– ‘शिव जी को बेलपत्र ही चढ़ाना है, इस बात को मैं नहीं मानता हूँ, आपका बन्धन मुझे स्वीकार्य नहीं है । कोई भी पत्ता मैं चढ़ा देता हूं ।’ मैंने उस युवक से कहा– ‘ठीक है, मेरी बात को मत मानिए । लेकिन आप के पास जो मोबाइल है, उसमें एक सिमकार्ड है । उसको निकालकर सिमकार्ड के जगह एक पेपर का कार्ड डालिए और फोन कीजिए ।’ उसने कहा– ‘नहीं, फोन करने के लिए सिमकार्ड ही चाहिए ।’ मैंने कहा– ‘क्यों ?’ उसने कहा– ‘सीमकार्ड भाइब्रेसन खींचता है ।’ और मैंने कहा– ‘बेलपत्र भी पोजेटिभ भाइब्रेसन खीचता है ।’ हां, यह बात सच है, जिसको विज्ञान ने भी पुष्टि की है । विज्ञान ने यह पता लगाया है कि हमारे भौतिक शरीर के बाहर एक ऊर्जा है, जिसको हम लोग ‘औरा’ कहते हैं । उस को स्क्यान करने के लिए विज्ञान ने ही मशीन भी बनाया है, उसके सहारे हम लोग सहज रूप में हमारी औरा गिन सकते हैं । बेलपत्र को भिगाकर पुष्पगंध के साथ जब हाथ में लेते हैं तो वह शिव तक की भाइब्रेसन खीचता है । अगर आप को प्रयोग करना है तो आप को पूजा से पहले आपकी औरा गिनना होगा, उसके बाद शिव मंत्र और बेलपत्र के साथ पूजा करना होगा । यह सब होने के बाद आगर आप की अपनी औरा गिनते हैं तो निश्चय ही औरा की संख्या बढेगी । यही तो है– पोजेटिभ भाइब्रेसन । यानि बेल–पत्र हाथ में लेकर पकड़ते वक्त आप की ऊर्जा प्रक्षेपण होती है । पूजा से पहले आप की औरा गिनो और पूजा के बाद आपकी औरा गिनों, अवश्य ही बदलाव आती है । इसीलिए शिवजी को बेलपत्र चढ़ाना अंधविश्वास नहीं है । मुर्ति पूजा भी अन्धविश्वास नहीं है । मुर्ति पूजा के बाद भी आप की औरा में सकारात्मक परिवर्तन आएगी । हिन्दू धर्म–संस्कार में जितनी भी ऐसी परम्परा है, उसमें विज्ञान है, जो अज्ञानी लोगों को पता नहीं है । पूरा विश्व सकारात्मकता के लिए लड़ रहा है तो हिन्दू धर्म–संस्कार कहां नकारात्मक है ? हम लोग हिन्दू धर्म–संस्कार को विज्ञान के साथ पुष्टि कर रहे हैं ।
० अंत में हमारे लिए और पूरे विश्व के लिए आप का कोई सन्देश ?
– सनातन धर्म की परम्परा सिर्फ मनुष्य के लिए नहीं, सभी प्राणी, वनस्पति पञ्च महातत्व के लिए है । उन सभी की उत्थान की प्रक्रिया के लिए है । सनातन धर्म के लिए आदि शंकराचार्य ने जो अन्तिम व्याख्या बोला है कि तुम हर प्राणी मात्र की भौतिक उन्नति हो, प्राणी मात्र की आध्यात्मिक उन्नति हो । समाज व्यवस्था उत्तम रहे, उसको सनातम धर्म कहते हैं । हां, सनातन धर्म विश्व के प्रत्येक मानव और विश्व के अस्तित्व के लिए आवश्यक है । आप अपनी–अपनी उपासना पद्धति के अनुसार उपासना कर सकते हों । मगर जो युनिवर्सल तत्व है, वह सनातन परम्परा को आप अनुशरण करों तो आप सभी का उत्कर्ष होगा । विश्व को बचाने की यही प्रक्रिया है । अन्यथा आनेवाला कल अत्यन्त विनाशकारी है । हमारे गुरुदेव और अन्य कुछ सन्तों ने बोला है– महायुद्ध की सम्भावनाएं है । सन् २०२० और ०२१ में युद्ध प्रारम्भ होगा तो प्रचण्ड विनाश की भविष्यवाणी की गई है । अगर इस विनाश के बाद हमें अस्तित्व रखना है तो हमें साधना और धर्म के मार्ग पर चलना होगा । और इस विनाशकारी युद्ध के बाद पूरे विश्व में सनातन धर्म की स्थापना होगी । अपात के बाद और विनाशकाल के बाद लोग हाथ जोड़कर सनातन धर्म को स्वीकार करेंगे, यह मेरा विश्वास है ।